"मन्दिर": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: डॉट (.) के स्थान पर पूर्णविराम (।) और लाघव चिह्न प्रयुक्त किये।
छो बॉट: कोष्टक () की स्थिति सुधारी।
पंक्ति 5:
और '''मठ''' वह स्थान है जहां किसी सम्प्रदाय, धर्म या परंपरा विशेष में आस्था रखने वाले शिष्य आचार्य या धर्मगुरु अपने सम्प्रदाय के संरक्षण और संवर्द्धन के उद्देश्य से धर्म ग्रन्थों पर विचार विमर्श करते हैं या उनकी व्याख्या करते हैं जिससे उस सम्प्रदाय के मानने वालों का हित हो और उन्हें पता चल सके कि उनके धर्म में क्या है। उदाहरण के लिए बौद्ध विहारों की तुलना हिन्दू मठों या ईसाई मोनेस्ट्रीज़ से की जा सकती है। लेकिन 'मठ' शब्द का प्रयोग [[शंकराचार्य]] के काल यानी सातवीं या आठवीं शताब्दी से शुरु हुआ माना जाता है।
 
[[तमिल भाषा]] में मंदिर को ''कोईल'' या ''कोविल'' (கோவில் ) कहते हैं।
 
== मंदिरों की निर्माण ==
पंक्ति 12:
[[गुप्तकाल]] (चौथी से छठी शताबिद) में मंदिरों के निर्माण का उत्तरोत्तर विकास दृशिट में आता है। पहले लकड़ी के मंदिर बनते थे या बनते होंगे लेकिन जल्दी ही भारत के अनेक स्थानों पर पत्थर और र्इंट से मंदिर बनने लगे। 7वीं शताबिद तक देश के आर्य संस्कृति वाले भागों में पत्थरों से मंदिरों का निर्माण होना पाया गया है। चौथी से छठी शताबिद में गुप्तकाल में मंदिरों का निर्माण बहुत द्रुत गति से हुआ। मूल रूप से हिन्दू मंदिरों की शैली बौद्ध मंदिरों से ली गयी होगी जैसा कि उस समय के पुराने मंदिरो में मूर्तियों को मंदिर के मध्य में रखा होना पाया गया है और जिनमें बौद्ध स्तूपों की भांति परिक्रमा मार्ग हुआ करता था। गुप्तकालीन बचे हुए लगभग सभी मंदिर अपेक्शाकृत छोटे हैं जिनमें काफी मोटा और मजबूत कारीगरी किया हुआ एक छोटा केन्द्रीय कक्श है, जो या तो मुख्य द्वार पर या भवन के चारों ओर बरामदे से युद्ध है। गुप्तकालीन आरमिभक मंदिर, उदाहरणार्थ सांची के बौद्ध मंदिरों की छत सपाट है; तथापि मंदिरों की उत्तर भारतीय शिखर शैली भी इस काल में ही विकसित हुयी और शनै: शनै: इस शिखर की ऊंचार्इ बढती रही। 7वीं शताब्दी में [[बोध गया]] में निर्मित बौद्ध मंदिर की बनावट और ऊंचा शिखर गुप्तकालीन भवन निर्माण शैली के चरमोत्कर्श का प्रतिनिधित्व करता है।
 
बौद्ध और जैन पंथियों द्वारा धार्मिक उद्देश्यों के निमित्त कृत्रिम गुफाओं का प्रयोग किया जाता था और हिन्दू धर्मावलंबियों द्वारा भी इसे आत्मसात कर लिया गया था। फिर भी हिन्दुओं द्वारा गुफाओं में निर्मित मंदिर तुलनात्मक रूप से बहुत कम हैं और गुप्तकाल से पूर्व का तो कोर्इ भी साक्ष्य इस संबन्ध में नहीं पाया जाता है। गुफा मंदिरों और शिलाओं को काटकर बनाये गये मंदिरों के संबंध में अधिकतम जानकारी जुटाने का प्रयास करते हुए हम जितने स्थानों का पता लगा सके वो पृथक सूची में सलंग्न की है। मद्रास (वर्तमान 'चेन्नई' ) के दक्षिण में पल्लवों के स्थान [[महाबलिपुरम]] में, 7वीं शताबिद में निर्मित अनेक छोटे मंदिर हैं जो चट्टानों को काटकर बनाये गये हैं और जो तमिल क्षेत्र में तत्कालीन धार्मिक भवनों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
 
मंदिरों का असितत्व और उनकी भव्यता [[गुप्त राजवंश]] के समय से देखने को मिलती है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि गुप्त काल से हिन्दू मंदिरों का महत्त्व और उनके आकार में उल्लेखनीय विस्तार हुआ तथा उनकी बनावट पर स्थानीय वास्तुकला का विशेश प्रभाव पड़ा। उत्तरी भारत में हिन्दू मंदिरों की उत्कृष्टता उड़ीसा तथा उत्तरी मध्यप्रदेश के खजुराहो में देखने को मिलती है। उड़ीसा के भुवनेष्वर में सिथत लगभग 1000 वर्ष पुराना लिंगराजा का मंदिर वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है। हालांकि, 13वीं शताबिद में निर्मित [[कोणार्क]] का [[सूर्य मंदिर]] इस क्षेत्र का सबसे बड़ा और विश्वविख्यात मंदिर है। इसका शिखर इसके आरंमिभक दिनों में ही टूट गया था और आज केवल प्रार्थना स्थल ही शेश बचा है। काल और वास्तु के दृष्टिकोण से [[खजुराहो]] के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण मंदिर 11वीं शताब्दी में बनाये गये थे। गुजरात और राजस्थान में भी वास्तु के स्वतन्त्र शैली वाले अच्छे मंदिरों का निर्माण हुआ किन्तु उनके अवशेष उड़ीसा और खजुराहो की अपेक्षा कम आकर्षक हैं। प्रथम दशाब्दी के अन्त में वास्तु की दक्षिण भारतीय शैली [[तंजौर]] (प्राचीन नाम तंजावुर) के [[राजराजेश्वर मंदिर]] के निर्माण के समय अपने चरम पर पहुंच गयी थी।