"मार्क्सवाद": अवतरणों में अंतर

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== द्वंद्वात्मक भौतिकवाद ==
{{Main|द्वंद्वात्मक भौतिकवाद}}
सामाजिक गठन की ऐतिहासिक व्याख्या करने वाला मार्क्स का यह सिद्धांत [[जार्ज विल्हेम फ्रेडरिच हेगेल|हेगेल]] के द्वंद्ववादी पद्धति की आलोचना करता है। [[दास कैपिटल|पूंजी]] भाग १ की भूमिका लिखते हुए मार्क्स ने द्वंद्ववाद और हेगेल के प्रति अपना दृष्टिकोण व्यक्त किया है- "हेगेल के लिए मानव मस्तिक की जीवन प्रक्रिया, अर्थात् चिंतन की प्रक्रिया, जिसे 'विचार' के नाम से उसने एक स्वतंत्र कर्ता तक बना डाला है, वास्तविक संसार की सृजनकत्री है और वास्तविक संसार 'विचार' का बाहरी इंद्रियगम्य रूप मात्र है। इसके विपरीत, मेरे लिए विचार इसके सिवा और कुछ नहीं कि भौतिक संसार मानव मस्तिष्क में प्रतिबिंबित होता है और चिंतन के रूपों में बदल जाता है। हेगेल के हाथों में द्वंद्ववाद पर रहस्य का आवरण पड़ जाता है, लेकिन इसके बावजूद सही है कि हेगेल ने ही सबसे पहले विस्तृत और सचेत ढंग से यह बताया था कि अपने सामान्य रूप में द्वंद्ववाद किस प्रकार काम करता है। हेगेल के यहाँ द्वंद्ववाद सिर के बल खड़ा है। यदि आप उसके रहस्यमय आवरण के भीतर छिपे तर्कबुद्धिपरक सारतत्त्व का पता लगाना चाहते हैं, तो आपको उसे उलटकर फिर पैरों के बल सीधा खड़ा करना होगा।"<ref>पूंजी-१, [[कार्ल मार्क्स]], (अनुवादक : ओमप्रकाश संगल ), पीपुल्स पब्लिशिंग हाउस (प्रा.) लिमिटेड, १९८७, पृष्ठ- ३0, ISBN: </ref>
 
== आधार और अधिरचना ==