"लाहौर": अवतरणों में अंतर
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== ग़ैर मुस्लिमों के मुक़द्दस मुक़ामात ==
=== मंदिर ===
कनहीअलाल लिखता है के पुरानी इमारात के मंदिर और हिंदूओं की इबादत गाहैं बहुत हैं जिन का शुमार नहीं हो सकता।छोटे छोटे शिवाले-ओ-ठाकुरद्वारे-ओ-देवी द्वारे बेशुमार हैस।इन में से-ओ-जदीद दोनों किस्म के हैं। मगर सखी अह्द में पुरानी इमारात के मंदिर भी अज सर-ए-नौ नबाए गए थे जिन की इमारात ताज़ा नज़र आती हैं।बाअज़ मंदिर जो उन से नामी गिरामी हैं और ख़ास-ओ-आम वहां जा कर पूजा करते हैं इस क़िस्म में लिखे जाते हैं।(1) मगर याद रए कि ये कनहीअलाल ने 1882ई. में अपनी किताब तारीख़ लाहौर में लिखा था।और आज बहुत सहि मुक़ामात ख़त्म हो चौके हैं।
* शिवाला बावा ठाकुर गिर
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