"लेखाकरण": अवतरणों में अंतर
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== खाते के भाग ==
प्रत्येक लेनदेन के दो पक्ष होते हैं। ऋणी या डेबिट पक्ष और धनी या क्रेडिट पक्ष। इस कारण उसका लेखा लिखने के लिए प्रत्येक खाते के दो भाग होते हैं। बायें हाथ की ओर भाग ‘ऋणी पक्ष’ (
'''खातों को डेबिट या क्रेडिट करना''' - जब किसी लेन-देन में कोई खाता ‘लेन’ पक्ष होता है अर्थात् उसको लाभ प्राप्त होता है तब उस खातो को डेबिट किया जाता है। डेबिट करने का मतलब यह है कि खाते के ऋणी (डेबिट) भाग (बांये हाथ वाले भाग) में लेनदेन का लेखा होगा। इसी प्रकार जब कोई खाता लेनदेन में देन पक्ष होता है अर्थात् उसके द्वारा कुछ लाभ किसी को होता है, तब उस खाते को क्रेडिट किया जाता है। अर्थात् उस खाते के क्रेडिट भाग में लेनदेन का लेखा किया जाएगा। प्रत्येक लेनदेन में इस तरह एक खाता (डेबिट) तथा दूसरा खाता क्रेडिट किया जाता है। डेबिट (डेबिट) खाते में डेबिट की ओर लेखा तथा क्रेडिट खाते में क्रेडिट की ओर लेखा होता है। क्रेडिट तथा डेबिट लेखा दोहरे लेखे की प्रणाली के अनुसार प्रत्येक लेनदेन के लिए किया जाता है।
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