"विद्युत जनित्र": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
छो बॉट: कोष्टक () की स्थिति सुधारी।
पंक्ति 1:
[[चित्र:Gorskii 04414u.jpg|thumb|right| बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दिनों का अल्टरनेटर, जो बुडापेस्ट में बना हुआ है।]]
 
'''विद्युत जनित्र''' ( एलेक्ट्रिक जनरेटर ) एक ऐसी युक्ति है जो [[यांत्रिक उर्जा]] को [[विद्युत उर्जा]] में बदलने के काम आती है। इसके लिये यह प्रायः [[विद्युतचुम्बकीय प्रेरण]] (electromagnetic induction) के सिद्धान्त का प्रयोग करती है। [[विद्युत मोटर]] इसके विपरीत विद्युत उर्जा को यांत्रिक उर्जा में बदलने का कार्य करती है। विद्युत मोटर एवं विद्युत जनित्र में बौत कुछ समान होता है और कई बार एक ही मशीन बिना किसी परिवर्तन के दोनो की तरह कार्य कर सकती है।
 
विद्युत जनित्र, [[विद्युत आवेश]] को एक वाह्य परिपथ से होकर प्रवाहित होने के लिये वाध्य करता है। लेकिन यह आवेश का सृजन नहीं करता। यह जल-पम्प की तरह है जो केवल जल-को प्रवाहित करने का कार्य करती है, जल पैदा नहीं करती।
पंक्ति 38:
चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए भी विद्युत् का ही प्रयोग व्यावहारिक रूप में किया जाता है, क्योंकि इससे स्थायी चुंबक की अपेक्षा कहीं अधिक तीव्रता का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न किया जा सकता है और क्षेत्रधारा का विचरण कर सुगमता से क्षेत्र का विचरण किया जा सकता है। इस प्रकार जनित वोल्टता का नियंत्रण सरलता से किया जा सकता है। चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करने के लिए क्षेत्र चुंबक (field magnets) होते हैं, जिनपर क्षेत्रकुंडली वर्तित होती है। इन कुंडलियों में धारा के प्रवाह से चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति होती है। एकसम क्षेत्र के लिए क्षेत्र चुंबकों का आकार कुछ गोलाई लिए होता है और उनके बीच में आर्मेचर घूमता है। आर्मेचर तथा क्षेत्र चुंबकों के बीच वायु अंतराल (air gap) न्यूनतम होना चाहिए, जिससे क्षेत्रीय अभिवाह का अधिकांश आर्मेचर चालकों को काट सके और आर्मेचर में जनित वोल्टता अधिकतम हो सके।
 
क्षेत्र कुंडली में धारा प्रवाह को उत्तेजन (Excitation) कहते हैं। यह उत्तेजन किसी बाहरी स्रोत (बैटरी शृखंला अथवा विद्युत् के उस जनित्र के अलावा कोई दूसरे स्रोत) से संयोजित करने पर किया जा सकता है अथवा स्वयं उसी जनित्र में उत्पन्न होनेवाली धारा का ही एक अंश उत्तेजन के लिए भी प्रयुक्त किया जा सकता है। बाहरी स्रोत से उत्तेजित किए जानेवाले जनित्र को बाह्य उत्तेजित जनित्र कहा जाता है और स्वयं उसी जनित्र में जनित धारा का भाग उपयोग करनेवाले जनित्र को स्वत:उत्तेजित जनित्र (Self-excited Generator) कहा जाता है। स्वत: उत्तेजन की प्रणालियाँ भी क्षेत्र कुंडली और आर्मेचर के सयोजनों के अनुसार भिन्न भिन्न होती हैं। यदि क्षेत्र कुंडली आर्मेचर से श्रेणी (series) में संयोजित हों, तो उसे श्रेणी जनित्र (Series Generator) कहा जाता है। यदि दोनों में पार्श्व संबंधन हो, तो उसे शंट जनित्र (Shunt Generator) कहते हैं। यदि क्षेत्र कुंडली के कुछ वर्त आर्मेचर से श्रेणी में और कुछ उससे पार्श्व संबंधित हों, तो ऐसे जनित्र को संयुक्त जनित्र (Compound Generator) कहते हैं। उत्तेजन की इन विभिन्न विधियों से विभिन्न लक्षण प्राप्त होते हैं। बाह्य उत्तेजित जनित्र में क्षेत्रधारा आर्मेचर धारा अथवा भारधारा पर निर्भर नहीं करती। अत: उसमें जनित वोल्टता भार (load) विचरण से स्वतंत्र होती है। यदि क्षेत्रधारा को एक समान रखा जाए और जनित्र में जनित वोल्टता भी एक समान रहेगी। शंट जनित्र में भी लगभग ऐसा ही लक्षण प्राप्त होता है और भार विचरण का प्रभाव जनित वोल्टता पर अधिक नहीं होता। श्रेणी जनित्र में, भारधारा ही आर्मेचर और क्षेत्र कुंडलियों में प्रवाहित होती है। अत:, यह क्षेत्रधारा भार पर निर्भर करती है और इस प्रकार जनित वोल्टता भार बढ़ने के साथ बढ़ती जाती हैं।
 
संयुक्त जनित्र में शंट एवं श्रेणी जनित्रों के बीच के लक्षण होते हैं। क्षेत्र कुंडली के शंट और श्रेणी वर्तों का व्यवस्थापन कर उनके बीच का कोई भी लक्षण प्राप्त किया जा सकता है। व्यवहार में संयुक्त जनित्रों का ही अधिक प्रयोग होता है।