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[[चित्र:Krishnaarjunmahabharata.jpg|thumb|right|300px|[[कुरुक्षेत्र]] में [[कृष्ण]] और [[अर्जुन]] युद्ध के लिये तत्पर।]]
 
विश्वरूप अर्थात् विश्व (संसार) और रूप। अपने विश्वरूप में भगवान संपूर्ण ब्रह्मांड का दर्शन एक पल में करा देते हैं। जिसमें ऐसी वस्तुऐं होती हैं जिन्हें मनुष्य नें देखा है परंतु ऐसी वस्तुऐं भी होतीं हैं जिसे मानव ने न ही देखा और न ही देख पाएगा।
 
== स्वरूप ==
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[[चित्र:Indischer Maler um 1755 002.jpg|thumb|300px|[[यशोदा]], [[नंद|नंद बाबा]] तथा [[बलराम]] भगवान [[कृष्ण]] को झूला झुलाते हुए।]]
 
माता ने कृष्ण को मुँह खोलने को कहा। अनजान कृष्ण ने मुँह खोला। माता यशोदा कृष्ण के मुख से अंदर मिट्टी के कण ढूँढने लगीं, परंतु उनको उस बालक के मुँह में अगणित (जिसको गिनना असंभव हो) [[ब्रह्मांड]], अगणित [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]], [[शिव|महेश]], मुनि, देवता, मानव, [[आकाशगंगा]] तथा कई प्रकार के अनदेखी वस्तुऐं दिखाई देने लगीं। भागवत में लिखा है कि माता यशोदा ने कृष्ण के मुख में स्वयं को कृष्ण के मुँह को देखते देखा। प्रभु के इस प्रकार के विश्वरूप दर्शन होने के बाद भी माता यशोदा की निश्छल ममता कृष्ण पर बरसती रही। इस घटनाक्रम के बाद भी परमात्मा श्री कृष्ण उन्हें एक बालक ही प्रतीत होता था।<ref>[http://hi.brajdiscovery.org/index.php?title=%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A3%E0%A5%8D%E0%A4%A1_%E0%A4%98%E0%A4%BE%E0%A4%9F ब्रह्मांड घाट], ब्रजडिस्कवरी</ref>
 
== दुर्योधन ==