"अत-तकाथुर": अवतरणों में अंतर
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यह क़ुरान की 102 नंबर कि सुरः हे लेकिन नाज़िल होने के हिसाब से इसका नंबर 16 हे (1)| यह सुरः मक्का में नाज़िल हुई। यह सुर: मनुष्यों को सांसारिक इच्छाओं का गुलाम हो जाने के घातक परिणामों के बारे में चेतावनी देती हे। अपनी इच्छाओं का गुलाम होकर मनुष्य अपने जीवन का ज्यादातर समय बहुत ज्यादा पैसा, सुख सुविधाएँ, पद और ताकत पाने में बिता देता हे और मनुष्य दुनिया में एक दूसरे से आगे बढ़ने के लिए आपस में संघर्ष करते रहते हैं, जब तक कि मृत्यु नहीं आ जाती। आदमी इन सब चीज़ो में इतना ज्यादा व्यस्त हो जाता हे, कि उन्हें मौत के बाद हमेशा के लिए शुरू होने वाली ज़िन्दगी के लिए समय ही नहीं मिलता। आदमी के इसी आदत के लिए एक हदीस का हवाला भी दिया जाता हे। हज़रत उबय इब्न क़ाब रज़ी० के अनुसार हुज़ूर सल० ने कहा कि "यदि आदम के बेटे (यानि मनुष्य) को दो वादियाँ माल से भरकर दे दी जाएं तो वो तीसरे कि इच्छा करेगा और उसकी ख्वाहिशों को सिर्फ कब्र कि मिट्टी ही भर सकती हे।
यह सुर: आदमी को दुनिया की चाहतों के गुलाम होने के नुकसान कि चेतावनी देती हे और उसके बाद यह बताती हे कि जीवन में ईश्वर की तरफ से मिले आनंद और सुविधाएँ केवल मज़े लेने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह सब इंसान के परीक्षा के लिए उसे दिए गए हैं और मरने के बाद उस से हर एक आनंद और सुविधा का हिसाब लिया जायेगा। अल्लाह के नेक बंदे हमेशा उसकी दी हुई नेअमतों का शुक्र अदा करते रहतें हैं।
===== <big>सुर: अत-तक़ाज़ुर का इतिहास (2):</big> =====
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