"आत्मा": अवतरणों में अंतर

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दोनो क स्वरूप भी एक जैसा ही है।
आत्मा और परमत्मा दोनो के गुन भी समान ही है
आत्म के गुन है घ्यान स्वरूप, प्रेम स्वरूप, पवित्रता स्वरूप, शान्त स्वरूप, सुख स्वरूप, आन्नद स्वरूप, एव शक्ति स्वरूप,
परमत्मा के गुन है ग्यान के सागर, प्रेम के सागर, पवित्रता के सागर, शान्ति के सागर, सुख के सागर, आन्नद के सागर, एव सर्व शाक्तिमान
है
आत्मा जन्म-मरन मै आती है परमात्मा जन्म- मरन मे नहि आते, आत्मा पूरे कल्प मे ८४ जन्मो क पार्ट बजाना होता है
कल्प चार युगो का होता है सतयुग.त्रेता, द्वापुर एव कलयुग
== स्रोत ==
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पार्थ सूर्य ब्रह्माण्ड को, ज्योर्तिमय कर देत
वैसे ही यह आत्मा, क्षेत्र ज्योति भर देत।। 33-13।
आत्मा-जिस प्रकार सूर्य इस सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित करता है अर्थात सूर्य के कारण संसार है, जीवन है आदि उसी प्रकार एक आत्मा सम्पूर्ण क्षेत्र को जीवन देता है, ज्ञानवान बना देता है क्रियाशील बना देता है।
ज्ञान-जिस प्रकार सूर्य इस सम्पूर्ण सौर मण्डल को प्रकाशित करता है अर्थात सूर्य के कारण संसार है, जीवन है आदि उसी प्रकार ज्ञान सम्पूर्ण क्षेत्र को जीवन देता है, ज्ञानवान बना देता है क्रियाशील बना देता है।
1. सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है। सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है।
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14.आत्मा को जो पुरुष नित्य, अजन्मा, अव्यय जानता है, उसे बोध हो जाता है। ज्ञान को जो पुरुष नित्य, अजन्मा, अव्यय जानता है, उसे बोध हो जाता है।
15.जीवात्मा के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह आत्मा पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है। देहस्थ ज्ञान के शरीर उसके वस्त्र हैं, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार यह ज्ञान पुराने शरीर त्याग कर नया शरीर धारण करता है।
16.आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते हैं।ज्ञानहैं। ज्ञान को शस्त्र नहीं काट सकते हैं।
16.आत्मा को आग में जलाया नहीं जा सकता. ज्ञान को आग में जलाया नहीं जा सकता.
17.आत्मा को जल गीला नहीं कर सकता. ज्ञान को जल गीला नहीं कर सकता.
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41.आत्म शक्ति से ही यह सम्पूर्ण जगत चेष्टा करता है श्री ब्रह्मा और श्री हरि विष्णु आत्म शक्ति से ही उत्पत्ति एवं जगत पालन का कार्य करते हैं। ज्ञान शक्ति से ही यह सम्पूर्ण जगत चेष्टा करता है श्री ब्रह्मा और श्री हरि विष्णु ज्ञान शक्ति से ही उत्पत्ति एवं जगत पालन का कार्य करते हैं।
42.आत्मा ही इस सृष्टि का आदि अन्त और मध्य है अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि आत्मा से ही जन्मती है, आत्मा में ही स्थित रहती है और आत्मा में ही ही लय हो जाती है। आत्मा ही सृष्टि का बीज है और सृष्टि का विस्तार भी आत्मा ही है और यह जगत आत्मा का ही रूप है। ज्ञान ही इस सृष्टि का आदि अन्त और मध्य है अर्थात सम्पूर्ण सृष्टि ज्ञानसे ही जन्मती है, ज्ञानमें ही स्थित रहती है औरज्ञान में ही ही लय हो जाती है। ज्ञानही सृष्टि का बीज है और सृष्टि का विस्तार भी ज्ञान ही है और यह जगत ज्ञान का ही रूप है।
43.आत्मा की ज्ञान शक्ति ही क्रियाशक्ति उत्पन्न करती है। उससे सभी प्रकृति के तत्व बुद्धि मन इन्द्रियाँ अनेकानेक कार्य करने लगती हैं। आत्मा सदा अकर्ता अक्रिय है।ज्ञानहै। ज्ञान की ज्ञान शक्ति ही क्रियाशक्ति उत्पन्न करती है। उससे सभी प्रकृति के तत्व बुद्धि मन इन्द्रियाँ अनेकानेक कार्य करने लगती हैं। ज्ञान सदा अकर्ता अक्रिय है।
44.सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है। असत् जिसे जड़ या माया कहते हैं, यह वास्तव में है ही नहीं। जब तक पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तब तक सत् और असत् अलग अलग दिखायी देते हैं। ज्ञान होने पर असत् का लोप हो जाता है वह ब्रह्म में तिरोहित हो जाता है। उस समय न दृष्टा रहता है न दृश्य। केवल आत्मतत्व जो नित्य है, सत्य है, सदा है, वही रहता है। सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान है वही सत् है, वही नित्य है, सदा है। असत् जिसे जड़ या माया कहते हैं, यह वास्तव में है ही नहीं। जब तक पूर्ण ज्ञान नहीं हो जाता तब तक सत् और असत् अलग अलग दिखायी देते हैं। ज्ञान होने पर असत् का लोप हो जाता है वह ब्रह्म में तिरोहित हो जाता है। उस समय न दृष्टा रहता है न दृश्य। केवल आत्मतत्व जो नित्य है, सत्य है, सदा है, वही रहता है।
45.आत्मा परम बोध है। ज्ञान को प्राप्त होना ही परम बोध है।
46.आत्मा महाबुद्धि है। ज्ञान महाबुद्धि है।
47.आत्मा ही ईश्वर है, वही ब्रह्म, परब्रह्म है परम बोध है, अस्मिता है। ज्ञान ही ईश्वर है, वही ब्रह्म, परब्रह्म है परम बोध है, अस्मिता है।
48.आत्मा ही सत् चित आनन्द है। ज्ञान ही सत् चित आनन्द है।
49.आत्मा आकाश के समान निर्लेप और सूर्य के समान अप्रकाश्य है। ज्ञान आकाश के समान निर्लेप और सूर्य के समान अप्रकाश्य है।
50.सृष्टि का मूल तत्व आत्मतत्व है। सृष्टि का मूल तत्व ज्ञान है। इस मूल तत्त्व की उपलब्धि परम बोध होने पर ही होती है।ज्ञानहै। ज्ञान ही पूर्णता है।
 
(ref- article of Prof basant joshi)
"https://hi.wikipedia.org/wiki/आत्मा" से प्राप्त