"इन्दिरा गांधी": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: डॉट (.) के स्थान पर पूर्णविराम (।) और लाघव चिह्न प्रयुक्त किये।
छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया।
पंक्ति 80:
इन्दिरा ने युवा लड़के-लड़कियों के लिए [[वानर सेना]] बनाई, जिसने विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस के साथ साथ कांगेस के नेताओं की मदद में संवेदनशील प्रकाशनों तथा प्रतिबंधित सामग्रीओं का परिसंचरण कर [[भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] में छोटी लेकिन उल्लेखनीय भूमिका निभाई थी। प्रायः दोहराए जानेवाली कहानी है की उन्होंने पुलिस की नजरदारी में रहे अपने पिता के घर से बचाकर एक महत्वपूर्ण दस्तावेज, जिसमे 1930 दशक के शुरुआत की एक प्रमुख क्रांतिकारी पहल की योजना थी, को अपने स्कूलबैग के माध्यम से बहार उड़ा लिया था।
 
सन् 1936 में उनकी माँ कमला नेहरू [[तपेदिक]] से एक लंबे संघर्ष के बाद अंततः स्वर्गवासी हो गईं। इंदिरा तब 18 वर्ष की थीं और इस प्रकार अपने बचपन में उन्हें कभी भी एक स्थिर पारिवारिक जीवन का अनुभव नही मिल पाया था। उन्होंने प्रमुख भारतीय, यूरोपीय तथा ब्रिटिश स्कूलों में अध्यन किया, जैसे[[शान्तिनिकेतन]], [[बैडमिंटन स्कूल]] और[[ऑक्सफोर्ड]]।
 
1930 दशक के अन्तिम चरण में [[ऑक्सफ़र्ड विश्वविद्यालय]], [[इंग्लैंड]] के [[सोमरविल्ले कॉलेज]] में अपनी पढ़ाई के दौरान वे लन्दन में आधारित स्वतंत्रता के प्रति कट्टर समर्थक [[भारतीय लीग]] की सदस्य बनीं।<ref>फ्रैंक, कैथेराइन (2001)''इंदिरा :इंदिरा नेहरू गांधी की जीवनी''</ref>
 
महाद्वीप यूरोप और ब्रिटेन में रहते समय उनकी मुलाक़ात एक [[पारसी]] कांग्रेस कार्यकर्ता, [[फिरोज़ गाँधी]] से हुई और अंततः १६ मार्च १९४२ को आनंद भवन [[इलाहाबाद]] में एक निजी [[आदि धर्मं]] [[ब्रह्म]]-वैदिक समारोह में उनसे विवाह किया<ref>"इंदिरा :इंदिरा नेहरू गांधी की जीवनी - केथरीन फ्रंक्स 2002 पन्ना 177 आईएसबीएन:039573097X"</ref> ठीक[[भारत छोडो आन्दोलन]] की शुरुआत से पहले जब [[महात्मा गांधी]] और कांग्रेस पार्टी द्वारा चरम एवं पुरजोर राष्ट्रीय विद्रोह शुरू की गई। सितम्बर 1942 में वे ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार की गयीं और बिना कोई आरोप के हिरासत में डाल दिये गये थे।अंततःथे। अंततः 243 दिनों से अधिक जेल में बिताने के बाद उन्हें [[१३ मई]] [[1943]] को रिहा किया गया।<ref>फ्रैंक, केथरीन (2001)''इंदिरा:इंदिरा नेहरू गाँधी''की जीवनी.पन्ना 186</ref> 1944 में उन्होंने फिरोज गांधी के साथ [[राजीव गांधी]]और इसके दो साल के बाद [[संजय गाँधी]] को जन्म दिया।
 
सन् 1947 के [[भारत विभाजन]] अराजकता के दौरान उन्होंने शरणार्थी शिविरों को संगठित करने तथा पाकिस्तान से आये लाखों शरणार्थियों के लिए चिकित्सा सम्बन्धी देखभाल प्रदान करने में मदद की। उनके लिए प्रमुख सार्वजनिक सेवा का यह पहला मौका था।
पंक्ति 101:
 
<blockquote>
"1965 के बाद उत्तराधिकार के लिए श्रीमती गांधी और उनके प्रतिद्वंद्वियों, केंद्रीय कांग्रेस [पार्टी] नेतृत्व के बीच संघर्ष के दौरान, बहुत से राज्य, प्रदेश कांग्रेस[पार्टी] संगठनों से उच्च जाति के नेताओं को पदच्युत कर पिछड़ी जाति के व्यक्तियों को प्रतिस्थापित करतेहुए उन जातिओं के वोट इकठ्ठा करने में जुटगये ताकि राज्य कांग्रेस [पार्टी]में अपने विपक्ष तथा विरोधिओं को मात दिया जा सके. इन हस्तक्षेपों के परिणामों, जिनमें से कुछेक को उचित सामाजिक प्रगतिशील उपलब्धि माने जा सकते हैं, तथापि, अक्सर अंतर-जातीय क्षेत्रीय संघर्षों को तीव्रतर बनने के कारण बने...<ref>Ibid #2 पी.154</ref>
</blockquote>
 
पंक्ति 131:
1960 के प्रारंभिक काल में संगठित हरित क्रांति गहन कृषि जिला कार्यक्रम (आईऐडिपि) का अनौपचारिक नाम था, जिसके तहत शहरों में रहनेवाले लोगों के लिए, जिनके समर्थन पर गांधी --यूँ की, वास्तव में समस्त भारतीय राजनितिक, गहरे रूपसे निर्भरशील रहे थे, प्रचुर मात्रा में सस्ते अनाज की निश्चयता मिली।<ref>Ibid. #3 पी.295</ref> यह कार्यक्रम चार चरणों पर आधारित था:
# नई किस्मों के बीज
# स्वीकृत भारतीय कृषि के रसायानीकरण की आवश्यकता को स्वीकृती, जैसे की उर्वरकों, कीटनाशकों, घास -फूस निवारकों, इत्यादि
# नई और बेहतर मौजूदा बीज किस्मों को विकसित करने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सहकारी अनुसंधान की प्रतिबद्धता
# भूमि अनुदान कॉलेजों के रूप में कृषि संस्थानों के विकास की वैज्ञानिक अवधारणा,<ref>किसान, बी.एच.<i>'हरित क्रांति' के परिप्रेक्ष्य में आधुनिक एशियाई अध्ययन, xx नंबर 1 (फरवरी, 1986) पन्ना.177</ref>
दस वर्षों तक चली यह कार्यक्रम गेहूं उत्पादन में अंततः तीनगुना वृद्धि तथा चावल में कम लेकिन आकर्षणीय वृद्धि लायी; जबकि वैसे अनाजों के क्षेत्र में जैसे[[बाजरा]], [[चना]] एवं मोटे अनाज (क्षेत्रों एवं जनसंख्या वृद्धि के लिए समायोजन पर ध्यान रखते हुए) कम या कोई वृद्धि नही हुई--फिर भी इन क्षेत्रों में एक अपेक्षाकृत स्थिर उपज बरकरार रहे।
 
पंक्ति 141:
 
[[गरीबी हटाओ]] के तहत कार्यक्रम, हालाँकि स्थानीय रूपसे चलाये गये, परन्तु उनका वित्तपोषण, विकास, पर्यवेक्षण एवं कर्मिकरण नई दिल्ली तथा [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] दल द्वारा किया गया।
"ये कार्यक्रम केंद्रीय राजनैतिक नेतृत्व को समूचे देशभर में नये एवं विशाल संसाधनों के वितरित करने के मालिकाना भी प्रस्तुत किए..."<ref>रथ, नीलकंठ,''"गरीबी हटाओ":क्या आइआरडीपी यह कर सकती है ?"''(ईडब्लूपी, xx, नंo.6) फ़रवरी,1981.</ref>'अंततः,[[गरीबी हटाओ]] गरीबों के बहुत कम काम आये:आर्थिक विकास के लिए आवंटित सभी निधियों के मात्र 4% तीन प्रमुख गरीबी हटाओ कार्यक्रमों के हिस्से गये और लगभग कोईभी "गरीब से गरीब" तबके तक नही पहुँची। इस तरह यद्यपि यह कार्यक्रम गरीबी घटाने में असफल रही, इसने गांधी को चुनाव जितानेका लक्ष्य हासिल कर लिया।
 
=== एक्छ्त्रवाद की ओर झुकाव ===
पंक्ति 156:
=== डिक्री द्वारा शासन / आदेश आधारित शासन ===
 
कुछ ही महीने के भीतर दो विपक्षीदल शासित राज्यों [[गुजरात]] और [[तमिल नाडु]] पर [[राष्ट्रपति शासन]] थोप दिया गया जिसके फलस्वरूप पूरे देश को प्रत्यक्ष केन्द्रीय शासन के अधीन ले लिया गया।<ref>कोचानेक, स्टेनली,''मिसेज़ गाँधी'स पिरामिड:दा न्यू कांग्रेस''(वेस्टव्यू प्रेस, बोल्डर, सीओ 1976) पी.98</ref> पुलिस को कर्फ़्यू लागू करने तथा नागरिकों को अनिश्चितकालीन रोक रखने की क्षमता सौंपी गयी एवं सभी प्रकाशनों को [[सुचना और प्रसारण मंत्रालय (भारत)|सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय]] के पर्याप्त सेंसर व्यवस्था के अधीन कर दिया गया। [[इन्द्र कुमार गुजराल]], एक भावी प्रधानमंत्री, ने खुद अपने काम में संजय गांधी की दखलंदाजी के विरोध में [[सुचना और प्रसारण मंत्री|सूचना और प्रसारण मंत्रीपद]] से इस्तीफा दे दिया। अंततः आसन्न विधानसभा चुनाव अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिए गए तथा सम्बंधित राज्य के राज्यपाल की सिफारिश पर राज्य सरकार की बर्खास्तगी के संवैधानिक प्रावधान के अलोक में सभी विपक्षी शासित राज्य सरकारों को हटा दिया गया।
 
गांधी ने स्वयं के असाधारण अधिकार प्राप्ति हेतु आपातकालीन प्रावधानों का इस्तेमाल किया।
<blockquote>
"उनके पिता नेहरू के विपरीत, जो अपने विधायी दलों और राज्य पार्टी संगठनों के नियंत्रण में मजबूत मुख्यमंत्रियों से निपटना पसंद करते थे, श्रीमती गांधी प्रत्येक कांग्रेसी मुख्यमंत्री को, जिनका एक स्वतंत्र आधार होता, हटाने तथा उन मंत्रिओं को जो उनके प्रति व्यक्तिगत रूप से वफादार होते, उनके स्थालाभिसिक्त करने में लग गईं... फिर भी राज्यों में स्थिरता नहीं रखी जा सकी..."<ref>ब्रास, पौल आर., ''आजादी के बाद भारत की राजनीति'', (कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, इंग्लैंड 1995) पी.40</ref>
</blockquote>
 
यह भी आरोपित होता है की वह आगे राष्ट्रपति अहमद के समक्ष वैसे [[आदेश|आध्यादेशों]] के जारी करने का प्रस्ताव पेश की जिसमे [[भारत की संसद|संसद]] में बहस होने की जरूरत न हो और उन्हें [[आदेश आधारित शासन]] की अनुमति रहे।
 
साथ ही साथ, गांधी की सरकार ने प्रतिवादिओं को उखाड़ फेंकने तथा हजारों के तादाद में राजनीतिक कार्यकर्ताओं के गिरिफ्तारी और आटक रखने का एक अभियान प्रारम्भ किया;[[जग मोहन]] के पर्यवेक्षण में, जो की बाद में दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर रहे, [[जामा मस्जिद, दिल्ली|जामा मस्जिद]] के आसपास बसे बस्तियों के हटाने में संजय का हाथ रहा जिसमे कथित तौर पर हजारों लोग बेघर हुए और सैकड़ों मारे गये और इस तरह देश की राजधानी के उन भागों में सांप्रदायिक कटुता पैदा कर दी; और हजरों पुरुषों पर बलपूर्वक [[नसबंदी]] का परिवार नियोजन कार्यक्रम चलाया गया, जो प्रायश: बहुत निम्नस्तर से लागु किया गया था।
 
=== चुनाव ===
मतदाताओं को उस शासन को मंज़ूरी देने का एक और मौका देने के लिए गाँधी ने 1977 में चुनाव बुलाए। भारी सेंसर लगी प्रेस उनके बारे में जो लिखती थी, शायद उससे गांधी अपनी लोकप्रियता का हिसाब निहायत ग़लत लगायी होंगी। वजह जो भी रही हो, वह [[जनता दल]] से बुरी तरह से हार गयीं। लंबे समय से उनके प्रतिद्वंद्वी रहे देसाई के नेतृत्व तथा जय प्रकाश नारायण के आध्यात्मिक मार्गदर्शन में जनता दल ने भारत के पास "लोकतंत्र और तानाशाही" के बीच चुनाव का आखरी मौका दर्शाते हुए चुनाव जीत लिए। इंदिरा और संजय गांधी दोनों ने अपनी सीट खो दीं और कांग्रेस घटकर 153 सीटों में सिमट गई (पिछली लोकसभा में 350 की तुलना में) जिसमे 92 दक्षिण से थीं।
 
=== हटाना, गिरफ्तारी और वापस लौटना ===
 
देसाई प्रधानमंत्री बने और 1969 के सरकारी पसंद [[नीलम संजीव रेड्डी]] गणतंत्र के राष्ट्रपति बनाये गए। गाँधी को जबतक 1978 के [[उप -चुनाव]] में जीत नहीं हासिल हुई, उन्होंने अपने आप को कर्महीन, आयहीन और गृहहीन पाया। १९७७ के चुनाव अभियान में कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया: [[जगजीवन राम]] जैसे समर्थकों ने उनका साथ छोड़ दिया। कांग्रेस (गांधी) दल अब संसद में आधिकारिक तौर पर विपक्ष होते हुए एक बहुत छोटा समूह रह गया था।
 
गठबंधन के विभिन्न पक्षों में आपसी लडाई में लिप्तता के चलते शासन में असमर्थ जनता सरकार के गृह मंत्री [[चौधरी चरण सिंह]] कई आरोपों में इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी को गिरफ्तार करने के आदेश दिए, जिनमे से कोई एक भी भारतीय अदालत में साबित करना आसन नहीं था। इस गिरफ्तारी का मतलब था इंदिरा स्वतः ही संसद से निष्कासित हो गई। परन्तु यह रणनीति उल्टे अपदापूर्ण बन गई। उनकी गिरफ्तारी और लंबे समय तक चल रहे मुकदमे से उन्हें बहुत से वैसे लोगों से सहानुभूति मिली जो सिर्फ दो वर्ष पहले उन्हें तानाशाह समझ डर गये थे।
 
जनता गठबंधन सिर्फ़ श्रीमती गांधी (या "वह औरत" जैसा कि कुछ लोगोने उन्हें कहा) की नफरत से एकजुट हुआ था।छोटेथा। छोटे छोटे साधारण मुद्दों पर आपसी कलहों में सरकार फंसकर रह गयी थी और गांधी इस स्थिति का उपयोग अपने पक्ष में करने में सक्षम थीं।उन्होंनेथीं। उन्होंने फिर से, आपातकाल के दौरान हुई "गलतियों" के लिए कौशलपूर्ण ढंग से क्षमाप्रार्थी होकर भाषण देना प्रारम्भ कर दिया. जून 1979 में देसाई ने इस्तीफा दिया और श्रीमती गांधी द्वारा वादा किये जाने पर कि कांग्रेस बाहर से उनके सरकार का समर्थन करेगी, रेड्डी के द्वारा चरण सिंह प्रधान मंत्री नियुक्त किए गये।
 
एक छोटे अंतराल के बाद, उन्होंने अपना प्रारंभिक समर्थन वापस ले लिया और राष्ट्रपति रेड्डीने 1979 की सर्दियों में संसद को भंग कर दिया.अगले जनवरी में आयोजित चुनावों में कांग्रेस पुनः सत्ता में वापस आ गया था
पंक्ति 218:
== बाहरी सम्बन्ध ==
* [http://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_4999489.html शक्ति व मुक्ति की प्रतीक इंदिरा] (जागरण)
* [http://www.nytimes.com/learning/general/onthisday/bday/1119.html निधन-सूचना, न्यूयार्क टाईम्स, 1 नवम्बर, 1984" भारत में राजनैतिक ह्त्या:एक नेता इच्छाशक्ति से परिपूर्ण ; इंदिरा गाँधी, राजनीती के लिए जन्मी और भारत पर अपना छाप छोड़ गयीं"]
* [http://www.sikhfauj.com/blogs/29/Indira_Ghandi/ इंदिरा की एक झलक]
* [http://www.achhikhabar.com/2012/06/21/indira-gandhi-quotes-in-hindi/ इंदिरा गांधी के अनमोल विचार]