"ईजियाई सभ्यता": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया।
पंक्ति 30:
पिछले युगों में ईजियाई सभ्यता के निर्माताओं ने राजनीतिक दृष्टि से अनेक सफल प्रयत्न किए। आसपास के समुद्रों और द्वीपों पर उन्होंने अपना साम्राज्य फैलाया और प्रमाणत: उनका वह साम्राज्य ग्रीस और लघुएशिया (अनातोलिया) पर भी फैला जहाँ उन्होंने मिकीनी, त्राय आदि नगरों के चतुर्दिक अपने उपनिवेश बनाए। परंतु संभवत: साम्राज्यनिर्माण उनके बूते का न था और उन्होंने उस प्रयत्न में अपने आपको ही नष्ट कर दिया। यह सही है कि ग्रीस के स्थल भाग पर उनका अधिकार हो जाने से उनकी आय बढ़ गई पर उपनिवेशों की सँभाल स्वयं बड़े श्रम का कार्य था, जिसका निर्वाह कर सकना उनके लिए संभव न हुआ। परिणामत: जब बाहर से आक्रमणकारी आए तब आमोदप्रिय मिनोई नागरिक उनकी चोटों का सफल उत्तर न दे सके और उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। परंतु विजेताओं को यह निष्क्रिय आत्मसमर्पण स्वीकार न था और उन्होंने उसे नष्ट करके ही दम लिया।
 
यह कहना कठिन है कि ये आक्रमणकारी कौन थे। इस संबंध में विद्वानों के अनेक मत हैं। कुछ उन्हें मूल ग्रीक मानते हैं, कुछ एशियाई, कुछ दोरियाई, कुछ खत्ती, कुछ अनातोलिया के निवासी। पंरतु प्राय: सभी, कम से कम आंशिक रूप में, यह मानते हैं कि आक्रांता आर्य जाति के थे और संभवत: उत्तर से आए थे जो अपने मिनोई शत्रुओं को नष्ट कर उनकी ही बस्तियों में बस गए। नाश के कार्य में वे प्रधानत: प्रवीण थे क्योंकि उन्होंने एक ईटं दूसरी ईटं पर न रहने दी। आक्रांता धारावत्‌ एक के बाद एक आते गए और ग्रीक नगरों को ध्वस्त करते गए। फिर उन्होंने सागर लाँघ क्रीत के समृद्ध राजमहलों को लूटा जिनके ऐश्वर्य के कुछ प्रमाण उन्होंने उनके स्थलवर्ती उपनिवेशों में ही पा लिए थे। और इन्होंने वहाँ के आकर्षक जनप्रिय मुदित जीवन का अंत कर डाला। क्नोसस और फ़ाइस्तस के महलों में सदियों से समृद्धि संचित होती आई थी, रुचि की वस्तुएँ एकत्र होती आई थीं, उन सबको, आधार और आधेय के साथ, उन बर्बर आक्रांताओं ने अग्नि की लपटों में डाल भस्मसात्‌ कर दिया। सहस्राब्दियों क्रीत की वह ईजियाई सभ्यता समाधिस्थ पड़ी रही, जब तक 19वीं सदी में आर्थर ईवांस ने खोदकर उसे जगा न दिया।
 
== होमरिक काव्य ==