"कथक": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया।
पंक्ति 7:
 
=='''इतिहास'''==
*प्राचीन काल से कथाकास, नृत्य के कुछ तत्वों के साथ महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं से कहानियां सुनाया करते थे। कथाकास के परंपरा वंशानुगत थे। यह नृत्य पीढ़ी दर पीढ़ी उभारने लगा। तीसरी और चौथी सदियों के साहित्यिक संदर्भ से हमें इन कथाकास के बारे में पता चलता है। मिथिला के कमलेश्वर के पुस्तकालय में ऎसे बहुत साहित्यिक संदर्भ मिले थे।
 
*तेरहवी सदी तक इस नृत्य में निश्चित शैली में उभर आया था। स्मरक अक्षरों और बोल की भी तकनीकी सुविधाओं का विकास हो गई। भक्ति आंदोलन के समय र।सलीलार। सलीला कथक पर एक जबरदस्त प्रभाव पड़ा। इस तरह का नृत्य प्रदर्शन कथावछकास मंदिरों में भी करने लगे। कथक राधा कृष्ण की के जीवन के दास्तां बयान करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था। श्री कृष्ण के वृंदावन की पवित्र भूमि में कारनामे और कृष्ण लीला (कृष्ण के बचपन) के किस्से का लोकप्रिय प्रदर्शन किया जाता था। इस समय नृत्य आध्यात्मिकता से दुर हटकर लोक तत्वों से प्रभावित होने लगा था।
 
*मुगलों के युग में फ़ारसी नर्तकियों के सीधे पैर से नृत्य के कारण और भी प्रसिद्ध हो गया।पैरगया। पैर पर १५० टखने की घंटी पहने कदमों का उपयोग कर ताल के काम को दिखाते थे।इसथे। इस अवधि के दौरान चक्कर भी शुरु किया गया। इस नृत्य में लचीलापन आ गया।तबलागया। तबला और पखवाज इस नृत्य में पुरक है।
 
इसके बाद समय के साथ इस नृत्य में बहुत सारी महत्वपूर्ण हस्ती के योगदान से बदलाव आए।
पंक्ति 19:
* '''ठाट''', एक पारंपरिक प्रदर्शन जहां नर्तकी चक्कर के साथ नाटक कर सम पर आकर एक मुद्रा लेकर खड़ी होती है।
* '''आमद''', अर्थात 'प्रवेश' जो तालबद्ध बोल का पहला परिचय होता है।
* '''सलामी''', मुस्लिम शैली में दर्शकों के लिए एक अभिवादन होता है।
* '''कवित्''', कविता के अर्थ को नृत्य में प्रदर्शन किया जाता है।
* '''पड़न''', एक नृत्य जहां केवल तबला का नहीं बल्कि पखवाज का भी उपयोग किया जाता है।
* '''परमेलु''', एक बोल या रचना जहां प्रकृति का प्रदर्शनी होता है।
* '''गत''', यहां दैनिक जीवन के सुंदर चाल-चलन दिखाया जाता है।
* '''लड़ी''', एक विषय पर बदलाव फुटवर्क की रचना।
* '''तिहाई''', एक रचना जहां फुटवर्क तीन बार दोहराया जाती है और सम पर नाटकीय रूप से समाप्त हो जाती है।
*'''नृत्य:''' भाव को मौखिक टुकड़े की एक विशेष प्रदर्शन शैली में दिखाया जाता है। मुगल दरबार में यह अभिनय शैली की उत्पत्ति हुई। इसकी वजह से यह महफिल या दरबार के लिए अधिक अनुकूल है ताकि दर्शकों को कलाकार और नर्तकी के चेहरे की अभिव्यक्त की हुई बारीकियों को देख सके।कसके। क ठुमरी गाया जाता है और उसे चेहरे, अभिनय और हाथ आंदोलनों के साथ व्याख्या की जाति है।
 
=='''घराना'''==
=== लखनऊ घराना ===
अवध के नवाब [[वाजिद आली शाह]] के दरबार में इसका जन्म हुआ।लखनऊहुआ। लखनऊ शैली के कथक नृत्य में सुंदरता, प्राकृतिक संतुलन होती है। कलात्मक रचनाएँ, ठुमरी आदि अभिनय के साथ साथ होरिस (शाब्दिक अभिनय) और आशु रचनाएँ जैसे भावपूर्ण शैली भी होती हैं। वर्तमान में, पंडित बिरजु महाराज (अच्छन महाराजजी के बेटे) इस घराने के मुख्य प्रतिनिधि माने जाते हैं।
 
=== जयपुर घराना ===
राजस्थान के कच्छवा राजा के दरबार में इसका जन्म हुआ। शक्तिशाली फुटवर्क, कई चक्कर और विभिन्न ताल में जटिल रचनाओं के रूप में नृत्य के अधिक तकनीकी पहलुएँ यहाँ महत्वपुर्ण है।यहाँहै। यहाँ पखवाज का बहुत उपयोग होता है।
 
=== बनारस घराना ===
जानकीप्रसाद ने इस घराने का प्रतिष्ठा किया था।यहाँथा। यहाँ नटवरी का अनन्य उपयोग होता है एवं पखवाज और तबला का इस्तेमाल कम होता है। यहाँ ठाट और ततकार में अंतर होता है। न्यूनतम चक्कर डाएं और बाएँ दोनों पक्षों से लिया जाता है।
 
=== रायगढ़ घराना ===
"https://hi.wikipedia.org/wiki/कथक" से प्राप्त