"कमाल अतातुर्क": अवतरणों में अंतर
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वहाँ वह अध्ययन के साथ-साथ बुरी संगत में घूमते रहे। कुछ काल तक उद्दण्डतापूर्ण जीवन बिताने के बाद वह '''वतन''' नामक एक गुप्त क्रान्तिकारी दल के पहले सदस्य बने और थोड़े ही दिनों बाद उसके नेता हो गये। वतन का उद्देश्य एक तरफ सुल्तान की तानाशाही और दूसरी तरफ विदेशी षड्यन्त्रों को जड से मिटाना था। एक दिन दल की बैठक चल रही थी कि किसी गुप्तचर ने सुल्तान को खबर दे दी और सबके सब षड्यन्त्रकारी अफसर गिरफ्तार करके जेल भेज दिये गये। प्रचलित कानून के अनुसार उन सबको मृत्युदण्ड दिया जा सकता था, पर दुर्बलचित्त सुल्तान को भय था कि कहीं ऐसा करने पर देश में विद्रोह न भड़क उठे, अत: उसने सबकों क्षमादान देने का निश्चय किया।
== क्षमादान के पश्चात फिर वही कार्य ==
इस प्रकार अन्य सनिकों के साथ कमाल भी क्षमादान में छोड दिये गये। तत्पश्चात सुल्तान ने द्रूज जाति के विद्रोह को दबाने के लिये उन्हें दमिश्क भेज दिया। वहाँ कमाल ने काम तो कमाल का ही किया, पर स्वभाव के अनुसार कुस्तन्तुनिया वापस लौटते ही उन्होंने स्ताम्बूल (स्टैम्बोल) में एक कमरा लेकर वतन-ओ-हुर्रियत पार्टी का कार्यालय खोलकर उसमें आजादी की गुप्त संस्था का कार्य आरम्भ कर दिया। इसी बीच उन्हें यह ज्ञात हुआ कि मकदूनिया में सुल्तान के विरुद्ध खुला विद्रोह होने वाला है। मौके की नजाकत को भाँपते हुए कमाल ने सुल्तान की सेना से छुट्टी ले ली और जाफ़ा, मिरुा व एथेंस होते हुए वेश बदलकर विद्रोह के केन्द्र सलोनिका जा पहुँचे। परन्तु वहाँ पर उन्हें पहचान लिया गया।
=== पलायनावस्था ===
फिर वह ग्रीस होते हुए जाफ़ा की ओर भागे। पर तब तक उनकी गिरफ्तारी का आदेश वहाँ भी पहुँच चुका था। अहमद बे नामक एक अफसर पर कमाल को पकड़ने का भार था, पर चूँकि अहमद स्वयं वतन का सदस्य था, इसलिए उसने कमाल को गिरफ्तार करने के बजाय गाजा मोर्चे पर भेज दिया और यह सुल्तान को यह रिपोर्ट भेज दी कि वह छुट्टी पर गये ही नहीं थे।
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