छो पूर्णविराम (।) से पूर्व के खाली स्थान को हटाया।
छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया।
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जग्गरों का आयोजन गांवों में होता है और अब ये शहरी क्षेत्रों में सामान्य नहीं होते। इन अवसरों पर स्थानीय देवी-देवताओं का आवाहन गीतों तथा नृत्यों द्वारा समुदाय में शामिल होने के लिये किया जाता है और इसका समापन तब होता है जब देवी या देवता भीड़ के किसी सदस्य के ऊपर आ जाये। महाभारत की कुछ घटनाओं की अनुकृति पांडव नृत्य भी मंचन कला का सामान्य रूप होता है।
 
जीतू बगड़वाल या एक स्थानीय नायक या नायिका पर आधारित गीत तथा नंदा देवी की प्रशंसा के गीत भी सामान्य हैं, विशेषकर नंद राज जाट के समय।गीतसमय। गीत एवं नृत्य का साथ ढ़ोल एवं दामों निभाते हैं जिसे दास कहे जाने वाले एक विशेष जाति के लोग बजाते हैं।
 
 
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मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा हुई जबकि उमा देवी की मूर्ति इसके बहुत पहले ही स्थापित थी। कहा जाता है कि संक्रसेरा के एक खेत में उमा का जन्म हुआ। एक डिमरी ब्राह्मण को देवी ने स्वप्न में आकर अलकनंदा एवं पिंडर नदियों के संगम पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया। डिमरियों को उमा देवी का मायके माना जाता है जबकि कापरिपट्टी के शिव मंदिर को उनकी ससुराल समझा जाता है। हर कुछ वर्षों बाद देवी 6 महीने की जोशीमठ तक गांवों के दौरे पर निकलती है। देवी जब इस क्षेत्र से गुजरती है तो प्रत्येक गांव के भक्तों द्वारा पूजा, मडान तथा जाग्गरों का आयोजन किया जाता है जहां से वह गुजरती है। जब वह अपने मंदिर लौटती है तो एक भगवती पूजा कर उन्हें मंदिर में पुनर्स्थापित कर दिया जाता है। इस मंदिर पर नवरात्री समारोह धूम-धाम से मनाया जाता है।
 
यहां पूजित प्रतिमाओं में उमा देवी, पार्वती, गणेश, भगवान शिव तथा भगवान विष्णु शामिल हैं। वास्तव में, उमा देवी की मूर्ति का दर्शन ठीक से नहीं हो पाता क्योंकि इनकी प्रतिमा दाहिने कोने में स्थापित है जो गर्भगृह के प्रवेश द्वार के सामने नहीं पड़ता।वर्षपड़ता। वर्ष 1803 की बाढ़ में पुराना मंदिर ध्वस्त हो गया तथा गर्भगृह ही मौलिक है। इसके सामने का निर्माण वर्ष 1972 में किया गया।
 
मंदिर के पुजारी, आर पी पुजारी, पुजारियों की चतुर्थ पीढ़ी के हैं जो पीढ़ियों से मंदिर के प्रभारी पुजारी रहे हैं। यहां पुजारियों के दस परिवार हैं जो रोस्टर प्रणाली के अनुसार बारी-बारी से कार्यभार संभालते हैं। ये परिवार ही सरकार की सहायता के बिना ही मंदिर की देखभाल एवं रख-रखाव करते हैं।