"इतालवी भाषा": अवतरणों में अंतर

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नवीं सदी के आरंभ की एक पहले "इंदोवीनेल्लो वेरोनेसे" (वेरोना की पहले) मिलती है जिसमें आधुनिक इतालवी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है। उसके पूर्व के भी लातीनी अपभ्रंश (लातीनो बोल्गारे) के प्रयोग लातीनी में लिखे गए हिसाब के कागजपत्रों में मिलते हैं जो आधुनिक भाषा के प्रारंभ की सूचना देते हैं। सातवीं और आठवीं सदी में लिखित पत्रों में स्थानों के नाम तथा कुछ शब्दों के रूप में मिलते हैं जो नवीन भाषा के द्योतक हैं। साहित्यिक लातीनी और जनसामान्य की बोली में धीरे-धीरे अंतर बढ़ता गया और बोली की लातीनी से ही आधुनिक इतालवी का विकास हुआ। इस बोली के अनेक नमूने मिलते हैं। सन् 960 में मोंतेकास्सीनो के मठ की सीमा के पंचायत के प्रसंग में एक गवाही का बयान तत्कालीन बोली में मिलता है; इसी प्रकार की बोली तथा लातीनी अपभ्रंश में लिखित लेख रोम के संत क्लेमेंते के गिरजे में मिलता है। ऊंब्रिया तथा मार्के में भी 11वीं 12वीं सदी की भाषा के नमूने धार्मिक स्वीकारोक्तियों के रूप में मिलते हैं, किंतु इतालवी भाषा की पद्यबद्ध रचनाओं के उदाहरण सिसिली के सम्राट् फ्रेडरिक द्वितीय (13वीं सदी) के दरबारी कवियों के मिलते हैं। ये कविताएँ सिसिली की बोली में रची गई होंगी। श्रृंगार ही इन कविताओं का प्रधान विषय है। पिएर देल्ला विन्या, याकोपो द अक्वीनो आदि अनेक पद्यरचयिता फ्रेडरिक के दरबार में थे। वह स्वयं कवि था।
 
वेनेवेत्तो के युद्ध के पश्चात् साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्र सिसिली के बजाय तोस्काना हो गया जहाँ शृंगारविषयक गीतिकाव्य की रचना हुई, गूइत्तोने देल वीवा द आरेज्जो (मृत्यु 1294 ई.) इस धारा का प्रधान कवि था। फ्लोरेंस, पीसा, लूक्का तथा आरेज्जो में इस काल में अनेक कवियों ने तत्कालीन बोली में कविताएँ लिखीं। बोलोन (इता. बोलोन्या) में साहित्यिक भाषा का रूप स्थिर करने का प्रयास किया गया। सिसिली और तोस्काना काव्यधाराओं ने साहित्यिक इतालवी का जो रूप प्रस्तुत किया उसे अंतिम और स्थिर रूप दिया "दोल्चे स्तील नोवो" (मीठी नवीन शैली) के कवियों ने। इन कवियों ने कलात्मक संयम, परिष्कृत रुचि तथा परिमार्जित समृद्ध भाषा का ऐसा रूप रखा कि आगे की कई सदियों के इतालवी लेखक उसको आदर्श मानकर इसी में लिखते रहे। दांते अलीमिएरी (1265-1321) ने इसी नवीन शैली में, तोस्काना की बोली में, अपनी महान्महान कृति "दिवीना कोमेदिया" लिखी। दांते ने "कोन्वीविओ" में गद्य का भी परिष्कृत रूप प्रस्तुत किया और गूइदो फाबा तथा गूइत्तोने द आरेज्जो की कृत्रिम तथा साधारण बोलचाल की भाषा से भिन्न स्वाभाविक गद्य का रूप उपस्थित किया। दांते तथा "दोचे स्तील नोवो" के अन्य अनुयायियों में अग्रगण्य हैं फ्रोंचेस्को, पेत्रार्का और ज्वोवान्नी बोक्काच्यो। पेत्रार्का ने फ्लोरेंस की भाषा को परिमार्जित रूप प्रदान किया तथा उसे व्यवस्थित किया। पेत्रार्का की कविताओं और बोक्काच्चो की कथाओं ने इतालवी साहित्यिक भाषा का अत्यंत सुव्यवस्थित रूप सामने रखा। पीछे के लेखकों ने दांते, पेत्रार्का और बोक्काच्यो की कृतियों से सदियों तक प्रेरणा ग्रहण की।
 
15वीं सदी में लातीनी के प्राचीन साहित्य के प्रशंसकों ने लातीनी को चलाने की चेष्टा की और प्राचीन सभ्यता के अध्ययनवादियों (मानवतावादी-मैनिस्ट) ने नवीन साहित्यिक भाषा बनाने की चेष्टा की, किंतु यही लातीनी प्राचीन लातीनी से भिन्न थी। इस प्रवृत्ति के फलस्वरूप साहित्यिक भाषा का रूप क्या हो, यह समस्या खड़ी हो गई। एक दल विभिन्न बोलियों के कुछ तत्व लेकर एक नई साहित्यिक भाषा गढ़ने के पक्ष में था, एक दल तोस्काना, विशेषकर फ्लोरेंस की बोली को यह स्थान देने के पक्ष में था और एक दल, जिसमें पिएतरो बेंबो (1470-1587) प्रमुख था, चाहता था कि दांते, पेत्रार्का और बोक्काच्यो की भाषा को ही आदर्श माना जाए। मैकियावेली ने भी फियोरेंतीनो का ही पक्ष लिया। तोस्काना की ही बोली साहित्यिक भाषा के पद पर प्रतिष्ठित हो गई। आगे सन् 1612 में क्रूस्का अकादमी ने इतालवी भाषा का प्रथम शब्दकोश प्रकाशित किया जिसने साहित्यिक भाषा के रूप को स्थिर करने में सहायता प्रदान की।