"ओपेरा (गीतिनाटक)": अवतरणों में अंतर

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नाटकों की भाँति ही ओपेरा की कथा वस्तु भी आरंभ में धार्मिक आख्यानों से ली जाती थी। मध्ययुग में यही आधार ऐतिहासिक वीरगाथाएँ हो गया। इसका अर्थ हुआ कि ओपेरा ग्रीस से चलकर रोम आया। इस कारण उस काल के ओपेरों में दो ही भावनाएँ प्रमुख हैं, महत्वाकांक्षा और कामना। आज नाटक जीवन के बीच खड़ा हुआ है इसलिए ओपेरा को भी वहीं आना पड़ा है और यह यात्रा 400 वर्षो की है। कथावस्तु के साथ-साथ संगीत के तालमेल में भी परिवर्तन हुआ है। आरंभ में ओपेरा में नाट्यलेख प्रमुख होता और संगीत गौण, लेकिन क्रमश: नाटय्लेख गौण होता गया और संगीत ने प्राधान्य ले लिया। पहले कथावस्तु को मनोरंजक बनाने के लिए गान, सहगान तथा समूहगान की व्यवस्था की। इसके बाद अनवरत संगीत के सिद्धांत ने संपूर्ण ओपेरा को ही संगीतमय कर दिया। अब वातावरण, चित्रण, भावदशा आदि सभी के लिए संगीत की योजना होने लगी। इसीलिए ओपेरा में संगीत लेखक का जितना महत्व है उतना नाट्यलेखक का नहीं।
 
सभी कलाओं के आश्रयदाता एक समय में राजा, सामंत हुआ करते थे। इटली में भी तत्कालीन सामंत तथा रईस इस कला के पोषक थे। इसीलिए एक समय तक ओपेरा के अर्थ ही विशाल मंच, भव्य साजसज्जा, विराट् दृश्यांकन आदि थे। पेरिस के किसी ओपेरागृह में प्रवेश करते ही बाक्सों और बाल्कनियों तथा उत्कीर्ण बारजों और छज्जों की दीर्घाओंवाले हॉल के दर्शन होते हैं। ये ओपेरागृह 18वीं और 19वीं सदियों के स्मारक हैं। यहीं बैठकर सामंतवर्ग तथा भद्रलोक ग्लक और मोज़ार्ट, बिथूवेन और वेबर, वैग्नर और वर्दी के महान्महान संगीतमय ओपेरों को देखते रहे हैं। इटली, फ़्रांस और जर्मनी के ओपेरागृहों में ही इन महान्महान ओपेराकारों को अपनी सफलताओं तथा असफलताओं का सामना करना पड़ा है। इटली, 16वीं सदी के आसपास सारी यूरोपीय कला, साहित्य और संस्कृति का केंद्र था। सर्वप्रथम फ़्लोरेंस में ओपेरा खेला गया था। आज जिसकी लिपि उपलब्ध है, वह ओपेरा भी वहीं खेला गया था– "यूरिडिस", सन् 1600 ई में। इसके बाद वेनिस नगर ओपेरा का सबसे बड़ा केंद्र हो गया। सारे यूरोप के कलाप्रिय इस नगर की यात्रा करते और महान्महान ओपेरों को देखकर कृतकृत्य होते थे। सन् 1637 में वेनिस में एक सार्वजनिक ओपेरागृह की स्थापना हुई जिसके कारण ओपेरा पर क्रमश: व्यावसायिकता का प्रभाव हुआ। अब ओपेरा केवल शौक की विधा न रहकर आय का साधन बना। ओपेरा के लिए जिस उन्नत ओपेरागृह की अपेक्षा हुआ करती थी उसके कारण तत्कालीन मंचशिल्प के विकास में नाटकों से कहीं अधिक श्रेय ओपेरों को है। उन दिनों चक्रित मंच (रिवाल्विंग स्टेज) तो आविष्कृत हुए नहीं थे, इसलिए ओपेरा के विशेष काल्पनिक मंचांकनों को मूर्त कर सकना काफी कठिन काम था। चक्रित मंच की समस्या जापान द्वारा 18वीं सदी में दूर हुई।
 
ओपेरा धीरे-धीरे यूरोप के दूसरे देशों में भी लोकप्रिय होता जा रहा था। अब आस्ट्रिया, फ्रांस, तथा जर्मनी भी इसके केंद्र बन चले थे। सदियों तक इटली के संगीतज्ञों, कलाकारों, नाट्यलेखकों तथा अभिनेताओं का प्राधान्य सारे यूरोप के ओपेरागृहों में रहा। ओपेरा, इटली का राष्ट्रीय कलात्मक उद्योग रहा है। वेनिसीय संगीत, साज सज्जा, अभिनय आदि ही प्रमाण माने जाते थे। फ्रांस के मंच पर भी इतालवी भव्य साज सज्जा में ही जर्मन संगीतज्ञों द्वारा कला की यह अदृभुत विधा मंचित होती रही। ओपेरा की भाषा आरंभ में इतालवी फ्रेंच रही। कालांतर में फ्रांस की भाषा भी प्रचलित हुई। लेकिन अन्य देशों में ओपेरा की भाषा इतालवी ही बनी रही। इस क्षेत्र में इटली का प्रभाव यहाँ तक था कि अनेक बार इतालीयेतर ओपेराकार भी अपना नाम इतालीय रख लिया करते थे।