"पाण्ड्य राजवंश": अवतरणों में अंतर

[अनिरीक्षित अवतरण][अनिरीक्षित अवतरण]
छो बॉट: अनावश्यक अल्पविराम (,) हटाया।
छो हलान्त शब्द की पारम्परिक वर्तनी को आधुनिक वर्तनी से बदला।
पंक्ति 40:
चोलों की क्षीण होती हुई शक्ति का लाभ उठाकर पांड्यों ने अपने स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। पांड्यों के इस द्वितीय साम्राज्य का प्रारंभ जटावर्मन् कुलशेखर (११९०-१२१३) से होता है। किंतु जटावर्मन् कुलशेखर की स्वतंत्र होने की लालसा को चोल नरेश कुलोत्तुंग तृतीय ने दबा दिया था। जटावर्मन् के अनुज मारवर्मन् सुंदर पांड्य (१२१६-१२३८) ने सच्चे रूप में द्वितीय पांड्य साम्राज्य का आरंभ किया। उसने चोल राज्य पर आक्रमण करके चिंदबरम् तक की विजय की थी। किंतु होयसलों के हस्तक्षेप करने के कारण उसने चोलों को अधीनता स्वीकार करने पर ही छोड़ दिया। दूसरी बार उसने चोल नरेश राजराज तृतीय को पराजित किया किंतु इस बार भी होयसलों के हस्तक्षेप करने पर वह चोल साम्राज्य पर स्थायी अधिकार न कर सका। फिर भी उसे राज्य की सीमाएँ विस्तृत थीं। मारवर्मन् सुंदर पांड्य द्वितीय (१२४८-१२५१) चोल नरेश राजेंद्र तृतीय के हाथों पराजित हुआ था किंतु होयसलों ने पांड्यों का पक्ष लेकर चोलों को मनमानी नहीं करने दिया। जटावर्मन् सुंदर पांड्य प्रथम (१२५१-६८) इस वंश का निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ सम्राट् था। उसने अपने समकालीन चेर, होयसल, चोल, तेलुगु, काकतीय और बाण सभी का अपने पराक्रम से अभिभूत किया था। उसके साम्राज्य का विस्तार लंका से नेल्लोर तक हो गया था। अपनी विजयों से प्राप्त वैभव का उपयोग उसने चिदंबरम् और श्रीरंगम् के मंदिरों को आकर्षक और संपन्न बनाने में किया। उसकी वैभवप्रदर्शन की प्रवृत्ति उसके अनेक अभिलेखों और तुलाभारों में परिलक्षित होती है।
 
[[जटावर्मन्]] ने पांड्य राजकुमारों को उपराजा के रूप में शासन से संबंधित किया था। इस पद्धति का उल्लेख विदेशी लेखकों ने भी किया है। जटावर्मन् सुंदर पांड्य प्रथम के साथ जटावर्मन् वीर पांड्य प्रमुख उपराजा था। मारवर्मन् कुलशेखर (१२६८-१३१०) ने जटावर्मन् सुंदर पांड्य के अंतिम वर्षों में ही उपराजा के रूप में शासन आंरभ कर दिया था। स्वयं उसके साथ अनेक उपराजे संबद्ध थे जिनमें प्रमुख हैं जटावर्मन् सुंदर पांड्य द्वितीय और तृतीय, जटावर्मन् वीर पांड्य द्वितीय और मारवर्मन् विक्रम पांड्य। मारवर्मन् कुलशेखर इस वंश का अंतिम महान्महान सम्राट् था। उसने चोल, होयसल और लंका के नरेशों तथा अन्य दूसरे शासकों को फिर से पराजित किया था। [[मार्को पोलो]] और मुस्लिम इतिहासकार वस्साफ ने उसकी शक्ति और वैभव का वर्णन किया है।
 
=== मलिक काफूर का आक्रमण ===