"पुर्तगाली साहित्य": अवतरणों में अंतर

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महानतम पुर्तगाली कवि कामू के व्यक्तित्व में '''पुर्तगाली साहित्य''' की दोनों प्रमुख विशेषताएँ सहित मिलनी हैं। ये हैं - प्रगीति प्रेरणा और स्वच्छंद अभिरुचि। ये विशेषताएँ किसी विशेष ऐतिहासिक युग की नहीं, किंतु सभी युगों की सामान्य मानव मनोवृत्ति है। प्रेमात्मक और व्यक्तिगत समस्याओं पर आग्रह, अपनी व्यक्तिगत पीड़ा में एक मृदु आनंद (सउदादे), यह पुर्तगाली चित्तवृत्ति की विशेषताएँ हैं - घर के प्रति ममता की भावना, अस्पष्ट आकांक्षाएँ और आशा - नवीन भूभाग और नवीन समुद्री भागों की खोज में रत रहनेवाले एक छोटे राष्ट्र के काल्पनिक भाग्य की महान्महान भावना से युक्त।
 
बुद्धि की अपेक्षा संवेदना और कल्पना के प्राधान्य के कारण दार्शनिक पद्धतियों का निर्माण, गंभीर अध्ययन और शोध की गहराई में जाना, विस्तृत ऐतिहासिक आधार तैयार करना कठिन होता है। महदुद्दश्य को सम्मुख रखनेवाला राष्ट्र होने का बोध कभी भविष्यदर्शी का आनंद, कभी स्पष्ट रहस्यवाद, आत्मसमर्पण या तो उल्लासपूर्ण आनंद या निराश भाग्यवाद की सृष्टि करता है।
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प्रगीति रचनाओं द्वारा पुर्तगाली साहित्य का प्रारंभ 12वीं शती से होता है। ये गीत गलीशीय पुर्तगाली बोली में थे। गलीशिया स्पेन का एक प्रांत है जो पुर्तगाल तक चला गया है। यह गलीशीय बोली आइबोरिया प्रायद्वीप के त्रूवादोरों (सामंतों का यश गानेवाले) की रचनाओं की भाषा हो गई। इस गीतिकाव्य के दो पक्ष हैं - एक लोकप्रिय रूप जो स्थानीय बोली में लिखा गया, दूसरा शिष्ट रूप जो प्रोवेंसाल शैली में लिखा गया। लोकगीत शैली में विशेष स्थान कान्तोगास दे अमीगो (प्रेमिका के गीत) का है जिनमें प्रेमिका अपने प्रेमी को संबोधित करके गीत गाती है। बदले में नायक भी कांतीगास वे अमोर (प्रेमगीत) गाता है। नायक संभ्रांत कुलोत्पन्ना नायिका को संबोधित करके गीत गाता है। प्रेमगीतों के इस विशाल साहित्य के इस समय केवल तीन संग्रह उपलब्ध हैं जिनमें 1189 से लेकर 14वीं शती के मध्यकाल तक की रचनाएँ संकलित हैं। इस काल में कुछ राजाओं ने कतिपाय कवियों और गीतगायकों को दरबार में आश्रय प्रदान किया। ऐसे राजाओं में दीनीस (1261-1325) बहुत प्रसिद्ध है। इन कवियों ने भी उल्लेखनीय काव्यसृष्टि की।
 
पुर्तगाली गद्य ने अनुवादकों के द्वारा साहित्यिक प्रतिष्ठा प्राप्त की। आल्कोबसा एबे अनुवादकों का मध्ययुग में प्रधान केंद्र था। यहाँ संतों की जीवनियाँ, उपदेशपूर्ण, कथाएँ, पुरानी गाथाएँ, राजवंश गाथाएँ, वंशावलियाँ अनूदित की गई और उन्हें नवीन रूप में प्रस्तुत किया गया। इनमें से अनेक वीरगाथापूर्ण साहसी कथाएँ हैं। इनको तीन मुख्य वर्गों में रखा जा सकता है - ग्रीक-लातीनी, कारोलिंजन (चार्ल्स महान्महान से संबंधित) और ब्रेटन।
 
उस काल की अत्यंत महत्वपूर्ण कृतियों में से एक है लेयाल कोसेल्हिएरो (विश्वासी परामर्शदाता)। इसमें अपने समय के सर्वश्रेष्ठ गद्यलेखक राजा एडवर्ड (1391-1438) की नैतिक उपदेशात्मक रचनाओं का संग्रह है।
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लुई दे कामोस (1524-1580) की प्रतिभा 16वीं शती में सबसे अधिक प्रभावशाली रही। ओस लूसिआदास के रूप में उसने अपने देश को क्लासिकल साँचे में ढला अत्यंत सफल आख्यान काव्य और श्रेष्ठ राष्ट्रीय काव्य प्रदान किया। इस कृति में पुर्तगाली मल्लाहों और वीरों के साहसपूर्ण कार्यों का पौराणिक ढंग से यशोगान किया गया है। किंतु कामोस की ख्याति गीति कवि के रूप में इससे भी अधिक है। उसकी गीति कविताओं में उदात्त संगीत द्वारा मन की सूक्ष्मतम भावनाएँ हुई हैं।<ref name="WDL">{{cite web |url = http://www.wdl.org/en/item/11198/ |title = The Lusiads |website = [[World Digital Library]] |date = 1800-1882 |accessdate = 2013-08-31 }}</ref>
 
मध्ययुगीन परंपराओं का स्वर साहसपूर्ण कथाओं में मिलता है। बेनार्दिम रिवेइरो (1482-1552) ने मेनीना एमोसा (छोटा और युवक) के रूप में भावुक या सउदादे भावधारा से प्रधान विशेष प्रकार के पुर्तगाली उपन्यास की सृष्टि की। रिवेइरी अंतिम महान्महान कवि है जिसने मेदिदा वेल्हा (प्राचीन छंद) का मेदिदा नोवा (नया छंद) के स्थान पर प्रयोग किया।
 
इतालीय प्रभाव खास तौर पर सा दे मीरांदा (1481-1558) के माध्यम से आया जो कई वर्ष इटली में रहने के बाद 1526 में पुर्तगाल लौटा। उसने इतालीय कविता के छंदों, गीत, सॉनेट तथा ओत्तावा रीमा (आठवीं लय) का पुर्तगाली कविता में प्रयोग किया। जिल बीचेंते की स्थानीय विशेषता से युक्त लोकप्रिय नाटकों का उसने विरोध किया और प्राचीन शैली का समर्थन किया जिसका अनुकरण प्लाउतुस, तेरेंस और अरिओस्तो ने किया था। सा दे मीरांदा ने बूकोलिक कविता शैली में भी रचना की। प्राचीन काव्यशैली का अनुकरण करते हुए उसने अपने समय के व्यक्तियों का उल्लेख किया है।
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परिवर्तन के इस युग में बोकाजे (1765-1805) का अशांत और जटिल व्यक्तित्व महत्वपूर्ण है। वह विविध नवीन विषयों पर सहज भाव से विचार प्रकट करने की प्रतिभा से युक्त था। किंतु साथ ही प्रचुर संवेदना भी उसमें थी और इस दृष्टि से वह स्वच्छंदवाद का अगुआ है।
 
स्वच्छंदवाद का आगमन अनेक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है। उग्र और उदार दलों में जो संघर्ष हुआ उसके कारण बहुत से लेखक बाध्य होकर फ्रांस और इंग्लैंड चले गए जहाँ वे स्वच्छंदवादी आंदोलन के संपर्क में आए। उदारवादी विचारधारा की सेना की विजय के साथ ही आल्मेइदा गारेंत्त (1799-1853) और अलेक्सांद्रे हेरकूलानो (1810-1877) स्वदेश लौट अए। वे दोनों स्वच्छंदवाद के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने पुर्तगाली साहित्य की कलात्मक शक्ति से युक्त एक महान्महान युग का प्रारंभ किया जो पूरी शती में चालू रहा।
 
गारेंत्ती इस धारा का नेता था। उसने स्वच्छंदवादी प्रवृत्तियों प्राप्त कर राष्ट्रीय नाटक का निर्माण किया, गीतिकाष्य को फिर से पल्लवित, पुष्पित किया और गद्य का नवनिर्माण किया। हेरकूलानो ऐतिहासिक उपन्यास लिखने तथा पत्रकारिता में निपुण था। अपने लेखों में अपने युग की समस्याओं की उसने सूक्ष्म परीक्षा की है और इस प्रकार इतिहास में उसने नवीन आलोचनात्मक दृष्टिकोण का संचार किया।
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इस उत्साही पीढ़ी के नवयुवक प्रतिनिधियों में, जिन्होंने विवाद के आरंभिक दिनों में प्रसिद्धि प्राप्त की, कवि, दार्शनिक आंतेरो द क्वेताल (1842-1891), इतिहास लेखन को नई दिशा और विस्तृत उद्देश्य प्रदान करनेवाले ओलीवेइरा मार्तिन्स (1845-1894) तथा तेओफीलो ब्रागा (1843-1924) जिसने पुर्तगाली सभ्यता का पूर्ण सर्वेक्षण नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया, प्रमुख हैं।
 
स्वच्छंदवाद और यथार्थवाद के बीच के संक्रांतिकाल में कामीलं कास्तेलो ब्रांक्रो ने अच्छी ख्याति प्राप्त की। वह उन महान्महान पुर्तगाल उपन्यासकारों में से है जिन्होंने अपनी कृतियों में स्वच्छंदवाद के अभिलषितता के साथ यथार्थ और पैनी पर्यवेक्षण दृष्टि को समन्वित किया।
 
19वीं शती के महान्महान कथाकारों में एसा दे क्वेइरी (1845-1900) का स्थान बहुत ऊँचा है। वह प्रतिभासंपन्न उपन्यास लेखक था, जिसने अद्वितीय और सजीव पात्रों की सृजना की तथा मानव दुर्बलताओं पर, सुरुचि की रक्षा करते हुए, व्यंग्यपूर्ण ढंग से प्रहार किया। पुर्तगाली गद्य का उसने नवनिर्माण कि उसे सजीवता और विलक्षण व्यंजना प्रदान की।
 
इस संधर्षशील पीढ़ी के पश्चात् एक दूसरी पीढ़ी आती है जो अपने विचारों को प्रचारित करने में और भी कट्टर थी। संक्षेप में कह सकते हैं कि 19वीं शती के सातवें दशक में पुर्तगाल यूरोपीय चिंतन की प्रमुख प्रवृत्तियों में प्रविष्ट हो चुकने के बाद विरोधी प्रवृत्तियाँ दिखती हैं- एक समन्वयवादी प्रवृत्ति जो बाहरी अनुभवों को ग्रहण करने के पक्ष में है, दूसरी राष्ट्रवादी है जो स्थानीय स्रोतों तक ही सीमित रहना चाहती है।
 
इस आंदोलन का विशिष्ट प्रतिनिधि तेक्सेहरा पास्कोइस (1878-1952) था। उसने साउदादे के नाम पर साउदोसिस्मो की स्थापना की। महान्महान गीतिकवि आंतोनियो नोबरे नितांत व्यक्तिगत शैली में परस्पर बिल्कुल भिन्न अनुभवों को साथ मिलाकर व्यक्त करने में सफल हुआ। वह आधुनिकता का अगुआ है। इस धारा के प्रतिनिधियों में फेरनांदो पेसोआ (1888-1935) सबसे अधिक सिद्ध है। उसने अनेक उपनाम रखकर लिखते हुए अपने बहुमुखी पैर शक्तिशाली व्यक्तित्व के विभिन्न रूपों को अलग-अलग व्यक्त करने का यत्न किया है। उसे आगे की साहित्यिक पीढ़ियों का नेता माना जाता है। वर्तमान साहित्य में कविता का स्थान महत्वपूर्ण माना हुआ है। प्रेसेंन्जा (एक सप्ताहिक पत्र) का आंदोलन, नवयार्थवादी और अतियथार्थवादी प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। कई ऐसे भी कवि हैं जो विशेष "वाद" या प्रवृत्ति से अलग और स्वतंत्र हैं।
 
गद्य लेखकों में आक्वीलीनो रिबेइरो (1885) का नाम विशेष उल्लेख योग्य है। वह अपने यथार्थवादी, व्यंजक और नाटकीय तत्व युक्त उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध है।