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तीसरा और अंतिम सत्र १७ नवम्बर १९३२ को प्रारम्भ हुआ। मात्र ४६ प्रतिनिधियों ने इस सम्मलेन में भाग लिया क्योंकि अधिकतर मुख्य भारतीय राजनीतिक प्रमुख इस सम्मलेन में मौजूद नहीं थे। ब्रिटेन की [[लेबर पार्टी]] और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इस सत्र में भाग लेने से इनकार कर दिया।
 
इस सम्मेलन में एक कॉलेज छात्र [[चौधरी रहमत अली]] ने विभाजित भारत के मुस्लिम भाग का नाम "[[पाकिस्तान]]" (जिसका अर्थ है "पवित्र भूमि") रखा। उसने पंजाब का 'पी' पंजाब, अफगान से 'ए', [[कश्मीर]] से 'कि', [[सिन्ध|सिंध]] से "स" और [[बलूचिस्तान (पाकिस्तान)|बलूचिस्तान]] से "तान" लेकर यह शब्द बनाया। [[मोहम्मद अली जिन्नाह|जिन्ना]] ने इस सम्मेलन में हिस्सा नही लिया।
 
सितंबर, १९३१ से मार्च, १९३३ तक, सैमुअल होअरे के पर्यवेक्षण में, प्रस्तावित सुधारों को लेकर प्रपत्र बनाया गया; जिसके आधार पर भारत सरकार का १९३५ का अधिनियम बना।