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नाट्यमंडप में दीवारों के साथ खंभे बनाकर ऊपर छत बनाई जाती थी। रात्रि के समय प्रकाश के लिए दीपक व्यवहार में आते थे। बहुत से दीपकों के अतिरिक्त शायद मशाल से भी काम लिया जाता रहा होगा। ध्वनि नियंत्रण तथा विस्तार का कोई प्रबंध शायद न था; इसलिए भी नाट्यशालाएँ कुछ छोटी ही हुआ करती थीं। भारतीय प्रेक्षागृह आकार में ग्रीक प्रेक्षागृहों की अपेक्षा, जो बहुधा खुले हुआ करते थे, बहुत छोटे होते थे।
 
भरत नाट्यशास्त्र में दिए हुए नाट्यमंडप के आकार प्रकार तथा सजावट से ऐसा ज्ञात होता है कि उस समय तक भारत के आदिवासियों के नाट्यमंडपों का प्राथमिक रूप, जो हमें सीतावंगा गुफा, [[हाथीगुंफा]], तथा [[नासिक]] के पास [[फुलुमई गुफा]] में प्राप्त होता है, आर्यों के प्राचीनतम लकड़ी के मकानों के रूप में समन्वित होकर तथा दोनों के सम्मिश्रण से एक नया ढाँचा खड़ा हो चुका था। यही नहीं, नाट्यमंडप के रूप के विषय में नियम भी बन चुके थे तथा उनपर धर्म का नियंत्रण भी प्रारंभ हो चुका था। ये नियम इतने कड़े थे कि मापने की रस्सी टूट जाना तथा एक भी स्तंभ का दोषयुक्त होना, नाट्यमंडप के स्वामी के मरण का सूचक समझा जाने लगा था। भरत के समय तक भारतीय रंगमंच इस महान्महान संसार का द्योतक माना जाने लगा था, जहाँ स्त्री-पुरुष प्रविष्ट होकर अपनी पूर्वनिश्चित लीला करते हैं तथा उसकी समाप्ति पर यहाँ से विदा लेते हैं।
 
== वर्तमान भारतीय रंगमंच ==