"मैक्सिम गोर्की": अवतरणों में अंतर

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गोर्की ने अनेक नाटक लिखे, जैसे "सूर्य के बच्चे" (1905), "बर्बर" (1905), "तह में" (1902) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से "नया जीवन" बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1905 में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1906 में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने "अमरीका में" नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक "शत्रु" (1906) और "मां" उपन्यास में (1906) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वणर्न किया है। यह है विश्वसाहित्य में पहली बार इस प्रकार और इस विषय का उदाहरण। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मजदूर का चित्र दिया। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1905 की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास - "पापों की स्वीकृति" ("इस्पावेद") लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिये लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। "आखिरी लोग" और "गैरजरूरी आदमी की जिंदगी" (1911) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। "मौजी आदमी" नाटक में (1910) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों "ज़्वेज़्दा" और "प्रवदा" के लिये अनेक लेख भी लिखे। 1911-13 में गोर्की ने "इटली की कहानियाँ" लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1912-16 में "रूस में" कहानीसंग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल जिंदगी का प्रतिबिंब मिलता है।
 
"मेरा बचपन" (1912-13), "लोगों के बीच" (1914) और "मेरे विश्वविद्यालय" (1923) उपन्यासों में गोर्की ने अपनी जीवनी प्रकट की। 1917 की अक्टूबर क्रांति के बाद गोर्की बड़े पैमाने पर सामाजिक कार्य कर रहे थे। इन्होंने "विश्वसाहित्य" प्रकाशनगृह की स्थापना की। 1921 में बीमारी के कारण गोर्की इलाज के लिये विदेश गए। 1924 से वे इटली में रहे। "अर्तमोनोव के कारखाने" उपन्यास में (1925) गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों और मजदूरों की तीन पीढ़ियों की कहानी प्रस्तुत की। 1931 में गोर्गी स्वदेश लौट आए। इन्होंने अनेक पत्रिकाओं और पुस्तकों का संपादन किया। "सच्चे मनुष्यों की जीवनी" और "कवि का पुस्तकालय" नामक पुस्तकमालाओं को इन्होंने प्रोत्साहन दिया। "येगोर बुलिचेव आदि" (1932) और "दोस्तिगायेव आदि" (1933) नाटकों में गोर्की ने रूसी पूँजीपतियों के विनाश के अनिवार्य कारणों का वर्णन किया। गोर्की की अंतिम कृति- "क्लिम समगीन की जीवनी" (1925-1936) अपूर्ण है। इसमें 1880-1917 के रूस के वातावरण का विस्तारपूर्ण चित्रण किया गया है। गोर्की सोवियत लेखकसंघ के सभापति थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। निज़्हनीय नावगोरोद नगर को "गोर्की" नाम दिया गया था। गोर्की की कृतियों से सोवियत संघ और सारे संसार के प्रगतिशील साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान्महान हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के उपासक थे।
 
== परिचय ==