"वाचकन्वी गार्गी": अवतरणों में अंतर

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[[वृहदारण्यक उपनिषद्]] में इनका [[याज्ञवल्क्य]]जी के साथ बडा ही सुन्दर [[शास्त्रार्थ]] आता है। एक बार महाराज जनक ने श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा के निमित्त एक सभा की और एक सहस्त्र सवत्सा सुवर्ण की गौएँ बनाकर खडी कर दीं। सबसे कह दिया-जो ब्रह्मज्ञानी हों वे इन्हें सजीव बनाकर ले जायँ। सबकी इच्छा हुई, किन्तु आत्मश्लाघा के भय से कोई उठा नहीं। तब याज्ञवल्क्यजी ने अपने एक शिष्य से कहा- बेटा! इन गौओं को अपने यहाँ हाँक ले चलो।<ref>[http://www.bhartiyapaksha.com/?p=177 गार्गी वाचक्नवी: अपने समय की प्रखर अध्यात्मवेत्ता] (भारतीय पक्ष)</ref>
 
इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने लगे। भगवान्भगवान याज्ञवल्क्यजी ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी बुलायी गयी थी। सबके पश्चात् याज्ञवल्क्यजी से शास्त्रार्थ करने वे उठी। उन्होंने पूछा-भगवन्! ये समस्त पार्थिव पदार्थ जिस प्रकार जल मे ओतप्रोत हैं, उस प्रकार जल किसमें ओतप्रोत है?
 
'''याज्ञवल्क्य'''- जल वायु में ओतप्रोत है।