"सारस (पक्षी)": अवतरणों में अंतर
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=== संरक्षण स्थिति ===
[[भारत]] में सारस पक्षियों की कुल संख्या लगभग ८,००० से १०,००० तक है। वर्तमान काल में इस [[पक्षी]] के साथ दुखद् बात जुड़ी हुई है। वैश्विक स्तर पर इसकी संख्या में हो रही कमी को देखते हुए IUCN (International Union for Conservation of Nature) द्वारा इसे संकटग्रस्त प्रजाति घोषित किया गया है<ref>सारस पक्षी : विलुप्ति की कगार पर, ''विज्ञान प्रगति'' (राष्ट्रीय विज्ञान शैक्षिक
<br />
इसकी घटती संख्या के अनेक कारण हैं। खेती की कम होती भूमि, सिमटते जंगल, कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग और मानवों की बढ़ती आबादी इसके मुख्य कारण हैं। तेजी से बदलता [[पर्यावरण]] और बढ़ता [[प्रदूषण]] भी इसके लिए उत्तरदाई है। इसके अतिरिक्त [[बिजली]] की अति उच्च धारा वाले तारों से भी इनको बहुत बड़ा खतरा है। ये [[बिजली]] के खंबे सामान्यतः आबादी से थोड़ी दूरी पर स्थापित किए जाते हैं और इन जगहों पर सारस के आने की पूर्ण संभावनाएं होती हैं। इसके अतिरिक्त इनके शिकार एवं अंडो तथा चूजों की तस्करी के भी प्रमाण मिले हैं। आकार में बड़ा होने के नाते इसे बाकी शिकारी पक्षियों (जैसे कौवे और चील आदि) से कोई खतरा नहीं है। जंगली बिल्लियां और लोमड़ियां कभी-कभी इनके बच्चों को उठा ले जाती हैं। लेकिन ऐसा तभी होता है जब ये अपने घोसलों से दूर होते हैं। लेकिन ये जंगली कुत्तों के झुंड से अपने आपको असहाय पाते हैं। यह देखा गया है कि सारस उन्ही जगहों पर अधिक पाए जाते हैं जहां पर थोड़ा कम विकास हुआ है। शहरीकरण और औद्योगीकरण से दूर के स्थानों पर ये ज्यादा फलते-फूलते हैं। विशेष तौर पर जहां [[रसायन|रासायनिक]] खादों और मशीनीकरण का प्रकोप कम है। आज-कल के कथित रूप से विकसित स्थानों पर इनकी संख्या में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई है। [[उड़ीसा]], [[मध्य प्रदेश]], [[बिहार]] और [[गुजरात]] की कुछ जनजातियां इनका शिकार करती हैं। इन स्थानों पर भी ये विलुप्तप्राय हैं। संक्षेप में कहा जाए तो मानव की बढती हुई लिप्सा इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। सारस पक्षियों की घटती हुई संख्या इस बात का द्योतक है कि अब खतरे का समय आ चुका है और हमारे [[पर्यावरण]] और समाज में बड़े स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है।
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