"जगन्नाथ": अवतरणों में अंतर
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== मूर्तियों की उत्पत्ति ==
[[चित्र:Jagannatha naya.jpg|thumb|जगन्नाथ, सुभद्रा, बळभद्र एवं सुदर्शन चक्र भगवान रत्नसिम्हसन के उपर्, ओडिशा राज्य के नयागढ शहर मे जो कि पुरी शहरसे ४ घण्टे कि दूरि पर है]]
जगन्नाथ से जुड़ी दो दिलचस्प कहानियाँ हैं। पहली कहानी में [[श्रीकृष्ण]] अपने परम भक्त राज इन्द्रद्युम्न के सपने में आये और उन्हे आदेश दिया कि पुरी के दरिया किनारे पर पडे एक पेड़ के तने में से वे श्री कृष्ण का विग्रह बनायें। राज ने इस कार्य के लिये काबिल बढ़ई की तलाश शुरु की। कुछ दिनो बाद एक रहस्यमय बूढा ब्राह्मण आया और उसने कहा कि प्रभु का विग्रह बनाने की जिम्मेदारी वो लेना चाहता है। लेकिन उसकी एक शर्त थी - कि वो विग्रह बन्द कमरे में बनायेगा और उसका काम खत्म होने तक कोई भी कमरे का दरवाजा नहीं खोलेगा, नहीं तो वो काम अधूरा छोड़ कर चला जायेगा। ६-७ दिन बाद काम करने की आवाज़ आनी बन्द हो गयी तो राजा से रहा न गया और ये सोचते हुए कि ब्राह्मण को कुछ हो गया होगा, उसने दरवाजा खोल दिया। पर अन्दर तो सिर्फ़ भगवान का अधूरा विग्रह ही मिला और बूढा ब्राह्मण गायब हो चुका था। तब राजा को एहसास हुआ कि ब्राह्मण और कोई नहीं बल्कि देवों का वास्तुकार [[विश्वकर्मा]] था। राजा को आघात हो गया क्योंकि विग्रह के हाथ और पैर नहीं थे और वह पछतावा करने लगा कि उसने दरवाजा क्यों खोला। पर तभी वहाँ पर ब्राह्मण के रूप में [[नारद]] मुनि पधारे और उन्होंने राजा से कहा कि भगवान इसी स्वरूप में अवतरित होना चाहते थे और दरवाजा खोलने का विचार स्वयं श्री कृष्ण ने राजा के दिमाग में डाला था। इसलिये उसे आघात महसूस करने का कोइ कारण नहीं है और वह निश्चिन्त हो जाये क्योंकि सब श्री कृष्ण की इच्छा ही है।
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