"ज्हाँ विक्तर पौंस्ले": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Jean-Victor Poncelet.jpg|right|thumb|300px|ज्हाँ विक्तर पौंस्ले]]
'''ज्हाँ विक्तर पौंस्ले''' (Jean Victor Poncelect,
इनका जन्म १ जुलाई, १७८८ ई. को [[मैस]] (Metz) में हुआ था। [[नेपोलियन]] के [[रूस|रूसी]] आक्रमण के समय ये बंदी बना लिए गए थे। बंदीगृह में इन्होंने 'त्रेते दे प्रोप्रियेते प्रोजेक्तिव दे फिग्यूर' (Traite des proprieeis projectives des figures) पुस्तक की रचना की, जो १८१४ ई. में इनके फ्रांस लौटने के आठ वर्ष पश्चात् प्रकाशित हुई। इसमें इन्होंने उन आकृतियों के गुणों का वर्णन किया है, जो केंद्रीय प्रत्यालेख के पश्चात् अपरिवर्तित रहती हैं। इसके अतिरिक्त पौंस्ले ने ज्यामितीय [[सात्तत्य]] के सिद्धांत का सूत्र रूप में वर्णन किया और फलस्वरूप उन बिंदुओं एवं रेखाओं पर विचार किया, जो अनंत पर लुप्त अथवा काल्पनिक हो जाती हैं। ये आदर्श बिंदु एवं रेखाएँ ज्यामिति को विश्लेषण की अपूर्व देन हैं। इन्होंने [[कोणीय व्युत्क्रम]] की विधि का भी अविष्कार किया और इनसे 'द्वैत अवस्था के सिद्धांत' (principle of duality) का निगमन किया। २२ दिसंबर, १८६७ ई. को [[पेरिस]] में इनका देहांत हो गया।
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