"तानाशाही": अवतरणों में अंतर

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तीसरा वर्गीकरण परिमाणात्मक स्वरूप के आधार पर हो सकता है; यथा, एकात्मक अधिनायकवाद जिसमें केवल एक वर्ग या केवल एक व्यक्ति तथा जिसका सहायक केवल एक वर्ग (यथा, निजी सेना) हो; बहुलवादी अधिनायकवाद जिसमें कई शक्तियाँ व्यक्ति या वर्ग हों जो पूर्ण रूप से, अपने को अधिनायक के अधीन न करें और सत्ता के लिए परस्पर होड़ करें परंतु ऐसी स्थिति में भी अन्य से अधिक शक्तिशाली एक व्यक्ति या वर्ग का आस्तित्व तो होता ही है। अधिनायकवाद के तीनों वर्गीकरण एक दूसरे से संबद्ध भी हो सकते हैं। यथा, सैन्य एकाधिनायकत्व निजी तथा सामूहिक दोनों ही हो सकता है।
 
सभी महत्वपूर्ण एकाधिनायकताओं में धार्मिक सांप्रदायिकता की विशेषता होती है, यथा उत्साह के साथ प्रवर्तक की पूजा तथा एक विशिष्ट विधि के प्रति श्रद्धा। महान व्यक्तियों से संचालित, सदैव आकर्षक विचारधारा से प्रेरित, अपने अनुयायियों से कर्तव्य के रूप में बलिदान की माँग करता हुआ, एकाधिनायकत्व सक्रिय व्यक्ति द्वारा स्थापित सरकार का एक स्वरूप है। वह उन पराक्रमी और गतिशील वर्गो को लेकर चलता है जो स्वभावत: विप्लव के लिए प्रवृत्त होते हैं : यथा, सेना, शूर वर्ग या सर्वहारा वर्ग। एकाधिनायक अपने संकल्प और भाव शासितों पर आरोपित करता रहता है। इस आरोपण के दो साधन हैं: नकारात्मक, सकारात्मक। नकारात्मक साधन हैं, आलोचना को रोकना, विरोधी बहुमत या अल्पमत को नष्ट करना, राज्य संबंधी आवश्यक और महत्वपूर्ण तथ्यों को गुप्त रखना। इन साधनों के सहायक साधन हैं: संसद की समाप्ति, संघों तथा दलों का विघटन, प्रेस पर प्रतिबंध, शिक्षा पर नियंत्रण, प्रमुख विरोधियों का निष्कासन आदि। इस संबंध में हिंसा तथा आतंक की भी चर्चा की जाती हैं, परंतु वस्तुत: ये एकाधिनायकत्व की केवल प्रारंभिक अवस्था के लक्षण हैं जो सामान्यत: क्रांतिकारी और इसलिए अवैध होते हैं। यदि एकाधिनायकत्व इस अवस्था से गुजरने में सफल हुआ तो वह साधारणत : हिंसा और आतंक के स्थान पर प्रशासकीय विधान स्थापित करता है।
 
सैन्य एकाधिनायकत्व सामान्यत: इन्हीं नकारात्मक साधनों से संतुष्ट रहता है; परंतु वर्ग एकाधिनायकत्व इनके अतिरिक्त सकारात्मक साधनों का भी प्रयोग करता है; यथा, प्रचार द्वारा अधिनायक के भावों, विचारों और मतों का जनता पर आरोपण, इच्छानुकूल जनमत का सृजन आदि। इन साधनों के सहायक साधन हैं : राष्ट्रीय या वर्गप्रतीकों की पूजा, उत्तेजक संगीत का प्रसार, दंभ या घृणा की भावनाएँ उभारनेवाले भाषण, आज्ञापालन की आदत डालने के लिए समस्त राष्ट्र को सैन्य शिक्षा देना, विद्यालयों के लिए पुस्तकें तैयार करना, अबौद्धिक विचारधारा का प्रचार, राजनीतिज्ञों, पत्रकारों तथा विद्वानों को घूस देकर उनका मुँह बंद करना।