"तुला": अवतरणों में अंतर
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[[चित्र:Balance a fleau.jpg|right|thumb|300px|पारम्परिक तराजू]]
'''तुला''' या '''तराजू''' (balance),
== इतिहास ==
संभवत: [[ऋग्वेद]] की ऋचाओं में तुला शब्द का प्रयोग नहीं है। [[वाजसनेयी संहिता]] (
कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में १६ प्रकार की तुलाओं का उल्लेख किया है (
शेष छह प्रकार की तुलाओं का उपयोग भारी वजन की वस्तुओं के तौलने में होता था जिन्हें समावृत्त, परिमाणी, व्यावहारिकी, भाजनी और अंत:पुरभाजनी तुला कहते थे।
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प्राचीन "मान' अथवा "तुलामान' बटखरों के बोधक हैं। सिंधु घाटी से बहुत से बटखरे प्राप्त हुए हैं। इन बटखरों का आकार और भार पद्धति मेसोपोटामिया और मिस्र से प्राप्त बटखरों से मिलती जुलती है, किंतु इनके आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि भारतीय बटखरों की उत्पत्ति अभारतीय है।
प्रारंभ में बटखरों के आकार चौकोर होते थे किंतु कालांतर में गोल होने लगे। सिंधु घाटी युग में बटखरों के लिये पत्थर राजस्थान से प्राप्त किए जाते थे। [[कौटिल्य]] के अनुसार बटखरों के बनाने के लिये लोहे का उपयोग करना चाहिए। पत्थर के मगध या मेकल देश के हों ([[अर्थशास्त्र (ग्रन्थ)|अर्थशास्त्र]] २.
== प्राचीन भारतीय मानपद्धति ==
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हीरों की तौल में तंड्डुल और वज्रधारण मानों का उपयोग होता था। २० तंड्डल का १ वज्रधारण होता था।
भूमिमाप के लिये अथवा दूरी और लंबाई नापने के लिये सबसे छोटी इकाई अंगुल थी। शास्त्रों में, विशेषतया अर्थशास्त्र (
८ परमाणु = १ रथरेणु; ८ रथरेणु = १ लिक्षा;
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