"नमस्ते सदा वत्सले": अवतरणों में अंतर

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पंक्ति 10:
त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोहम्। <br />
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे <br />
पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।१।।नमस्ते।। १।।
 
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता <br />
पंक्ति 19:
सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत् <br />
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं <br />
स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।।२।।कारयेत्।। २।।
 
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं <br />
पंक्ति 28:
विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। <br />
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं <br />
समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।।३।।भृशम्।। ३।।
 
भारत माता की जय।।
पंक्ति 236:
नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे, त्वया हिन्दुभूमे सुखं वर्धितोsहम्।
 
हे प्यार करने वाली मातृभूमि! मैं तुझे सदा (सदैव) नमस्कार करता हूँ। तूने मेरा सुख से पालन-पोषण किया है।
 
महामङ्गले पुण्यभूमे त्वदर्थे, पतत्वेष कायो नमस्ते नमस्ते।।१।।नमस्ते।। १।।
 
हे महामंगलमयी पुण्यभूमि! तेरे ही कार्य में मेरा यह शरीर अर्पण हो। मैं तुझे बारम्बार नमस्कार करता हूँ।
 
प्रभो शक्तिमन् हिन्दुराष्ट्राङ्गभूता, इमे सादरं त्वाम नमामो वयम् <br />
त्वदीयाय कार्याय बध्दा कटीयं, शुभामाशिषम देहि तत्पूर्तये।
 
पंक्ति 248:
 
अजय्यां च विश्वस्य देहीश शक्तिम, सुशीलं जगद्येन नम्रं भवेत्, <br />
श्रुतं चैव यत्कण्टकाकीर्ण मार्गं, स्वयं स्वीकृतं नः सुगं कारयेत्।।२।।कारयेत्।। २।।
 
हे प्रभु! हमें ऐसी शक्ति दे, जिसे विश्व में कभी कोई चुनौती न दे सके, ऐसा शुद्ध चारित्र्य दे जिसके समक्ष सम्पूर्ण विश्व नतमस्तक हो जाये ऐसा ज्ञान दे कि स्वयं के द्वारा स्वीकृत किया गया यह कंटकाकीर्ण मार्ग सुगम हो जाये।
 
समुत्कर्षनिःश्रेयसस्यैकमुग्रं, परं साधनं नाम वीरव्रतम् <br />
पंक्ति 258:
 
विजेत्री च नः संहता कार्यशक्तिर्, विधायास्य धर्मस्य संरक्षणम्। <br />
परं वैभवं नेतुमेतत् स्वराष्ट्रं, समर्था भवत्वाशिषा ते भृशम्।।३।।भृशम्।। ३।।
।।भारत।। भारत माता की जय।।
 
तेरी कृपा से हमारी यह विजयशालिनी संघठित कार्यशक्ति हमारे धर्म का सरंक्षण कर इस राष्ट्र को वैभव के उच्चतम शिखर पर पहुँचाने में समर्थ हो। भारत माता की जय।<ref>नमस्ते सदा वत्सले....श्री गुरूजी द्वारा लिखे गए अर्थ का हिन्दी रूपांतरण, सुरुचि प्रकाशन [[नयी दिल्ली]]</ref>
 
=== हिन्दी काव्यानुवाद ===