"नासदीय सूक्त": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो हलान्त शब्द की पारम्परिक वर्तनी को आधुनिक वर्तनी से बदला। |
Sanjeev bot (वार्ता | योगदान) छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया। |
||
पंक्ति 15:
'''तम आसीत्तमसा गूढमग्रेऽप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदं।''' <br />
'''तुच्छ्येनाभ्वपिहितं यदासीत्तपसस्तन्महिना जायतैकं॥३॥''' <br />
'''अन्वय''' -अग्रे तमसा गूढम् तमः आसीत्, अप्रकेतम् इदम् सर्वम् सलिलम्, आःयत्आभु तुच्छेन अपिहितम आसीत् तत् एकम् तपस महिना अजायत। <br />
'''अर्थ''' –सृष्टिके उत्पन्नहोनेसे पहले अर्थात् प्रलय अवस्था में यह जगत् अन्धकार से आच्छादित था और यह जगत् तमस रूप मूल कारण में विद्यमान था, आज्ञायमान यह सम्पूर्ण जगत् सलिल=जल रूप में था। अर्थात् उस समय कार्य और कारण दोंनों मिले हुए थे यह जगत् है वह व्यापक एवं निम्न स्तरीय अभाव रूप अज्ञान से आच्छादित था इसीलिए कारण के साथ कार्य एकरूप होकर यह जगत् ईश्वर के संकल्प और तप की महिमा से उत्पन्न हुआ।<br /><br />
'''कामस्तदग्रे समवर्तताधि मनसो रेतः प्रथमं यदासीत्।'''<br />
'''सतो बन्धुमसति निरविन्दन्हृदि प्रतीष्या कवयो मनीषा ॥४॥'''<br />
'''अन्वय'''-अग्रे तत् कामः समवर्तत;यत्मनसःअधिप्रथमं रेतःआसीत्, सतः बन्धुं कवयःमनीषाहृदि प्रतीष्या असति निरविन्दन<br />
'''अर्थ''' – सृष्टि की उत्पत्ति होने के समय सब से पहले काम=अर्थात् सृष्टि रचना करने की इच्छा शक्ति उत्पन्न हुयी, जो परमेश्वर के मन मे सबसे पहला बीज रूप कारण हुआ; भौतिक रूप से विद्यमान जगत् के बन्धन-कामरूप कारण को क्रान्तदर्शी ऋषियो ने अपने ज्ञान द्वारा भाव से विलक्षण अभाव मे खोज डाला।<br /><br />
'''तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी३दुपरि स्विदासी३त्।<br />
'''रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥५॥'''<br />
'''अन्वय'''-एषाम् रश्मिःविततः तिरश्चीन अधःस्वित् आसीत्, उपरिस्वित् आसीत्रेतोधाः आसन् महिमानःआसन् स्वधाअवस्तात प्रयति पुरस्तात्।<br />
'''अर्थ'''-पूर्वोक्त मन्त्रों में नासदासीत् कामस्तदग्रे मनसारेतः में अविद्या, काम-सङ्कल्प और सृष्टि बीज-कारण को सूर्य-किरणों के समान बहुत व्यापकता उनमें विद्यमान थी। यह सबसे पहले तिरछा था या मध्य में या अन्त में? क्या वह तत्त्व नीचे विद्यमान था या ऊपर विद्यमान था? वह सर्वत्र समान भाव से भाव उत्पन्न था इस प्रकार इस उत्पन्न जगत् में कुछ पदार्थ बीज रूप कर्म को धारण करने वाले जीव रूप में थे और कुछ तत्त्व आकाशादि महान रूप में प्रकृति रूप थे; स्वधा=भोग्य पदार्थ निम्नस्तर के होते हैं और भोक्ता पदार्थ उत्कृष्टता से परिपूर्ण होते हैं।<br /><br />
पंक्ति 29:
'''को आद्धा वेद क इह प्र वोचत्कुत आजाता कुत इयं विसृष्टिः।'''<br />
'''अर्वाग्देवा अस्य विसर्जनेनाथा को वेद यत आबभूव ॥६॥'''<br />
'''अन्वय'''-कः अद्धा वेद कः इह प्रवोचत् इयं विसृष्टिः कुतः कुतः आजाता,
'''अर्थ''' - कौन इस बात को वास्तविक रूप से जानता है और कौन इस लोक में सृष्टि के उत्पन्न होने के विवरण को बता सकता है कि यह विविध प्रकार की सृष्टि किस उपादान कारण से और किस निमित्त कारण से सब ओर से उत्पन्न हुयी। देवता भी इस विविध प्रकार की सृष्टि उत्पन्न होने से बाद के हैं अतः ये देवगण भी अपने से पहले की बात के विषय में नहीं बता सकते इसलिए कौन मनुष्य जानता है जिस कारण यह सारा संसार उत्पन्न हुआ। <br /><br />
|