"पक्षीविज्ञान": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: लाघव चिह्न (॰) का उचित प्रयोग।
छो बॉट: विराम चिह्नों के बाद खाली स्थान का प्रयोग किया।
पंक्ति 16:
[[रामायण]] तथा [[महाभरत]] में, फिर [[पुराण|पुराणों]] मे अनेक पक्षियों पर सूक्ष्म अवलोकन हैं। सारा [[संस्कृति साहित्य]], [[प्राकृत]] तथा [[पालि]] साहित्य भी, पक्षियों के ज्ञान से समृद्ध है। यह और भी प्रशंसनीय है कि पक्षियों के संरक्षण हेतु [[मनुस्मृति]], [[पराशरस्मृति]] आदि में कुछ विशेष पक्षियों के शिकार का निषेध किया गया है। [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र]] में भी ऐसे ही पक्षी-संरक्षण के समचित निर्देश हैं। ये सब उस काल की घटनाएं हैं जब विश्व में अन्यत्र पालतू के अतिरिक्त पशु-पक्षियों को मुख्यता शिकार तथा भोजन के रूप में ही देखा जा रहा था।
 
[[चरकसंहिता]] का संकलन काल सातवीं शती ईशा पूर्व है (भारतीय विज्ञान के कर्णधार डॉ॰ सत्यप्रकाश, Research Institute of Ancient Scientific Studies, Delhi)। चरक संहिता, [[संगीत रत्नाकार]] तथा [[भरतमुनि]] के [[नाट्यशास्त्र]] में पक्षियों की चारित्रिक विशेषताओं का सूक्ष्म वर्णन है जो वैज्ञनिक पद्धति पर आधारित है। किंतु इसके बाद के उपलब्ध साहित्य से ऐसा लगता है कि, बाद में, संभवतया बर्बरों से अपनी रक्षा में जूझते भारत में, पक्षियों का अध्ययन वैज्ञानिक दृष्टि से न किया जा सका। हां, ससंकृत साहित्य में पक्षियों का वर्णन सूक्ष्म अवलोकन के आधार पर, बहुत ही कोमलता तथा अनुरागपूर्ण भावनाओं के साथ किया गया है। मिथुनरत क्रौंच के वध को देखकर आदिकवि [[वाल्मिकि]] का हृयद करुण रस से ओतप्रोत होकर कविता के रूप में बह निकला था, ‘‘मा निषाद प्रतिष्ठानम् त्वम्....’’ अर्थात हे निषाद तुम्हें समाज में प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी....। हां, [[मुगल काल]] में बाबर, हुमायूं तथा जहांगीर ने, जो बहुत सिकार प्रेमी थे, पक्षियों का सूक्ष्म अवलोकन किया और लिखा। लोक साहित्य में भी पक्षियों का विशेष स्थान है, किंतु [[हिंदी साहित्य]] में पक्षियों के वैज्ञानिक अध्ययन तथा सूक्ष्म अवलोकन की परंपमरा किंही कारणों से आगे नहीं बढ़ी। और पक्षियों का जो भी वर्णन है वह अधिकतर बंधी-बंधाई रुढ़ि पर है चाहे वे पक्षी चातक, चकोर, पपीहा, सारस चक्रवाक आदि हों अथवा तोता, मैना, हंस, उल्लू, कौआ, गिद्ध, अबाबील, खंजन आदि हों। किंतु इसके साथ यह दुखद सच है कि आज सामान्य विद्यार्थी या व्यक्ति को पक्षियों तथा पेड़-पौधों की सही पहचान बतलाने वाला रुचिकर साहित्य, हिन्दी में, नहीं के बराबर है।
 
== पक्षिविज्ञान की तकनीकें ==