"पेशवा": अवतरणों में अंतर
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मृत्यु १७७२। बालाजी बाजीराव के ज्येष्ठ पुत्र माधवराव ने सोलह वर्ष की अल्पावस्था में पेशवापद ग्रहण किया; तथा सत्ताईस वर्ष की आयु में वह दिवंगत हुआ। पानीपत की पराजय के मर्मांतक आघात से पीड़ित महाराष्ट्र में माधवराव के ग्यारह वर्षीय शासन में दो वर्ष गृहयुद्ध में बीते, तथा अंतिम वर्ष यक्ष्मा के घातक रोग में व्यतीत हुआ। स्वतंत्र रूप से सक्रिय होने के केवल आठ वर्ष उसे मिले। इतने समय में उसने साम्राज्य का विस्तार किया, तथा शासनव्यवस्था सुसंगठित की। इसी कारण वह पेश्वाओं में सर्वोत्कृष्ट गिना जाता है।
चरित्र में माधवराव धार्मिक, शुद्धाचरण सहिष्णु, निष्कपट, कर्तव्यनिष्ठ, तथा जनकल्याण की भावना से अनुप्राणित था। उसका व्यक्तिगत जीवन निर्दोष था। उसकी प्रतिभा जन्मजात
माधवराव के पदासीन होने पर उसकी अल्पावस्था से लाभ उठाने के ध्येय से निजाम ने महाराष्ट्र पर आक्रमण किया। माधव के महत्वाकांक्षी किंतु स्वार्थी चाचा रघुनाथराव ने अपने भतीजे को अपने अधीन रखने के ध्येय से मराठों के परमशत्रु निजाम से गठबंधन कर, माधवराव को आलेगाँव में परान्त कर (१२ नवंबर १७६२) उसे बंदी बना लिया किंतु वह माधवराव का गत्यवरोध करने में असफल रहा। पेशवा ने रक्षाभवन में निजाम को पूर्णतया पराजित किया (१७६३)। युद्धक्षेत्र से लौटकर उसने अपने अभिभावक रघुनाथराव के प्रभुत्व से अपने से मुक्त किया। रघुनाथराव तथा जानोजी भोंसले के विरोध का दमन कर उसने आंतरिक शांति की स्थापना की। हैदरअली, जिसके शौर्य और रणचातुर्य से अंगरेज सेनानायक भी घातंकित हुए थे, चार अभियानों में माधवराज द्वारा परास्त हुआ। मालवा तथा बुंदेलकंड पर मराठों का प्रभुत्व स्थापित हुआ। राजपूत राजा विजित हुए। जाट तथा रुहेलों का दमन हुआ। मराठा सेना ने दिल्ली तक अभियान कर मुगल सम्राट् शाहआलम को पुन: सिंहासनासीन किया। इस प्रकार जैसे पानीपत के युद्ध के पूर्व वैसे ही इस बार भी, मराठा साम्राज्य भारत में सर्वशक्तिशाली प्रमाणित हुआ। किंतु माधवराव की असामयिक मृत्यु सचमुच ही महाराष्ट्र के लिये पानीपत की पराजय से कम घातक नहीं साबित हुई। माधवराज के पश्चात् महाराष्ट्र साम्राजय पतनोन्मुख होता गया।
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