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[[हिन्दू धर्म]] के अनुसार, '''प्रदोष व्रत''' कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। माह की [[त्रयोदशी]] तिथि में सायं काल को '''प्रदोष काल''' कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेवजी [[कैलाश पर्वत]] के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है। सप्ताह केसातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्व है।<ref>[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/tayaarinews/67-67-124698.html 9 जुलाई: प्रदोष व्रत]
== सप्ताहिक दिवसानुसार ==
== पौराणिक संदर्भ ==
इस व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान केभक्त श्री सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगाहर तरफ अन्याय और अनचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव कोशिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोकको प्राप्त
== संदर्भ ==
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