"प्रलाक्ष": अवतरणों में अंतर

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* (३) बुरुश से।
 
लेप चढ़ाने के बुरुश कई प्रकार के मिलते हैं कुछ बुरुश वानस्पतिक रेशे के, कुछ जांतब रेशे के बनते हैं और अब कृत्रिम रेशे के भी बनने लगे हैं।फुहारेहैं। फुहारे से लेप चढ़ाने की रीति अधिक व्यापक है। इससे लेप जल्द चढ़ जाता है, पर प्रलाक्षारस का कुछ अंश नष्ट भी हो जाता है। गरम या ठंढा दोनों दशाओं का लेप फुहारे से चढ़ाया जा सकता है। फुहारे से कोनों और किनारों पर भी लेप सरलता से चढ़ जाता है। निमज्जन रीति में प्रलाक्षार रखने के लिये टंकियाँ आवश्यक होती हैं। इन टंकियों में पात्र डुबाए जाते हैं। तारों पर इसी विधि से इनैमल लेप चढ़ाने के बाद लेप को ६५० सें. से २०० सें. ताप पर पकाते हैं, जिससे संसत्ति कठोरता और जल तथा रसायनकों के प्रति प्रतिरोध आदि गुण आ जाते, या बढ़ जाते हैं। पकाने में अवरक्त लैंप का भी प्रयोग हुआ है इससे समय की बचत होती है।
 
मोटर गाड़ियों पर लेप चढ़ाकर उन्हें सजाने में प्रलाक्षारस व्यापक रूप से आज प्रयुक्त होता है। वार्निश लेप से यह अधिक टिकाऊ और घर्षण प्रतिरोधक होता है। यह जल्द और सरलता से चढ़ता और जल्द सूखता भी है। [[कृत्रिम चर्म|कृत्रिम चमड़े]] के तैयार करने और [[रुई]] के वस्त्रों पर उभरते दाने बनाने में इसका विशेष उपयोग होता है। घरेलू फर्नीचर पर आजकल इसी का लेप चढ़ाया जाना पसंद किया जाता है।