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:'''सतां हि संदेहपदेषु वस्तुषु प्रमाणमन्तकरणप्रवृत्तय। '''
== अन्तश्चेतना ==
'''अंतश्चेतना''' शब्द अंग्रेजी के 'इनर कांशसनेस' (Inner Consciousness) का [[पर्यायवाची]] है। कभी-कभी यह सहज ज्ञान या प्रभा (इंट्यूशन) के अर्थ में भी प्रयुक्त होता है। [[संत जोन]] या [[महात्मा गाँधी|गांधी जी]] प्रायः अपनी भीतरी आवाज या आत्मा की आवाज का हवाला देते थे। कई रहस्यवादियों में यह अंतश्चेतना अधिक विकसित होती है। परंतु सर्वसाधारण में भी मन की आँखें तो होती ही हैं। यही मनुष्य का नीति अनीति से परे सदसद्विवेक (सद्-असद् विवेक) कहलाता है। दार्शनिकों का एक संप्रदाय यह मानता है कि जीव स्वभावतः 'शिव' है और इस कारण किसी अशिक्षित या असंस्कृत कहलाने वाले व्यक्ति में भी अच्छे-बुरे को पहचानने की अंतश्चेतना पशु से अधिक विद्यमान रहती है। [[भौतिकवाद|भौतिकवादी]] अंतश्चेतना को जन्मतः उपस्थित जैविक गुण नहीं मानते बल्कि सभ्यता के इतिहास से उत्पन्न, चेतना का बाह्य आवरण मानते हैं; जैसे [[फ्रायड]] उसे [[सुपर ईगो]] कहता है। [[श्री अरविन्द|अरविंद]] के दर्शन में यह शब्द उभरकर आया है। यदि भौतिक जड़ जगत् और मानवी चैतन्य के भीतर एक सी विकास रेखा खोजनी हो, या मुण्मय में चिन्मय बनने की संभावनाएँ हों तो इस अंतश्चेतना का किसी न किसी रूप में पूर्व अस्तित्व मनुष्य में मानना ही होगा। योग इसी को आत्मिक उन्नति भी कहता है। योगी अरविंद की परिभाषा में यही [[चैत्य पुरुष]] या 'साइकिक बीइंग' कहा गया है।
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