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[[चित्र:Teen murti bhawan amrit bazar patrika 15 august 1947.jpg|thumb|200px|अमृत बाज़ार पत्रिक]]
'''अमृत बाजार पत्रिका ''' [[बंगला]] भाषा का एक प्रमुख भारतीय [[समाचार पत्र]] है। भारत के सबसे पुराने समाचार पत्रों में इसकी गणना होती है। इसका पहला प्रकाशन २० फरवरीफ़रवरी १८६८ को हुआ था। इसकी स्थापना दो भाइयों शिषिर घोष और मोतीलाल घोष ने की थी। उनकी माँ का नाम अमृतमयी देवी और पिता का नाम हरिनारायण घोष था जो एक धनी व्यापारी थे।
 
यह पत्रिका पहले साप्ताहिक रूप में आरम्भ हुई। पहले इसका सम्पादन मोतीलाल घोष करते थे जिनके पास विश्वविद्यालय की डिग्री नहीं थी। यह पत्र अपने इमानदार व तेज-तर्रार रिपोर्टिंग के लिए प्रसिद्ध था। यह 'बंगाली' नामक अंग्रेजी भाषा के पत्र का प्रतिद्वंदी था जिसके कर्ताधर्ता [[सुरेन्द्र नाथ बनर्जी]] थे। अमृत बाजार पत्रिका इतना तेजस्वी समूह था कि भारत के राष्ट्रीय नेता सही सूचना के लिए इस पर भरोसा करते थे और इससे प्रेरणा प्राप्त करते थे।
 
ब्रिटिश राज के समय अमृतबाजार पत्रिका एक राष्ट्रवादी पत्र था। [[शिषिर कुमार घोष]] बाद में इस पत्रिका के सम्पादक बने। वे उच्च सिद्धान्तों के धनी व्यक्ति थे। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रेस को दबाने के लिए १८७८ में जब [[देशी प्रेस अधिनियम]] लगाया तो सरकार के इस दूषित चाल को भाँपकर, इसके एक हफ्ते बाद ही, आनन्द बाजार पत्रिका को २१ मार्च १८७८ पूर्णतः अंग्रेजी भाषा का पत्र बना दिया। पहले यह बंगला और अंग्रेजी में प्रकाशित होती थी। १९ फरवरीफ़रवरी १८९१ को यह पत्रिका साप्ताहिक से दैनिक बन गयी। सन् १९१९ में दो सम्पादकीयों के लिखने कारण अंग्रेज सरकार ने इस पत्रिका का जमानत (डिपाजिट) राशि जब्त कर ली। ये दो सम्पादकीय थे- 'टु हूम डज इण्डिया बिलांग?' (१९ अप्रैल) तथा 'अरेस्ट आफ मिस्टर गांधी : मोर आउटरेजेज?' (१२ अप्रैल)।
 
१९२८ से लेकर १९९४ तक जीवनपर्यन्त श्री तुषार कान्ति घोष इसके सम्पादक रहे। उनके कुशल नेतृत्व में पत्र ने अपना प्रसार बढ़ाया और बड़े पत्रों की श्रेणी में आ गया था। इस समूह ने १९३७ से 'युगान्तर' (जुगान्तर) नामक बंगला दैनिक भी निकालना आरम्भ किया।