"असुर (आदिवासी)": अवतरणों में अंतर

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== '''धर्म और पर्व-त्यौहार''' ==
 
असुर प्रकृति-पूजक होते हैं। ‘सिंगबोंगा’ उनके प्रमुख देवता है। ‘सड़सी कुटासी’ इनका प्रमुख [[पर्व]] है, जिसमें यह अपने औजारों और लोहे गलाने वाली भट्टियों की पूजा करते हैं। असुर महिषासुर को अपना पूर्वज मानते है। हिन्दू धर्म में महिषासुर को एक [[राक्षस]] (असुर) के रूप में दिखाया गया है जिसकी हत्या [[दुर्गा]] ने की थी। [[पश्चिम बंगाल]] और [[झारखण्ड]] में [[दुर्गा पूजा]] के दौरान असुर समुदाय के लोग शोक मनाते है।<ref>{{cite news|url=http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2009/09/090927_festival_mourners_adas.shtml|title=दुर्गा नहीं महिषासुर की जय|publisher=बीबीसी हिंदी|date=27 सितंबर, 2009|accessdate= 2013-08-30}}</ref>
 
[[जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय]], दिल्ली में पिछले कुछ सालों से एक पिछड़े वर्ग के छात्र संगठन ने ‘महिषासुर शहीद दिवस’ मनाने की शुरुआत की है।<ref>{{cite news|url=http://www.indianexpress.com/news/move-to-observe--mahishasur-day--on-jnu-campus/1021261/|title=Move to observe ‘Mahishasur Day’ on JNU campus|publisher=The Indian Express|date=Oct 24, 2012|accessdate= 2013-08-30}}</ref>
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लोहा गलाने और बनाने की परंपरागत आजीविका के खात्मे तथा खदानों के कारण तेजी से घटते कृषि आधारित अर्थव्यवस्था ने असुरों को गरीबी के कगार पर ला खड़ा किया है। नतीजतन पलायन, विस्थापन एक बड़ी समस्या बन गई है। गरीबी के कारण नाबालिग असुर लड़कियों की [[तस्करी]] अत्यंत चिंताजनक है। ईंट भट्ठों और असंगठित क्षेत्र में मिलनेवाली दिहाड़ी मजदूरी भी उनके आर्थिक-शारीरिक और सांस्कृतिक शोषण का बड़ा कारण है।
नेतरहाट में बॉक्साइट खनन की वजह से असुरों की जीविका छीन गयी है और खनन से उत्पन्न प्रदूषण से इनकी कृषि भी बुरी तरह प्रभावित हुई है। पहले से ही कम जनसंख्या वाले असुर समुदाय की जनसंख्या में पिछले कुछ सालों में कमी आई है।
इन दिनों असुर समुदाय से आने वाली एक युवा सुषमा असुर, जो [[नेतरहाट]] में रहती हैं, अपने समुदाय की कला-संस्कृति और अस्तित्व को बचाने के लिए प्रयासरत है।<ref>{{cite news|url=http://test.prabhatkhabar.com/node/274891|title=असुरों का ज्ञान सहेजने में जुटीं सुषमा|publisher=प्रभात खबर|date=16 मार्च, 2013|accessdate= 2013-08-30}}</ref>