"भारत छोड़ो आन्दोलन और बिहार": अवतरणों में अंतर

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बिहार प्रान्तीय आजाद दस्ते का नेतृत्व सूरज नारायण सिंह के अधीन था। परन्तु भारत सरकार के दबाव में मई, १९४३ में जय प्रकाश नारायण, डॉ॰ लोहिया, रामवृक्ष बेनीपुरी, बाबू श्यामनन्दन, कार्तिक प्रसाद सिंह इत्यादि नेताओं को गिरफ्तार कर लिया और हनुमान नगर जेल में डाल दिया गया। आजाद दस्ता के निर्देशक सरदार नित्यानन्द सिंह थे। मार्च, १९४३ में राजविलास (नेपाल) में प्रथम गुरिल्ला प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई।
 
सियाराम-ब्रह्मचारी दल- बिहार में गुप्त क्रान्तिकारी आन्दोलन का नेतृत्व सियाराम-ब्रह्मचारी दल ने स्थापित किया था। इसके क्रान्तिकारी दल के कार्यक्रम की चार बातें मुख्य थीं- धन संचय, शस्त्र संचय, शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण तथा सरकार का प्रतिरोध करने के लिए जनसंगठन बनाना। सियाराम-ब्रह्मचारी दल का प्रभाव भागलपुर, मुंगेर, किशनगंज, बलिया, सुल्तानगंज, पूर्णिया आदि जिलों में था। सियाराम सिंह सुल्तानगंज के तिलकपुर गांव के निवासी थी और ब्रह्मचारी थाना बिहपुर के नन्ह्कार गांव के रहने वाले, इन्ही दोनों के नाम पर क्रांतिकारी दस्ते का नामकरण हुआ | क्रान्तिकारी आन्दोलन में हिंसा और पुलिस दमन के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं।
 
तारापुर गोलीकांड :- मुंगेर जिले के तारापुर थाना में तिरंगा फहराते हुए 60 क्रांतिकारी शहीद हुए थे | 15 फरवरी 1932 की दोपहर सैकड़ों आजादी के दीवाने मुंगेर जिला के तारापुर थाने पर तिरंगा लहराने निकल पड़े | उन अमर सेनानियों ने हाथों में राष्ट्रीय झंडा और होठों पर वंदे मातरम, भारत माता की जय नारों की गूंज लिए हँसते-हँसते गोलियाँ खाई थी | भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े गोलीकांड में देशभक्त पहले से लाठी-गोली खाने को तैयार हो कर घर से निकले थे | 50 से अधिक सपूतों की शहादत के बाद स्थानीय थाना भवन पर तिरंगा लहराया |
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कांग्रेस ने अनेक रचनात्मक कार्य उद्योग संघ, चर्खा संघ आदि चलाये। रात्रि समय में पाठशाला, ग्राम पुसतकालय खोले गये। आटा चक्‍की, दुकान चलाना एवं खजूर से गुड़ बनाना आदि कार्यों का प्रशिक्षण दिया गया। बिहार में कांग्रेसी आश्रम खोलने का शीलभद्र याज्ञी का विशेष योगदान रहा। १९३५ ई. का वर्ष कांग्रेस का स्वर्ण जयन्ती वर्ष था जो डॉ॰ श्रीकृष्ण सिंह की अध्यक्षता में धूमधाम से मनाया गया। जनवरी १९३६ ई. में छः वर्षों के प्रतिबन्धों के पश्‍चात्‌ बिहार राजनीतिक सम्मेलन का १९वाँ अधिवेशन पटना में आयोजित किया गया। २२ से २७ जनवरी के मध्य बिहार के १५२ निर्वाचन मण्डल क्षेत्रों में चुनाव सम्पन्‍न हुए। कांग्रेस ने १०७ में से ९८ जीते। १७-१८ मार्च को दिल्ली में कांग्रेस बैठक के बाद बिहार में कांग्रेस मन्त्रिमण्डल का गठन हुआ।
 
२१ जून को वायसराय लिनलिथगो के वक्‍तव्य ने संशयों को दूर करने में सफलता पाई अन्त में युनुस को सरकार का निमन्त्रण न देकर श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व मन्त्रिमण्डल का गठन किया गया, अनुग्रह नारायण सिंह उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने। रामदयालु अध्यक्ष तथा प्रो॰ अब्दुल बारी विधानसभा के उपाध्यक्ष बने। इस बीच अण्डमान से लाये गये राजनीतिक कैदियों की रिहाई के प्रश्‍न पर गंभीर विवाद उत्पन्‍न हो गया फलतः वायसराय के समर्थन इन्कार के बाद १५ जनवरी, १९३८ के मन्त्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस ने बाद में सुधारात्मक एवं रचनात्मक कार्यों की तरफ ध्यान देने लगा। बिहार टेनेन्सी अमेण्टमेड एक्ट के तहत काश्तकारी व्यवस्था के अन्तर्गत किसानों को होने वाली समस्या को दूर करने का प्रयास किया। चम्पारण कृषि संशोधन कानून और छोटा नागपुर संशोधन कानून पारित किये गये। श्रमिकों में फैले असन्तोष से १९३७-३८ ई. में ग्यारह बार हड़तालें हुईं। अब्दुल बारी ने टाटा वर्क्स यूनियन की स्थापना की। योगेन्द्र शुक्ल, सत्यनारायण सिंह आदि प्रमुख श्रमिक नेता हुए। इस बीच मुस्लिम लीग की गतिविधियाँ बढ़ गयीं।
 
विदेशी वस्त्र बहिष्कार- ३ जनवरी, १९२९ को कलकत्ता में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने का निर्णय किया गया। इसमें अपने स्वदेशी वस्त्र खादी वस्त्र को बढ़ावा देने के लिए माँग की गई। सार्वजनिक सभाओं एवं मैजिक लालटेन की सहायता से कार्यकर्ता के सहारे गाँव में पहुँचे।
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इस आन्दोलन का प्रारूप भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सितम्बर, १९२० ई. में पारित हुआ, लेकिन बिहार में इसके पूर्व ही असहयोग प्रस्ताव पारित हो चुका था। २९ अगस्त, १९१८ को कांग्रेस ने अपने मुम्बई अधिवेशन में ंआण्टेक्यू-चेम्सफोर्ड रिपोर्ट पर विचार किया जिसकी अध्यक्षता बिहार के प्रसिद्ध बैरिस्टर हसन इमान ने की। हसन इमान के नेतृत्व में इंग्लैण्ड में एक शिष्ट मण्डल भेजा जा रहा था, जिससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाया जाय। रौलेट एक्ट के काले कानून के विरुद्ध गाँधी जी ने पूरे देश में जनआन्दोलन छेड़ रखा था।
 
बिहार में ६ अप्रैल, १९१९ को हड़ताल हुई। मुजफ्फरपुर, छपरा, गया, मुंगेर आदि स्थानों पर हड़ताल का व्यापक असर पड़ा। ११ अप्रैल, १९१९ को पटना में एक जनसभा का आयोजन किया गया जिसमें गाँधी जी की गिरफ्तारी का विरोध किया गया। असहयोग आन्दोलन के क्रम में मजरूलहक, राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद, मोहम्मद शफी और अन्य नेताओं ने विधायिका के चुनाव से अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। छात्रों को वैकल्पिक शिक्षा प्रदान करने के लिए पटना-गया रोड पर एक राष्ट्रीय महाविद्यालय के ही प्रांगण में बिहार विद्यापीठ का उद्‍घाटन ६ फरवरी, १९२१ को गाँधी जी द्वारा किया गया। २० सितम्बर, १९२१ से मजहरूल हक ने सदाकत आश्रय से ही मदरलैण्ड नामक अखबार निकालना शुरू किया। इसका प्रमुख उद्देश्य राष्ट्रीय भावना के प्रचार-प्रसार एवं हिन्दू-मुस्लिम एकता की स्थापना करना था। इन्होंने गाँधी जी को किसानों की आर्थिक दशा की तरफ ध्यान दिलाया। ब्रजकिशोर प्रसाद ने एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिससे समस्याओं का निदान किया जा सके। राजकुमार शुक्ल के अनुरोध पर गाँधी जी ने कलकत्ता से १५ अप्रैल, १९१७ को पटना, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा होते हुए चम्पारण पहुँचे। स्थानीय प्रशासन ने उनके आगमन एवं आचरण को गैर-कानूनी घोषित कर गिरफ्तार कर लिया और मोतिहारी की जेल में भेज दिया गया लेकिन अगले दिन छोड़ दिया गया। बाद में तत्कालीन उपराज्यपाल एडवर्ड गेट ने गाँधीजी को वार्ता के लिए बुलाया और किसानों के कष्टों की जाँच के लिए एक समिति के लिए एक कमेटी का गठन किया, जिसका नाम चम्पारण एग्रेरोरियन कमेटी पड़ा। गाँधी जी के कहने पर तीन कढ़िया व्यवस्था का अन्त कर दिया गया।
 
खिलाफत आन्दोलन
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चम्पारण में अंग्रेज भूमिपतियों द्वारा किसानों पर निर्मम शोषण किया जा रहा था। जमींदारों द्वारा किसानों को बलात नील की खेती के लिए बाध्य किया जाता था। प्रत्येक बीघे पर उन्हें तीन कट्ठों में नील की खेती अनिवार्यतः करनी पड़ती थी। इन्हें तीन कठिया व्यवस्था कहा जाता था। बदले में उचित मजदूरी नहीं दी जाती थी। इसी कारण से किसानों एवं मजदूरों में भयंकर आक्रोश था। सन्‌ १९१६ में लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के राजकुमार शुक्ल जो स्वयं जमींदार के आर्थिक शोषण से ग्रस्त थे, भाग लिया।
 
२६ दिसम्बर, १९३८ को पटना में मुस्लिम लीग का २६वाँ अधिवेशन हुआ। २९ दिसम्बर, १९३८ को अखिल भारतीय मुसलमान छात्र सम्मेलन हुआ। ४ जनवरी, १९३२ को राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजकिशोर प्रसाद, कृष्ण बल्लभ सहाय आदि नेतागण को गिरफ्तार किया गया। रैम्जे मैक्डोनाल्ड द्वारा हरिजन को कोटा की व्यवस्था से अस्त-व्यस्त हो गया। १२ जुलाई, १९३३ को सामुदायिक सविनय अवज्ञा के स्थान पर व्यक्‍तिगत सविनय अवज्ञा का प्रारूप तैयार किया गया। १९२७ ई. में पटना युवा संघ की स्थापना की गई।
 
नंगी हड़ताल- ४ मई, १९३० को गाँधी जी की गिरफ्तारी के बाद स्वदेशी के प्रचार एवं विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया गया। छपरा के कैदियों ने वस्त्र पहनने से इंकार कर दिया। नंगे शरीर रहकर विदेशी वस्त्रों का विरोध किया गया।
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१९०७ ई. में ही फखरुद्दीन कलकत्ता उच्च न्यायालय में न्यायाधीश नियुक्‍त होने वाले प्रथम बिहारी बने तथा स्थायी पारदर्शी के रूप में इमाम हुसैन को नियुक्‍त किया गया। १९१० ई. में मार्लेमिण्टो सुधार के अन्तर्गत प्रथम चुनाव आयोजन में सच्चिदानन्द सिंह ने चार महाराजाओं को हराकर बंगाल विधान परिषद्‌ की ओर से केन्द्रीय विधान परिषद्‌ में विधि सदस्य के रूप में नियुक्‍त हुए। १९११ ई. में दिल्ली दरबार में जार्ज पंचम के आगमन में केन्द्रीय परिषद्‍ के अधिवेशन के दौरान सच्चिदानन्द सिंह, अली इमाम एवं मोहम्मद अली ने पृथक बिहार की माँग की। फलतः इन बिहारी महान सपूतों द्वारा १२ दिसम्बर, १९११ को दिल्ली के शाही दरबार में बिहार और उड़ीसा को मिलाकर एक नया प्रान्त बनाने की घोषणा हुई। इस घोषणा के अनुसार १ अप्रैल, १९१२ को बिहार एवं उड़ीसा नये प्रान्त के रूप में इनकी विधिवत्‌ स्थापना की गई। बिहार के स्वतन्त्र अस्तित्व का मुहर लगने के तत्काल बाद पटना में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का २७वाँ वार्षिक सम्मेलन हुआ। मुगलकालीन समय में बिहार एक अलग सूबा था। मुगल सत्ता समाप्ति के समय बंगाल के नवाबों के अधीन बिहार चला गया। फलतः बिहार की अलग राज्य की माँग सर्वप्रथम मुस्लिम और कायस्थ ने की थी। जब लार्ड कर्जन ने बंगाल को १९०५ ई. में पूर्वी भाग एवं पश्‍चिमी भाग में बाँध दिया था तब बिहार के लोगों ने इस प्रस्ताव का विरोध किया एवं सच्चिदानन्द सिंह एवं महेश नारायण ने अखबारों में वैकल्पिक विभाजन की रूपरेखा देते हुए लेख लिखे थे जो पार्टीशन ऑफ बंगाल और लेपरेशन ऑफ बिहार १९०६ ई. में प्रकाशित हुए थे।
 
इस समय कलकत्ता में राजेन्द्र प्रसाद अध्ययनरत थे वे वहाँ बिहारी क्लब के मन्त्री थे। डॉ॰ सच्चिदानन्द सिंह, अनुग्रह नारायण सिंह, हमेश नारायण तथा अन्य छात्र नेताओं से विचार-विमर्श के बाद पटना में एक विशाल बिहार छात्र सम्मेलन करवाया। यह सम्मेलन दशहरा की छुट्टी में पहला बिहारी छात्र सम्मेलन पटना कॉलेज के प्रांगण में पटना के प्रमुख शर्फुद्दीन के सभापतित्व में सम्पन्‍न हुआ था। इससे बिहार पृथक्‍करण आन्दोलन पर विशेष बल मिला। १९०६ ई. में बिहार टाइम्स का नाम बदलकर बिहारी कर दिया गया। १९०७ ई. में महेश नारायण का निधन हो गया। सच्चिदानन्द ने ब्रह्मदेव नारायण के सहयोग से पत्रिका का सम्पादन जारी रखा।
 
बिहार प्रादेशिक सम्मेलन की स्थापना १२-१३ अप्रैल, १९०६ में पटना में हुई जिसकी अध्यक्षता अली इमाम ने की थी। इसमें बिहार को अलग प्रान्त की माँग के प्रस्ताव को पारित किया गया।
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रेग्यूलेटिंग एक्ट १७७४ ई. के तहत बिहार के लिए एक प्रान्तीय सभा का गठन किया तथा १८६५ ई. में पटना और गया के जिले अलग-अलग किये गये।
 
१८९४ ई. में पटना से प्रकाशित समाचार-पत्र के माध्यम से बिहार पृथक्‍करण आन्दोलन की माँग की गई। इस पत्रिका के सम्पादक महेश नारायण और सच्चिदानन्द थे, जबकि किशोरी लाल तथा कृष्ण सहाय भी शामिल थे।कुर्थाथे। कुर्था थाना में झण्डा फहराने की कोशिश में श्याम बिहारी लाल मारे गये। कटिहार थाने में झण्डा फहराने में कपिल मुनि भी पुलिस का शिकार हुए।
 
ब्रिटिश सरकार आन्दोलन एवं क्रान्तिकारी गतिविधियों से मजबूर होकर अपने शासन प्रणाली के नीति को बदलने लगी।