"इमानुएल काण्ट": अवतरणों में अंतर

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== जीवनी ==
इमानुएल कांट [[जर्मनी]] के पूर्वी प्रशा प्रदेश के अंतर्गत, [[कोनिगुज़बर्ग]] (Königsland) नगर में घोड़े का साधारण साज बनानेवाले के घर 22 अप्रैल, सन् 1724 ई. को पैदा हुआ था। कोनिगुज़बर्ग शहर आज [[रूस]] में है और अब इसका नाम कालिनिनग्राद [[Kaliningrad]] है। उसकी प्रारंभिक शिक्षा अपनी माता की देखरेख में हुई थी, जो अपने समय के "पवित्र मार्ग" (पायाटिज्म) नामक धार्मिक आंदोलन से बहुत प्रभावित थी। अतएव, अल्पायु में ही वह धर्मानुमोदित आचरण, सरल, सुव्यवस्थित एवं अध्यवसायपूर्ण जीवन में रुचि रखने लगा था। 16 वर्ष की आयु में, "कॉलेजियम फ़ीडेरिकियेनम" की शिक्षा समाप्त कर, वह कोनिग्ज़बर्ग के विश्वविद्यालय में प्रविष्ट हुआ, जहाँ छह वर्ष (1746 ई. तक) उसने [[भौतिकशास्त्र]], [[गणित]], [[दर्शन]] एवं [[धर्मशास्त्र]] का अध्ययन किया।
 
विश्वविद्यालय छोड़ने के बाद कांट नौ वर्षों के लिए, कोनिग्ज़बर्ग से 60 मील दूर, जुड्स्केन नामक गाँव में चला गया। वहाँ वह दो तीन परिवारों में अध्यापन कार्य कर अपनी जीविका चलाता और भौतिकशास्त्र तथा दर्शन में स्वाध्याय करता रहा। इस बीच उसके बहुत से लेख तथा लघुग्रंथ प्रकाशित हुए, जिनमें से दो–"जीवित शक्तियों के उचित अनुमान पर विचार" (थाट्स अपॉन द ट्रू एस्टिमेशन ऑव लिविंग फ़ोर्सेज़, 1747 ई.) तथा "सामान्य प्राकृतिक इतिहास एवं आकाशसंबंधी सिद्धांत" (जनरल नैचुरल हिस्ट्री ऐंड थ्योरी ऑव हेवेन, 1755 ई.) विशेष उल्लेख हैं। इनमें से प्रथम प्रकाशन में उसने [[रीने दकार्त]] (1596-1650 ई.) तथा [[गॉटफ़्रीड विल्हेल्म लीबनित्स]] (1646-1716 ई.) के सत्ता संबंधी विचारों का तथा दूसरे में [[न्यूटन]] तथा लीबनित्स के यांत्रिक एवं प्रयोजनतावादी विचारों का तथा दूसरे में न्यूटन तथा लीबनित्स के यांत्रिक एवं प्रयोजनतावादी विचारों में समन्वय करने का प्रयत्न किया था। उसने "डाक्टर लेजेंस" की उपाधि के निमित्त आवश्यक प्रबंध भी 1755 ई. में प्रस्तुत कर दिया था और [[कोनिग्ज़बर्ग विश्वविद्यालय]] ने उसे उक्त उपाधि प्रदान कर उसकी योग्यता प्रमाणित की थी। किंतु उसकी व्यक्तिगत समस्याओं में कोई परिवर्तन न हुआ। विश्वविद्यालय ने उसके नौ वर्ष के परिश्रम से प्रसन्न होकर उसे विशिष्ट व्याख्याता (प्राइवेट डोज़ेंट) नियुक्त कर लिया था, किंतु इस कार्य के लिए उसे वेतन कुछ भी नहीं मिलता था।
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"तर्कशास्त्र (लॉजिक, 1800), "भौतिक भूगोल" (1802) तथा "शिक्षाशास्त्र" (पेडॉगॉजिक्स, 1802)।
 
इतना कार्य करने के बाद 12 फरवरी,फ़रवरी 1804 ई. को कोनिग्ज़बर्ग में उसकी मृत्यु हुई। कांट का व्यक्तिगत जीवन अटल नियमों से जकड़ा हुआ था। प्रात:काल से संध्या तक उसके सभी काम निश्चित समय पर होते थे। भोजन के समय के संलाप के भी नियम थे। पाश्चात्य दार्शनिकों में से अधिकांश भ्रमणशील रहे हैं, किंतु कांट अपने नगर से जीवन भर में अधिक से अधिक साठ मील गया था। फिर भी उसका दृष्टिकोण संकुचित न था। वह केवल बौद्धिक चिंतक न था, उसने [[सुकरात]] और [[पाइथागोरस]] की भाँति जीवन में अपने दार्शनिक विचारों को स्थान दिया था। हाइने नामक जर्मन कवि ने कांट के दार्शनिक जीवन की प्रशंसा में ऐसी बातें कही हैं जो उसे सनकी सिद्ध करती हैं, किंतु, उसके विचारों ने उत्तरवर्ती दर्शन को इतना प्रभावित किया कि कांट के अध्येता उसे दर्शन में एक नवीन युग का प्रवर्तक मानते हैं।
 
== इन्हें भी देखें ==