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उल्कापिंडों का एक बृहत् संग्रह कलकत्ते के [[भारतीय संग्रहालय]] (अजायबघर) के भूवैज्ञानिक विभाग में प्रदर्शित है। इसकी देखरेख भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण संस्था के निरीक्षण में होती है। प्रचलित नियमों के अनुसार देश में कहीं भी गिरा हुआ उल्कापिंड सरकारी संपत्ति होता है। जिस किसी को ऐसा पिंड मिले उसका कर्तव्य है कि वह उसे स्थानीय जिलाधीश के पास पहुँचा दे जहाँ से वह भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण विभाग को भेज दिया जाता है। इस प्रकार धीरे-धीरे यह संग्रह अपने ढंग का अनोखा हो गया है। इसके अतिरिक्त इस संग्रह में विदेशों से भी प्राप्त नमूने रखे गए हैं। एशिया भर में यह संग्रह सबसे बड़ा है और विश्व के अन्य संग्रहों में भी इसका स्थान अत्यंत ऊँचा है, क्योंकि एक तो इसमें अनेक भाँति के नमूने हैं और दूसरे अनेक नमूने अति दुर्लभ जातियों के हैं। सब मिलाकर इसमें 468 विभिन्न उल्कापात निरूपित हैं, जिनमें से 149 धात्विक और 319 आश्मिक वर्ग के हैं।
 
इस संग्रहालय की सबसे बड़ी भारतीय आश्मिक उल्का इलाहाबाद जिले के मेडुआ स्थान से प्राप्त हुई थी (द्र. चित्रफलक)। वह 30 अगस्त, 1920 को प्रात: 11 बजकर 15 मिनट पर गिरी था। उसका भार प्राय: 56,657 ग्राम (4,818तोले) है और दीर्घतम लंबाई 12 इंच है। दूसरा स्थान उस पिंड का है जो मलाबार में कुट्टीपुरम ग्राम में 6 अप्रैल, 1914 को प्रात: काल 7 बजे गिरा था। इसका भार 38,437 ग्राम (3,295 तोले) है। इस संग्रह में रखे हुए उल्कापिंडों का विवरण भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के मेमॉयर संख्या 75 में विस्तारपूर्वक दिया हुआ है।
 
== बाहरी कड़ियाँ ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/उल्का" से प्राप्त