"गंगाधर नेहरू": अवतरणों में अंतर
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'''गंगाधर नेहरू ''' (1827–1861) भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान दिल्ली के कोतवाल (मुख्य पुलिस अधिकारी) थे। वे स्वतन्त्रता सेनानी कांग्रेस नेता [[मोतीलाल नेहरू]] के पिता और भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री [[जवाहरलाल नेहरू]] के दादा थे।<ref>{{cite news|title=The Founder of the Nehru Dynasty|url= http://www.navhindtimes.in/panorama/founder-nehru-dynasty|newspaper=http://www.navhindtimes.in|date=23
== जीवन परिचय ==
1827 ई. में जन्मे गंगाधर नेहरू 1857 ई. से कुछ समय पहले [[दिल्ली]] के कोतवाल नियुक्त हुए थे। वे दिल्ली के अन्तिम कोतवाल थे।<ref>[http://www.delhipolice.nic.in/home/history.htm History] [[Delhi Police]].</ref> 1857 के विद्रोह के बाद जब अंग्रेज पुलिस ने दिल्ली शहर को कब्जे में करके कत्लेआम आरम्भ किया तो वे अपनी पत्नी जियोरानी देवी और चार सम्तानों के साथ [[आगरा]] चले गये। इसके चार वर्षों बाद आगरा में ही सन् 1861 ई. में उनकी मृत्यु हुई।<ref name=san/>
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[[जवाहरलाल नेहरू]] ने अपनी आत्मकथा में दादा को याद करते हुए लिखा है कि उनके दादा 1861 में 34 साल की भरी जवानी में ही मर गये। [[दादा]] की एक छोटी सी तस्वीर का जिक्र करते हुए उन्होंने लिखा है कि वे मुगलिया लिबास पहने किसी [[मुगल|मुगल सरदार]] जैसे लगते थे।<ref name="नेहरू">{{cite book |last1=नेहरू |first1=जवाहरलाल |authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=मेरी कहानी |url=http://www.worldcat.org/title/meri-kahani/oclc/58907011?referer=di&ht=edition|format= |accessdate=12 नवम्बर 2013 |edition=11|series= |volume=2 |date= |year=1995|month= |origyear= |publisher= Sasta Sahitya |location=New Delhi |language=Hindi |isbn= |oclc=58907011 |doi= |id= |page=9-13 |pages= |chapter= |chapterurl= |quote= |ref= |bibcode= |laysummary= |laydate= |separator= |postscript= |lastauthoramp=}}</ref>
जवाहरलाल नेहरू की बहन कृष्णा हठीसिंह ने भी अपने संस्मरणों में लिखा हैं कि [[१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम|1857 के विद्रोह]] से पहले उनके दादा [[मुगल]] बादशाह [[बहादुरशाह जफर]] के जमाने में नगर कोतवाल थे।{{उद्धरण आवश्यक|date=अक्टूबर 2013}}
इतिहासकारों के अनुसार मुगल साम्राज्य में नगर कोतवाल जैसे महत्वपूर्ण पद पर अनिवार्य रूप से केवल अपने ही वंश के [[मुसलमान]] रखे जाते थे। मुगल अभिलेखों के अनुसार बहादुरशाह जफर के समय कोई भी हिन्दू इतने महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था। उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे जिनके नाम भाऊसिंह और काशीनाथ थे जो कि [[दिल्ली|लाहौरी गेट, दिल्ली]] में तैनात थे। लेकिन किसी गंगाधर नाम के व्यक्ति का कोई विवरण नहीं मिला। शहर कोतवाल का नाम गयासुद्दीन गाजी अवश्य मिला।<ref name="अग्रवाल">{{cite book |last1=अग्रवाल |first1=एम०के०|authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title='''फ्रॉम भारत टू इण्डिया''' |url=http://books.google.co.in/books?id=X3AvEjZtWxsC&pg=PA459&lpg=PA459&dq=ghiyasuddin+ghazi&source=bl&ots=gacwI9Bhir&sig=qiB9vogslgqKuSGVpi8Ck39o2ps&hl=en&sa=X&ei=a3M5UqHLOomRrQfH7IH4AQ&ved=0CFQQ6AEwBzgU#v=onepage&q=ghiyasuddin%20ghazi&f=false|accessdate=18 सितम्बर
[[मोतीलाल नेहरू]] के मुंशी मुबारक अली बचपन में बालक जवाहर को पुराने जमाने की कहानियाँ सुनाया करते थे कि किस प्रकार उसके दादा को बागियों ने 1857 के गदर में तबाह कर दिया। अगर [[मुसलमान|मुसलमानों]] ने उनकी हिफ़ाजत न की होती तो उनके खानदान का कहीं कोई नामोनिशान भी न होता।<ref name="क्रान्त">{{cite book |last1=क्रान्त |first1=|authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=स्वाधीनता संग्राम के क्रान्तिकारी साहित्य का इतिहास |url=http://www.worldcat.org/title/svadhinata-sangrama-ke-krantikari-sahitya-ka-itihasa/oclc/271682218 |format= |accessdate=24
दिल्ली की स्थिति पर [[एडिनबरा]] [[विश्वविद्यालय]] में सन् 2007 से 2008 तक चली विशेष शोध परियोजना के अन्तर्गत प्रकाशित लेख में 1857 के विद्रोह के समय दिल्ली में गंगाधर नाम का कोई कोतवाल नहीं था।<ref>http://www.csas.ed.ac.uk/mutiny/confpapers/Farooqui-Paper.pdf</ref>
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बहुत से लोग गयासुद्दीन गाजी को गंगाधर नेहरू का पूर्वज बताने को एक दुष्प्रचार मात्र मानते हैं क्योंकि इस बात के कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। इसके विपरीत इसके विरोध में कई स्पष्ट उल्लेख मौजूद हैं। जवाहरलाल नेहरू ने अपने पुरखों का वर्णन अपनी [[आत्मकथा]] में इस प्रकार किया है - "हम लोग कश्मीरी हैं। दो सौ बरस से ज्यादा हुए होंगे, अठारहवीं सदी के शुरू में हमारे पुरखे धन और यश कमाने के इरादे से [[कश्मीर]] की सुन्दर घाटियों से नीचे के उपजाऊ मैदानों में आ गये। [[औरंगजेब]] मर चुका था और [[फर्रुख़ सियर]] बादशाह था। हमारे जो पुरखा सबसे पहले आये, उनका नाम था राजकौल। कश्मीर के संस्कृत और फारसी विद्वानों में उनका बड़ा नाम था। फर्रुख़ सियर जब कश्मीर गया तो उसकी नजर उनपर पड़ी और शायद उसीके कहने से उनका परिवार दिल्ली आया, जोकि उस समय मुगलों की राजधानी थी। यह सन् 1716 के आसपास की बात है। राजकौल को एक मकान और कुछ जागीर दी गयी। मकान [[नहर]] के किनारे था इसी से उनका नाम नेहरू पड़ गया। कौल, जो उनका कौटुम्बिक नाम था, बदलकर कौल-नेहरू हो गया और आगे चलकर कौल तो गायब हो गया और हम महज नेहरू रह गये।"<ref name="नेहरू"></ref>
'''एम०जे० अकबर''' ने नेहरू के पूर्वजों के सम्बन्ध में लिखा है - "यह निश्चित है कि नेहरू परिवार मुग़ल दरबार का हिस्सा था और उन्हें कुछ गाँवों पर ज़मींदारी के अधिकार प्राप्त थे। किन्तु राज कौल के पौत्र मौसाराम कौल व साहबराम कौल के समय तक यह जागीर धीरे धीरे खत्म होती रही, शायद मुग़ल सल्तनत के विनाश के अनुपात में। मौसाराम के पुत्र लक्ष्मीनारायण ने पाला बदल लिया और वे [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी]] के प्रथम वकील बने, जो कि उस समय तक मुग़ल दरबार में बहुत बड़ी स्थिति हासिल कर चुकी थी। उनके पुत्र गंगा धर बहुत कम उम्र में ही पुलिस में कोतवाल बन गये तथा 1857 के विद्रोह के दिल्ली पहुँचने तक वे इस पद पर बने रहे। इसके बाद हुए कत्लेआम ने राज कौल के वंश को ये शहर छोड़ने पर मजबूर कर दिया, जिसने इसे डेढ़ शताब्दी पहले अपनाया था।"<ref >{{cite book |last1=Akbar |first1=M.J.|authorlink1= |last2= |first2= |editor1-first= |editor1-last= |editor1-link= |others= |title=Nehru : the making of India |url=http://www.worldcat.org/title/nehru-the-making-of-india/oclc/20827472&referer=brief_results |accessdate=27
== इन्हें भी देखें==
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