"गोपाल कृष्ण गोखले": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Gopal krishan gokhale.jpg|right|thumb|250px|गोपाल कृष्ण गोखले]]
 
'''गोपाल कृष्ण गोखले''' (9 मई, 1866 - फरवरी 19, 1915) [[भारत]] एक स्वतंत्रता सेनानी, समाजसेवी, विचारक एवं सुधारक थे। [[महादेव गोविंद रानाडे]] के शिष्य गोपाल कृष्ण गोखले को वित्तीय मामलों की अद्वितीय समझ और उस पर अधिकारपूर्वक बहस करने की क्षमता से उन्हें भारत का '[[ग्लेडस्टोन]]' कहा जाता है। वे [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] में सबसे प्रसिद्ध नरमपंथी थे। चरित्र निर्माण की आवश्यकता से पूर्णत: सहमत होकर उन्होंने 1905 में [[सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसायटी]] की स्थापना की ताकि नौजवानों को सार्वजनिक जीवन के लिए प्रशिक्षित किया जा सके। उनका मानना था कि वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा भारत की महत्वपूर्ण आवश्यकता है। स्व-सरकार व्यक्ति की औसत चारित्रिक दृढ़ता और व्यक्तियों की क्षमता पर निर्भर करती है। [[महात्मा गांधी]] उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।
 
== परिचय ==
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[[अफ्रीका]] से लौटने पर [[महात्मा गांधी]] भी सक्रिय राजनीति में आ गए और गोपालकृष्ण गोखले के निर्देशन में '[[सर्वेट्स आफ इंडिया सोसायटी]]' की स्थापना की, जिसमें सम्मिलित होकर लोग देश-सेवा कर सकें, पर इस सोसाइटी की सदस्यता के लिए गोखले जी एक-एक सदस्य की कड़ी परीक्षा लेकर सदस्यता प्रदान करते थे। इसी सदस्यता से संबंधित एक घटना है - मुंबई म्युनिस्पैलिटी में एक इंजीनियर थे अमृत लाल वी. ठक्कर। वे चाहते थे कि गोखले जी की सोसाइटी में सम्मिलित होकर राष्ट्र-सेवा से उऋण हो सकें। उन्होंने स्वयं गोखले जी से न मिलकर देव जी से प्रार्थना-पत्र सोसाइटी में सम्मिलित होने के लिए लिखवाया। अमृतलाल जी चाहते थे कि गोखले जी सोसाइटी में सम्मिलित करने की स्वीकृति दें तो मुंबई म्युनिस्पैलिटी से इस्तीफा दे दिया जाए, पर गोखले जी ने दो घोड़ों पर सवार होना स्वीकार न कर स्पष्ट कहा कि यदि सोसाइटी की सदस्यता चाहिए तो पहले मुंबई म्युनिस्पैलिटी से इस्तीफा दें। गोखले की स्पष्ट और दृढ़ भावना के आगे इंजीनियर अमृतलाल वी. ठक्कर को त्याग-पत्र देने के उपरांत ही सोसाइटी की सदस्यता प्रदान की गई। यही इंजीनियर महोदय गोखले जी की दृढ़ नीति-निर्धारण के कारण राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत सेवा-क्षेत्र में भारत विश्रुत '[[ठक्कर बापा]]' के नाम से जाने जाते है।
 
गोखले जी 1905 में आजादी के पक्ष में अंग्रेजों के समक्ष [[लाला लाजपतराय]] के साथ [[इंग्लैंड]] गए और अत्यंत प्रभावी ढंग से देश की स्वतंत्रता की वहां बात रखी। 19 फरवरीफ़रवरी 1915 को गोपालकृष्ण गोखले इस संसार से सदा-सदा के लिए विदा हो गए।
 
{{भारतीय स्वतंत्रता संग्राम}}