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[[File:Kashmir map.svg|thumb|भारतीय राज्य जम्मू एवं कश्मीर में जम्मू क्षेत्र कश्मीर घाटी के पड़ोस में एवं दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। इस क्षेत्र में डोडा, कठुआ, जम्मू, उथमपुर, राजौरी एवं पुंछ जिले आते हैं।]]
[[File:Lama dance at Jummoo,.jpg|thumb|जम्मू में लामा नृत्य]]
कई इतिहासकारों एवं स्थानीय लोगों के विश्वास के अनुसार जम्मू की स्थापना[[राय जम्बुलोचन| राजा जम्बुलोचन]] ने १४वीं शताब्दी ई.पू. में की थी और नाम रखा ''जम्बुपुरा ''जो कालांतर में बिगड़ कर जम्मू हो गया। [[राय जम्बुलोचन]] राजा [[बाहुलोचन]] का छोटा भाई था। (१८४६&ndash;१९५२) में बाहुलोचन ने [[तवी नदी]] के तट पर बाहु किला बनवाया था और जम्बुलोचन ने जम्बुपुरा नगर बसवाया था। राजा एक बार आखेट करते हुए तवी नदी के तट पर एक स्थान पर पहुंचा जहां उसने देखा कि एक शेर व बकरी एक साथ एक ही घाट पर पानी पी रहे हैं। पानी पीकर दोनों जानवर अपने अपने रास्ते चले गये। राजा आश्चर्यचकित रह गया और आखेट का विचार छोड़कर अपने साथियों के पास पहुंचा व सारी कथा विस्तार से बतायी। सबने कहा कि यह स्थान शंति व सद्भाव भरा होगा जहां शेर व बकरी एक साथ पानी पी रहे हों। तब उसने आदेश दिया कि इस स्थान पर एक किले का निर्माण किया जाये व उसके निकट ही शहर बसाया जाये। इस शहर का नाम ही जम्बुपुरा या जम्बुनगर पड़ा और कालांतर में जम्मू हो गया।<ref name="Jeratha">{{Cite book|last= जेराथ|first= अशोक|title= फ़ोर्ट्स एण्ड पैलेसेज़ ऑफ़ वैस्टर्न हिमालयाज़|pages=५९-६५|url=http://books.google.co.in/books?id=l2oZiyOqReoC&pg=PA59&dq=Bahu+fort&hl=en&ei=5Gy9S9GtJY24rAeMusjJBw&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=1&ved=0CDkQ6AEwAA#v=onepage&q=Bahu%20fort&f=false|publisher= इंडस पब्लिशिंग|year=२०००|isbn= 81-7387-104-3|Language = अंग्रेज़ी}}{{अंग्रेज़ी}}</ref><ref name="Silas">{{Cite book|last=सिलास|first= संदीप|title= डिस्कवर इण्डिया बाय रेल|page=४७|accessdate= ७ अप्रैल, २०१०|url=http://books.google.co.in/books?id=gL7pGaL3vooC&pg=PT157&dq=Bahu+Fort&hl=en&ei=4XK3S-H7CYS0rAe_yv3DCg&sa=X&oi=book_result&ct=result&resnum=3&ved=0CEMQ6AEwAjgK#v=onepage&q=Bahu%20Fort&f=false|publisher= स्टर्लिंग पब्लिशर्स प्रा.लि.|year= २००५|isbn=81-207-2939-0}}</ref> आज भी यहां बाहु का किला एक ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल है।
 
नगर के नाम का उल्लेख [[महाभारत]] में भी मिलता है। जम्मू शहर से {{convert|32|km|mi}} दूरस्थ [[अख़्नूर|अखनूर]] में पुरातात्त्विक खुदाई के बाद इस जम्मू नगर के [[हड़प्पा सभ्यता]] के एक भाग होने के साक्ष्य भी मिले हैं। जम्मू में [[मौर्य राजवंश|मौर्य]], [[कुशान साम्राज्य|कुशाण]], [[कुशान शाह|कुशानशाह]] और [[गुप्त वंश]] काल के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं। ४८० ई. के बाद इस क्षेत्र पर एफ्थलाइटिस का अधिकार हो गया था और यहां कपीस और [[काबुल]] से भी शासन हुआ था। इनके उत्तराधिकारी कुशानो-हेफ्थालाइट वंश हुए जिनका अधिकार ५६५ से ६७० ई. तक रहा। तदोपरांत ६७० ई. से लेकर [[११वीं शताब्दी]] केआरंभ तक शाही राजवंश का राज रहा जिसे [[महमूद ग़ज़नी|ग़ज़्नवी]] के अधीनस्थों ने छीन लिया। जम्मू का उल्लेख [[तैमूरलंग|तैमूर]] के विजय अभियानों के अभिलेखों में भी मिलता है। इस क्षेत्र ने [[सिख साम्राज्य|सिखों]] एवं [[मुगल|मुगलों]] के आक्रमणों के साथ एक बार फिर से शक्ति-परिवर्तन देखा और अन्ततः [[ब्रिटिश राज]] का नियंत्रण हो गया। यहां ८४० ई. से १८६० ई. तक [[देव वंश]] का शासन भिरहा था। तब नगर अन्य भारतीय नगरों से अलग-थलग पड़ गया और उनसे पिछड़ गया था। उसके उपरांत डोगरा शासक आये और जम्मू शहर को अपनी खोई हुई आभा व शान वापस मिली। उन्होंने यहां बड़े बड़े मन्दिरों व तीर्थों का निर्माण किया व पुराने स्थानों का जीर्णोद्धार करवाया, साथ ही कई शैक्षिक संस्थाण भी बनवाये। उस काल में नगर ने काफ़ी उन्नति की।
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[[File:Vaishno.jpg|right|thumb|250px|प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ [[वैष्णो देवी]] प्रतिवर्ष दसियों लाख यात्रियों को आकर्षित करता है।]]
 
जम्मू के निकट ही कटरा है, जहां से वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई आरंभ होती है। यह गुफा त्रिकुटा पर्वत पर १७०० मी. की ऊंचाई पर स्थित है, जहां मां वैष्णो देवी की पवित्र गुफा स्थित है। जम्मू शहर से कटरा की दूरी मात्र ३० कि.मी है और वहां से दुफा की चढ़ाइ दूरी १३ कि.मी है। ये गुफा 30&nbsp;मी. लम्बी और मात्र 1.5&nbsp;मीटर ऊंची है। बंद गुफा के अंत में माता के स्वरूप की प्रतीक तीन पिण्डियाँ रखी हैं जो क्रमशः [[महाकाली]], [[महालक्ष्मी]] और [[सरस्वती|महासरस्वती]] देवी की प्रतीक हैं। ये तीनों देवियां ही मिल कर वैष्णो देवी के रूप में [[भैरवनाथ|भैरों]] नामक पापी के दमन हेतु अवतरित हुई थीं। तीर्थ यात्री नीचे कटरा से ही पैदल ही टोलियों में १३ कि.मी लम्बी यात्रा करते हैं और साथ साथ माता के जयकारे घोष लगाते हैं। बीच रास्ते में अर्धकुवांरी (गुफा), हाथी मत्था और सांझी छत मध्यांतर पड़ते हैं और अंत में जाकर मुख्य गुफा आती है जहां प्रवेश से पूर्व यात्री शीतल जल में स्नान करते हैं और संकरे मुंह वाली गुफा में प्रवेश करते हैं। गुफा में नीचे शीतल जल धारा बहती है जिसे चरणगंगा कहा जाता है। कहते हैं कि माता भैरों से छिपने हेतु इस गुफा में आयीं थीं और भैरों के आने पर उसका संहार कर दिया था। भैरों ने मरते हुए मांता से क्षमा मांगी और उनकी शरण में आ गया, तो मां ने उसे क्षमा कर दिया किंतु त्रिशूल से कटा उसका सिर एक अन्य ऊंची पहाड़ी के ऊपर जा गिरा और धड़ यहीं गुफा के मुख पर गिर गया जो अब पत्थर बन गया है। उसी पर चढ़ कर गुफा में प्रवेश करते हैं।<ref>{{Cite web|url = http://www.maavaishnodevi.net.in/attractions-around-vaishno-devi/bhairon-mandir.htm|title = भैरों मन्दिर, जम्मू|accessdate = ३० अगस्त, २०१३|publisher = http://www.maavaishnodevi.net.in/}}</ref>
 
=== भैरों मंदिर ===
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=== चैत्रे चौदस (मार्च-अप्रैल)===
 
चैत्रे चौदश उत्तर बहनी और पुरमंडल में मनाया जाता है जो जम्मू शहर से क्रमशः २५&nbsp;कि.मी और २८ कि.मी दूर स्थित हैं। उत्तर बहनी का नाम वहां बहने वाली [[देवक|देविका नदी]] से पड़ा है<ref>[http://www.jagran.com/jammu-and-kashmir/jammu-10294773.html पुरमंडल व उतरवाहिनी में उमड़े श्रद्धालु]|जागरण। १२ अप्रैल, २०१३। अभिगमन तिथि: २८ अगस्त, २०१३</ref>, क्योंकि वह यहां उत्तर-वाहिनी (उत्तर दिशा की ओर बहने वाली) होती है। उत्तर-वाहिनी से बिगड़ कर अपभ्रंश शब्द उत्तर-बहनी हो गया है।
 
=== पुरमंडल मेला (फ़रवरी-मार्च)===
 
पुरमंडल जम्मू शहर से ३९&nbsp;कि.मी दूर है। [[शिवरात्रि]] के अवसार पर इस कस्बे में शोभा देखते ही बनती है।<ref>[http://www.jagran.com/jammu-and-kashmir/jammu-10289296.html पुरमंडल में दो दिवसीय चैत्र-चौदश मेला आरंभ]|जागरण। १० अप्रैल, २०१३। अभिगमन तिथि: २८ अगस्त, २०१३</ref> लोग इस अवसर पर यहां भगवान [[शिव]] का मां [[पार्वती]] से विवाह समारोह मनाते हैं<ref>{{Cite web|url = http://hindi.yahoo.com/%E0%A4%AA-%E0%A4%B0%E0%A4%AE-%E0%A4%A1%E0%A4%B2-%E0%A4%B5-%E0%A4%89%E0%A4%A4%E0%A4%B0%E0%A4%B5-%E0%A4%B9-%E0%A4%A8-%E0%A4%AE-183334432.html|accessdate = २८ अगस्त, २०१३|title = पुरमंडल व उतरवाहिनी में उमड़े श्रद्धालु|date = १२ अप्रैल, २०१३|publisher = जागरण}}</ref>। जम्मू के लोग भी इस अवसर पर शहर से निकल कर आते हैं और पीर-खोह गुफ़ा मंदिर, रणबीरेश्वर मंदिर और पंजभक्तर मन्दिर जाते हैं। असल में यदि कोई शिवरात्रि के अवसर पर जम्मू आये तो उसे हर जगह त्योहार का माहौल ही दिखाई देगा।
 
=== झीरी मेला (अक्तूबर-नवंबर)===
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=== रेल मार्ग ===
{{जम्मू क्षेत्र के रेलवे स्टेशन}}
जम्मूक्षेत्र में कुल ११ [[रेलवे स्टेशन]] हैं, जिनमें प्रमुख स्टेशन [[जम्मू तवी रेलवे स्टेशन|जम्मू तवी]] (''स्टेशनकूट'' JAT) है। यह स्टेशन भारत के प्रमुख नगरों से भली-भांति जुड़ा हुआ है। [[सियालकोट ज़िला|सियालकोट]] को जाने वाली पुरानी रेलवे लाइन अब [[भारत के विभाजन]] के समय से बंद हो चुकी है और तभी से १९७१ तक जम्मू में कोई रेल-सेवा नहीं रही थी। १९७५ में [[भारतीय रेल]] ने जम्मू-[[पठानकोट]] रेलवे लाइन का कार्य पूर्ण किया और जम्मू एक बार फिर से देश से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा। [[कश्मीर रेलवे]] केआरंभ हो जाने से जम्मू तवी रेलवे स्टेशन का महत्त्व दोहरा हो गया है। [[कश्मीर घाटी]] को जाने वाली सभी रेलगाड़ियां इस स्टेशन से होकर ही जाती हैं। कश्मीर घाटी रेलवे परियोजन का कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है और इसका ट्रैक [[उधमपुर रेलवे स्टेशन|उधमपुर]] तक पहुंच चुका है। जम्मू तवी की कई गाड़ियां उधमपुर तक विस्तृत की जा चुकी है और आगे [[कटरा]] तक विस्तार की जायेगी। २०१३ में उधमपुर-कटरा रेलवे लाइन के कार्य पूरे हो जाने से जम्मू लाइन कटरा तक विस्तृत हो जायेगी। [[जालंधर]]- [[पठानकोट]] रेल लाइन का दोहरीकरण हो चुका है और का विद्युतिकरण कार्य २०१३ तक पूरा होना नियोजित है। एक नई पीर-पंजाल रेल सुरंग (जिसे [[बनिहाल]] [[काज़ीगुंड  |काज़ीगुंड  ]]सुरंग भी कहते हैं) तैयार हो चुकी है और प्रचालन में भी दी जा चुकी है। इसके द्वारा बनिहाल की बिचलेरी घाटी को [[कश्मीर घाटी]] के काज़ीगुंड क्षेत्र से जोड़ गया है। सुरंग की खुदाई का कार्य २०११ तक पूरा हो चुका था और इसमें रेल लाइन स्थापन अगले वर्ष पूरा हो गया। उसी वर्ष अर्थात २०१२ के अंत तक परीक्षण रेल भी आरंभ हो गयी थी एवं जून २०१३ के अंत तक यहाँ यात्री गाड़ियाँ भी चलने लगीं।<ref>{{Cite web|url = http://www.mapsofindia.com/maps/jammuandkashmir/jammuandkashmirrails.htm|accessdate = २९ अगस्त, २०१३|title = बनिहाल - काज़ीगुंड रेल लिंक|publisher = मैप्स ऑफ़ इण्डिया}}</ref>
 
इस रेल कड़ी के साथ पीर-पंजाल रेल सुरंग का उद्घाटन २३ जून, २०१३ को हुआ था। इस कड़ी के द्वारा बनिहाल और काज़ीगुंड के बीच की दूरी १७ कि.मी कम हो गई है। यह सुरंग भारत में सबसे लंबी और एशिया की तीसरी लंबी रेलवे सुरंग है। इस सुरंग का निर्माण समुद्र सतह से ५७७० फ़ीट (१७६० मी.) की औसत ऊंचाई पर और वर्तमान सड़क मार्ग की सुरंग से १४४० फ़ीट (४४० मी.) नीचे हुआ है। इसका निर्माण हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी ने [[इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड|इरकॉन]] के [[उधमपुर रेलवे स्टेशन|उधमपुर]]-[[श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर|श्रीनगर]]-[[बारामुला]] रेल लिंक परियोजना के एक भाग के लिये किया है। इस रेल कड़ी के तैयार हो जाने से यातायात में काफ़ी सुविधा हो गयी है, विशेषकर सर्दियों के मौसम में जब भीषण ठंड और [[हिमपात]] के कारण [[राष्ट्रीय राजमार्ग १अ|जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग]] की सुरंग कई बार बंद करनी पड़ जाती है। २०१८ तक इस परियोजना की उधमपुर-बनिहाल कड़ी भी पूरी हो जायेगी और पूरा जम्मू-श्रीनगर मार्ग रेल-मार्ग द्वारा सुलभ हो जायेगा। तब तक लोगों को बनिहाल तक सड़क द्वारा जाना पड़ता है और वहां से श्रीनगर की रेल मिलती है। 
{{seealso|कश्मीर रेलवे}}
 
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! ट्रेन संख्या
! [[भारत में मेल एक्स्प्रेस गाड़ियों की सूची|ट्रेन नाम]]<ref>[http://www.indianrail.gov.in/7days_avlpress_jat.html भारतीय रेल के आधिकारिक जालस्थल] पर [[जम्मू तवी रेलवे स्टेशन]] से जाने वाली रेलगाड़ियों की सूची। अभिगमन तिथि: २९ अगस्त, २०१३। [[भारतीय रेल]]</ref>
! [[भारत में रेलवे स्टेशनों की सूची|गंतव्य]]
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