"रत्नकरण्ड श्रावकाचार": अवतरणों में अंतर
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पंक्ति 1:
जैन धर्म की दिगम्बर आम्नाय का यह प्रसिध्द ग्रंथ
इस ग्रन्थ के प्रारम्भ में श्री समन्त-भद्र आचार्य ने महावीर भगवान को नमन किया है|<br />
पंक्ति 5:
<big>"नमः श्रीवर्धमानाय निर्धूतकलिलात्मने |<br />
सालोकानां त्रिलोकानां यद्विद्या दर्पणायते ||१||"</big><br />
अर्थात:- जिनके केवलज्ञान रूप दर्पण में अलोकाकाश सहित षट्द्रव्यों के समूहरूप सम्पूर्ण लोक अपनी भूत,
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