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'''तात्या टोपे''' (1814 - 18 अप्रैल
सन् सत्तावन के विद्रोह की शुरुआत [[१० मई]] को [[मेरठ]] से हुई थी। जल्दी ही क्रांति की चिन्गारी समूचे उत्तर भारत में फैल गयी। विदेशी सत्ता का खूनी पंजा मोडने के लिए भारतीय जनता ने जबरदस्त संघर्ष किया। उसने अपने खून से त्याग और बलिदान की अमर गाथा लिखी। उस रक्तरंजित और गौरवशाली इतिहास के मंच से [[झाँसी की रानी]] [[लक्ष्मीबाई]], [[नाना साहब|नाना साहब पेशवा]], [[राव साहब]], [[बहादुर शाह ज़फ़र|बहादुरशाह जफर]] आदि के विदा हो जाने के बाद करीब एक साल बाद तक तात्या विद्रोहियों की कमान संभाले रहे।
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