"तैमूरलंग": अवतरणों में अंतर

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| जन्म तिथि = ६ अप्रैल १३३६
| जन्म स्थान = शहर-ऐ-सब्ज़, उज्बेगिस्तान
| मृत्यु तिथि = १९ फरवरीफ़रवरी १४०५
| मृत्यु स्थान = ओत्रार, कजाख्स्तान
| दफ़नाने की जगह = गुर-ऐ-आमिर, समरकंद, उज्बेगिस्तान
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'''तैमुर लंग''' (अर्थात तैमूर लंगड़ा) (8 अप्रैल, 1336 – 18 फरवरी,फ़रवरी 1405) जिसे 'तिमुर' (तिमुर = लोहा) के नाम से भी जाना जाता था चौदहवी शताब्दी का एक शासक था जिसने महान [[तैमूरी राजवंश]] की स्थापना की थी। उसका राज्य पश्चिम [[एशिया]] से लेकर मध्य एशिया होते हुए [[भारत]] तक फैला था। उसकी गणना संसार के महान्‌ और निष्ठुर विजेताओं में की जाती है। वह बरलस तुर्क खानदान में पैदा हुआ था। उसका पिता तुरगाई बरलस तुर्कों का नेता था। भारत के [[मुग़ल]] साम्राज्य का संस्थापक [[बाबर]] तिमुर का ही वंशज था।
 
हालांकि सिकंदर की तरह तैमूरलंग राजपरिवार में पैदा नहीं हुए, बल्कि उनका जन्म एक आम परिवार में हुआ था। तैमूरलंग एक मामूली चोर थे, जो मध्य एशिया के मैदानों और पहाड़ियों से भेड़ों की चोरी किया करते थे।
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1398 के प्रारंभ में तैमूर ने पहले अपने एक पोत पीर मोहम्मद को भारत पर आक्रमण के लिये रवाना किया। उसने मुलतान पर घेरा डाला और छ: महीने बाद उसपर अधिकार कर लिया।
 
अप्रैल 1398 में तैमूर स्वयं एक भारी सेना लेकर [[समरकंद]] से [[भारत]] के लिये रवाना हुआ और सितंबर में उसने सिंधु, झेलम तथा रावी को पार किया। 13 अक्टूबर को वह मुलतान से 70 मील उत्तर-पूरब में स्थित तुलुंबा नगर पहुँचा। उसने इस नगर को लूटा और वहाँ के बहुत से निवासियों को कत्ल किया तथा बहुतों को गुलाम बनाया। फिर मुलतान और भटनेर पर कब्जा किया। वहाँ हिंदुओं के अनेक मंदिर नष्ट कर डाले। भटनेर से वह आगे बढ़ा और मार्ग के अनेक स्थानों को लूटता-खसोटता और निवासियों को कत्ल तथा कैद करता हुआ दिसंबर के प्रथम सप्ताह के अंत में दिल्ली के निकट पहुँच गया। यहाँ पर उसने एक लाख हिंदू कैदियों को कत्ल करवाया। पानीपत के पास निर्बल तुगलक सुल्तान महमूद ने 17 दिसंबरदिसम्बर को 40,000 पैदल 10,000 अश्वारोही और 120 हाथियों की एक विशाल सेना लेकर तैमूर का मुकाबिला किया लेकिन बुरी तरह पराजित हुआ। भयभीत होकर तुगलक सुल्तान महमूद गुजरात की तरफ चला गया और उसका वजीर मल्लू इकबाल भागकर बारन में जा छिपा।
 
दूसरे दिन तैमूर ने दिल्ली नगर में प्रवेश किया। पाँच दिनों तक सारा शहर बुरी तरह से लूटा खसोटा गया और उसके अभागे निवासियों को बेभाव कत्ल किया गया या बंदी बनाया गया। पीढ़ियों से संचित दिल्ली की दौलत तैमूर लूटकर समरकंद ले गया। अनेक बंदी बनाई गई औरतों और शिल्पियों को भी तैमूर अपने साथ ले गया। भारत से जो कारीगर वह अपने साथ ले गया उनसे उसने समरकंद में अनेक इमारतें बनवाईं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध उसकी स्वनियोजित मस्जिद है।
 
तैमूर भारत में केवल लूट के लिये आया था। उसकी इच्छा भारत में रहकर राज्य करने की नहीं थी। अत: 15 दिन दिल्ली में रुकने के बाद वह स्वदेश के लिये रवाना हो गया। 9 जनवरी, 1399 को उसने मेरठ पर चढ़ाई की और नगर को लूटा तथा निवासियों को कत्ल किया। इसके बाद वह हरिद्वार पहुँचा जहाँ उसने आस पास की हिंदुओं की दो सेनाओं को हराया। शिवालिक पहाड़ियों से होकर वह 16 जनवरी को कांगड़ा पहुँचा और उसपर कब्जा किया। इसके बाद उसने जम्मू पर चढ़ाई की। इन स्थानों को भी लूटा खसोटा गया और वहाँ के असंख्य निवासियों को कत्ल किया गया। इस प्रकार भारत के जीवन, धन और संपत्ति को अपार क्षति पहुँचाने के बाद 19 मार्च, 1399 को पुन: सिंधु नदी को पार कर वह भारतभूमि से अपने देश को लौट गया।
 
भारत से लौटने के बाद तैमूर से सन्‌ 1400 में अनातोलिया पर आक्रमण किया और 1402 में अंगोरा के युद्ध में ऑटोमन तुर्कों को बुरी तरह से पराजित किया। सन्‌ 1405 में जब वह चीन की विजय की योजना बनाने में लगा था, उसकी मृत्यु हो गई।