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1929 में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की एक सभा में शामिल होने के बाद [[ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान]] ने ख़ुदाई ख़िदमतगार की स्थापना की और पख़्तूनों के बीच लाल कुर्ती आंदोलन का आह्वान किया। विद्रोह के आरोप में उनकी पहली गिरफ्तारी 3 वर्ष के लिए हुई थी। उसके बाद उन्हें यातनाओं की झेलने की आदत सी पड़ गई। जेल से बाहर आकर उन्होंने पठानों को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ने के लिए 'ख़ुदाई ख़िदमतग़ार' नामक संस्था की स्थापना की और अपने आन्दोलनों को और भी तेज़ कर दिया।
 
1937 में नये भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत कराये गए चुनावों में लाल कुर्ती वालों के समर्थन से काँग्रेस पार्टी को बहुमत मिला और उसने गफ्फार खान के भाई खान साहब के नेतृत्व में मन्त्रिमण्डल बनाया जो बीच का थोड़ा अन्तराल छोड़कर 1947 में [[भारत विभाजन]] तक काम करता रहा। इसी वर्ष सीमान्त प्रान्त को [[भारत]] और [[पाकिस्तान]] में से एक में विलय का चुनाव करना पड़ा। उसने जनमत संग्रह के माध्यम से पाकिस्तान में विलय का विकल्प चुना।<ref>भारत ज्ञानकोश, भाग-5, [[प्रकाशक]]: पॉपुलर प्रकाशन, [[मुंबई]], पृष्ठ संख्या: 157, आई एस बी एन 81-7154-993-4</ref>
 
== परिणति ==
[[ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान]] ने तब [[पाकिस्तान]] और [[अफगानिस्तान]] के सीमान्त जिलों को मिलाकर एक स्वतन्त्र पख्तून देश (पख्तूनिस्तान) की अवधारणा की वकालत की। [[पाकिस्तान]] सरकार ने इस आन्दोलन और लाल कुर्ती (पोशाक), दोनों का दमन कर दिया।<ref>भारत ज्ञानकोश, भाग-5, [[प्रकाशक]]: पॉपुलर प्रकाशन, [[मुंबई]], पृष्ठ संख्या: 157, आई एस बी एन 81-7154-993-4</ref>
== इन्हें भी देखें ==
* [[पश्तूनवाली]]