"लालमणि मिश्र": अवतरणों में अंतर

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== अनुसन्धान एवं आविष्कर्ता ==
वैदिक संगीत पर शोध करते हुए उन्होंने सामिक स्वर व्यवस्था का रहस्य सुलझाया। सामवेद के इन प्राप्त स्वरों को संरक्षित करने के लिए उन्होंने राग सामेश्वरी का निर्माण किया। भरत मुनि द्वारा विधान की गयी बाईस श्रुतिओं को मानव इतिहास में पहली बार डॉ मिश्र द्वारा निर्मित वाद्य यंत्र श्रुति-वीणा पर एक साथ सुनना सम्भव हुआ। इसके निर्माण तथा उपयोग की विधि [http://www.omenad.net/articles/shrutiveena.htm “श्रुति वीणा”] में दी गयी है जिसे नरेन्द्र प्रिंटिंग वर्क, वाराणासी द्वारा 11 फरवरी 1964 को प्रकाशित किया गया।
सामेश्वरी के अतिरिक्त उन्होंने कई रागोँ की रचना की जैसे श्याम बिहाग, जोग तोड़ी, मधुकली, मधु-भैरव, बालेश्वरी आदि। डॉ मिश्र ने पूर्ण रूप से तंत्री वाद्यों के लिए निहित वादन शैली की रचना की जिसे मिश्रबानी के नाम से जाना जाता है। इस हेतु उन्होंने सैकड़ों रागों में हज़ारों बन्दिशों की रचना की जिनका सँकलन उनकी पुस्तकों के अतिरिक्त उनके शिष्यों की पुस्तकों, संगीत पत्रिकाओं में मिलता है।
सन 1996 में युनेस्को द्वारा ''[http://portal.unesco.org/culture/en/ev.php-URL_ID=20829&URL_DO=DO_TOPIC&URL_SECTION=201.html म्यूज़िक ऑव लालमणि मिश्र]'' के शीर्षक से उनके विचित्र वीणा वादन का कॉम्पैक्ट डिस्क जारी किया गया।