"नरेन्द्र देव": अवतरणों में अंतर

छो हलान्त शब्द की पारम्परिक वर्तनी को आधुनिक वर्तनी से बदला।
छो बॉट: दिनांक लिप्यंतरण और अल्पविराम का अनावश्यक प्रयोग हटाया।
पंक्ति 1:
[[चित्र:AchND.jpg|right|thumb|300px|फैजाबाद स्थित आचार्य नरेन्द्र देव का पारिवारिक घर]]
'''आचार्य नरेंद्रदेव''' (1889-19 फरवरी,फ़रवरी 1956) [[भारत]] के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, [[पत्रकार]], साहित्यकार एवं [[शिक्षाशास्त्री|शिक्षाविद]] थे। वे [[कांग्रेस समाजवादी दल]] के प्रमुख सिद्धान्तकार थे।
 
विलक्षण प्रतिभा और व्यक्तित्व के स्वामी आचार्य नरेन्द्रदेव अध्यापक के रूप में उच्च कोटि के निष्ठावान अध्यापक और महान शिक्षाविद् थे। [[काशी विद्यापीठ]] के आचार्य बनने के बाद से यह उपाधि उनके नाम का ही अंग बन गई। देश को स्वतंत्र कराने का जुनून उन्हें स्वतंत्रता आन्दोलन में खींच लाया और भारत की आर्थिक दशा व गरीबों की दुर्दशा ने उन्हें [[समाजवाद|समाजवादी]] बना दिया।
पंक्ति 13:
प्रयाग में अध्ययन के संबंध में रहते हुए नरेंद्रदेव जी के विचार पुष्ट हुए। हिंदू बोर्डिग हाउस उन दिनों उग्र विचारों का केंद्र था। नरेंद्रदेव जी वहाँ गरम दल के विचारों के हो गए। 1906 में आपने जो उग्र विचारधारा अपनाई तो फिर जीवन भर उसपर दृढ़ रहे। 1905 में आप कांग्रेस के अधिवेशनों में गरम दल के होने के कारण जाना छोड़ दिया। सन् 1916 में जब कांग्रेस में दोनों दलों में मेल हुआ तब फिर कांग्रेंस में आ गए। 1916 से 1948 तक आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्य और जवाहरलाल की वर्किग कमेटी के सदस्य भी थे।
 
भग्न स्वास्थ्य के बावजूद आपने 1930 के नमक सत्याग्रह, 1932 के आंदोलन तथा 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह आंदोलन में साहस के साथ भाग लिया और जेल की यातनाएँ सहीं। 1942 में चार महीने तक गांधी जी ने अपने आश्रम में चिकित्सा के लिए रखा। अधिक अस्वस्थ होने पर गांधी जी ने अपना मौन तोड़ा। फिर, जब 8 अगस्त, 42 को गांधी जी ने "करो या मरो" प्रस्ताव रखा, बंबई में आचार्य जी कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों के साथ गिरफ्तार हे गए। 1942-45 तक श्री [[जवाहरलाल नेहरू]] के साथ [[अहमदनगर]] के किले में बंद रहे।
 
वैसे, क्रांतिकारी दल के कभी सदस्य नहीं हुए, किंतु उनके कई नेताओं से आपका घनिष्ठ परिचय था। वे आपका विश्वास करते थे, समय-समय पर आपसे सहायता भी लेते थे और विदेशों से आनेवाला साहित्य ले जाते थे और अपने समाचार देते थे।