"नानाजी देशमुख": अवतरणों में अंतर

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| birth_name =चंडिकादास अमृतराव देशमुख
| birth_date =११ अक्टूबर, १९१६ <!-- {{Birth date and age|YYYY|MM|DD}} or {{Birth-date and age|Month DD, YYYY}} -->
| birth_place =कस्बा कदोली, जिला [[हिंगोली]], [[महाराष्ट्र]].
| death_date =२७ फरवरी,फ़रवरी २०१० (आयु: ९५ वर्ष) <!-- {{Death date and age|YYYY|MM|DD|YYYY|MM|DD}} or {{Death-date and age|Month DD, YYYY|Month DD, YYYY}} (death date then birth date) -->
| death_place =[[चित्रकूट]], [[उत्तर प्रदेश]]
| nationality =भारतीय
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| occupation =समाजसेवक
}}
'''नानाजी देशमुख''' (जन्म : ११ अक्तूबर,अक्टूबर १९१६, चंडिकादास अमृतराव देशमुख - मृत्यु : २७ फरवरी,फ़रवरी २०१०) एक [[भारतीय]] समाजसेवी थे। वे पूर्व में [[भारतीय जनसंघ]] के नेता थे। १९७७ में जब [[जनता पार्टी]] की सरकार बनी, तो उन्हें मोरारजी-मन्त्रिमण्डल में शामिल किया गया परन्तु उन्होंने यह कहकर कि ६० वर्ष से अधिक आयु के लोग सरकार से बाहर रहकर समाज सेवा का कार्य करें, मन्त्री-पद ठुकरा दिया। वे जीवन पर्यन्त [[दीनदयाल शोध संस्थान]] के अन्तर्गत चलने वाले विविध प्रकल्पों के विस्तार हेतु कार्य करते रहे। [[अटल बिहारी वाजपेयी]] सरकार ने उन्हें [[राज्यसभा]] का सदस्य मनोनीत किया। अटलजी के कार्यकाल में ही [[भारत सरकार]] ने उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य व ग्रामीण स्वालम्बन के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान के लिये [[पद्म विभूषण]] भी प्रदान किया।
 
== आरम्भिक जीवन ==
नानाजी का जन्म [[महाराष्ट्र]] के [[हिंगोली]] जिले के कडोली नामक छोटे से कस्बे में [[ब्राह्मण]] परिवार में ११ अक्टूबर, १९१६ को हुआ था। नानाजी का लंबा और घटनापूर्ण जीवन अभाव और संघर्षों में बीता. उन्होंने छोटी उम्र में ही अपने माता-पिता को खो दिया। [[मामा]] ने उनका लालन-पालन किया। बचपन अभावों में बीता। उनके पास शुल्क देने और पुस्तकें खरीदने तक के लिये पैसे नहीं थे किन्तु उनके अन्दर शिक्षा और ज्ञानप्राप्ति की उत्कट अभिलाषा थी। अत: इस कार्य के लिये उन्होने सब्जी बेचकर पैसे जुटाये। वे मन्दिरों में रहे और [[पिलानी]] के बिरला इंस्टीट्यूट से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। बाद में उन्नीस सौ तीस के दशक में वे [[राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ|आरएसएस]] में शामिल हो गये। भले ही उनका जन्म महाराष्ट्र में हुआ, लेकिन उनका कार्यक्षेत्र [[राजस्थान]] और [[उत्तरप्रदेश]] ही रहा। उनकी श्रद्धा देखकर आर.एस.एस. सरसंघचालक [[माधव सदाशिव गोलवालकर|श्री गुरू जी]] ने उन्हें प्रचारक के रूप में [[गोरखपुर]] भेजा। बाद में उन्हें बड़ा दायित्व सौंपा गया और वे उत्तरप्रदेश के प्रान्त प्रचारक बने।
 
== आर.एस.एस. कार्यकर्ता के रूप में ==
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नानाजी ने उत्तरप्रदेश और महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े जिलों [[गोंडा]] और [[बीड]] में बहुत से सामाजिक कार्य किये। उनके द्वारा चलायी गयी परियोजना का उद्देश्य था-"हर हाथ को काम और हर खेत को पानी।"
 
१९८९ में वे पहली बार [[चित्रकूट]] आये और अन्तिम रूप यहीं बस गये। उन्होंने भगवान [[श्रीराम]] की कर्मभूमि चित्रकूट की दुर्दशा देखी। वे मंदाकिनी के तट पर बैठ गये और अपने जीवन काल में चित्रकूट को बदलने का फैसला किया। चूँकि अपने वनवास-काल में [[राम]] ने दलित जनों के उत्थान का कार्य यहीं रहकर किया था, अत: इससे प्रेरणा लेकर नानाजी ने चित्रकूट को ही अपने सामाजिक कार्यों का केन्द्र बनाया। उन्होंने सबसे गरीब व्यक्ति की सेवा शुरू की। वे अक्सर कहा करते थे कि उन्हें [[राजा]] राम से वनवासी राम अधिक प्रिय लगते हैं अतएव वे अपना बचा हुआ जीवन चित्रकूट में ही बितायेंगे। ये वही स्थान है जहाँ राम ने अपने वनवास के चौदह में से बारह वर्ष गरीबों की सेवा में बिताये थे। उन्होंने अपने अन्तिम क्षण तक इस प्रण का पालन किया। उनका निधन भी चित्रकूट में ही रहते हुए २७ फरवरीफ़रवरी २०१० को हुआ।
 
== दीनदयाल शोध संस्थान ==