"वातिलवक्ष": अवतरणों में अंतर

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यह अवस्था प्राय: फुप्फुसावरण गुहा में [[टी. बी.]] के फोकस विद्रधि (abcess), कोथ (gangrene), [[अर्बुद]], यकृत विद्रधि (liver abcess) इत्यादि के फटने तथा पसली के अस्थिभंग के करण होती है। इसके अतिरिक्त वक्ष पर बाह्म आघात तथा अनेक फुप्फुस विकारों में उपचार के हेतु कृत्रिम रूप से वायु प्रविष्ट कराने से वातिलवक्ष की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसे कृत्रिम वातलवक्ष (Artificial Pneumothorax) कहते हैं।
 
वातलवक्ष के लक्षण कारणों के अनुसार या तो यकायक उत्पन्न होते हैं, अथवा अन्य फुप्फुसगत रोगों के उपद्रव के रूप में शनै:-शनै: प्रकट होते हैं। एकाएक उत्पन्न लक्षणों के अंदर रोगी की एकाएक तीव्र कास के साथ वक्ष में तीव्र शूल उत्पन्न होता है, जिसके फलस्वरूप रोगी को श्वाँस लेने तक में कष्ट होता है।इसकीहै। इसकी उग्रता, फुप्फुसावरण गुहा में प्रविष्ट वायु एवं गैस की मात्रा पर निर्भर करती है और इसके फलस्वरूप हृदय तथा अन्य अवयवों का अपने स्थान से विस्थापन (displacement) भी हो जातो है। ऐसी अवस्था में परीक्षा करने पर रोगी तकिए के सहारे वक्ष को दबाए बैठा कराहता हुआ मिलता है तथा साँस की गति मंद एवं कष्टप्रद होती है। विकृत पार्श्व की गति देखने में मंद मालूम देती है तथा हृदय स्वस्थ पार्श्व की तरफ हटा हुआ मालूम देतो है। नाड़ी की गति बढ़कर 120 प्रति मिनट हो जाती है तथा साँस की गति भी बढ़कर 20-30 प्रति मिनट हो जाती है। एक्स रे परीक्षा से ही इसके निदान की पुष्टि हो सकती है। यदि वातिलवक्ष का समय से उचित उपचार न किया गया, तो उपद्रव स्वरूप वायु के दोनों पार्श्व में प्रसारित हो जाने, अथवा संक्षोभ (shock) के कारण मृत्यु की भी संभावना रहती है। टी. बी. की उग्रावस्था में वातिलवक्ष का होना घातक अवस्था का द्योतक है।
 
== उपचार ==