"विश्वरूप": अवतरणों में अंतर
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'''अर्थात्''' हे अनंत हजारों स्वरूपों वाले हजारों पैरों, अखों, हृदयों तथा हजारों भुजाओं वाले। हजारों नाम वाले शाश्वत महापुरुष सहस्त्रकोटि युगों के धारण करनेवाले आपको नमस्कार है।
गीता में बताया गया है,
भगवान में अदिति के १२ पुत्र (द्वादशादित्य), ८ वसु, ११ रूद्र, दोनो अश्विनीकुमार, ४९ मरुद्गण, स्वर्ग, नरक, मृत्युलोक आदि सभी लोक तथा १४ भुवन, इंद्र तथा सभी देवता, अनेकों सूर्य, अनेकों ब्रह्मा, शिव, इसके साथ ही अनेक शक्तिशाली अज्ञात प्राणी भी समाहित हैं। उनमें [[भीष्म]], [[कौरव]], [[द्रोणाचार्य]] सहित सचराचर ब्रह्मांड समाहित
{{double image|right|A Vishva-rupa print.jpg|210|WLA vanda Vishnu as the Cosmic Man.jpg|200|बाएँ: सन् १९०० विश्वरूप लिथोग्रॉफ। दाएँ: तीन लोको के साथ विश्वरूप: स्वर्ग (सिर से पेट तक), पृथ्वी (ऊसन्धि), अधोलोक (पैर) सन् १८००-५०, [[जयपुर]]}}
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[[चित्र:Narada found Vishnu as macroform.jpg|thumb|300px|नारद को भगवान विश्वरूप दर्शन कराते हुए।]]
एक समय इनके ग्राम में कुछ महात्माओं का आगमन हुआ तथा वे चतुर्मास्य व्यतीत करने के लिये वहीं रुक
महात्माओं ने जाते जाते नारद को भगवन्नाम संकीर्तन का उपदेश दिया। सर्पदंश से नारद की माता का भी स्वर्गवास हो गया। भिक्षुक की भाँति भोजन के लिये किसी के घर के सामने खड़ा रहता तब भोजन प्राप्त होती थी, पंचवर्षीय नारद इन कष्टों को भगवान की इच्छा समझकर टालते थे। नारद को अन्य बालक भी सताते थे। नारद ने महात्माओं के विधि अनुसार जाप किया तब प्रभु विष्णु ने उन्हें अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दिया। तत्पश्चात इन्हें प्रभु के दर्शन नहीं हुए। अंत में उन्होंने कठिन तपस्या की तब जाकर भगवान [[विष्णु]] नें उन्हें अपने विश्वरूप का दर्शन कराया और कहा कि "नारद! अगले जन्म में तुम ब्रह्मा के मानस पुत्र तथा मेरे पार्षद के रूप में जन्म लोगे, तब तुम हर दिन मेरा दर्शन करोगे।"<ref>[http://www.anjalika.in/news/275-2.html नारद (विष्णुपुराण)], अंजलिका</ref>
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